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________________ अगरचन्द नाहटा: रामचरित सम्बन्धी राजस्थानी जैन साहित्य : ७५१ (१२) सीताराम चौपई-महाकवि समयसुन्दर की यह विशिष्ट कृति है. रचनाकाल व स्थान का निर्देश नहीं है. पर इसके प्रारम्भ में कवि ने अपनी अन्य रचनाओं का उल्लेख करते हुए नलदमयंती रास का उल्लेख किया है. जो कि संवत् १६७३ में मेडते में श्री राजमल के पुत्र अमीपाल खेतसी, नेतसी तेजसी, और राजसी के आग्रह से रचा गया है. अतः सीताराम चउपई संवत् १६७३ के बाद ही (इन्हीं राजसी आदि के आग्रह से रचित होने के कारण से) रची गई है. इसके छठे खंड की तीसरी ढाल में कवि ने अपने जन्मस्थान साचोर में उस ढाल को बनाने का उल्लेख किया है. कविवर का रचित साचोर का महावीर स्तवन संवत् १६७७ के माघ में रचा गया है. संभव है, कि उसी के आस पास यह ढाल भी रची गई है. सीताराम चउपई की संवत् १६८३ में लिखित प्रति ही मिलती है. अतः इसका रचनाकाल संवत् १६७३ से १६८३ के बीच का निश्चित है. प्रस्तुत चउपई नवखंड का महाकाव्य है. नवों रसों का पोषण इसमें किया जाने का उल्लेख कवि ने स्वयं किया है. प्रसिद्ध लोकगीतों की देशियों (चाल) में इस ग्रंथ की ढालें बनाई गई हैं, उनका निर्देश करते हुए कवि ने कौनसा लोकगीत कहाँ कहाँ प्रसिद्ध है, इसका उल्लेख भी किया है. जैसे---- (१) नोखारा गीत-मारवाड़ि ढूढ़ाड़ि, मांहे प्रसिद्ध छे. (२) सूमर। गीत—जोधपुर, मेड़ता, नागौर, नगरे प्रसिद्ध छे. (३) तिल्लीरा गीत-मेडतादिक देशे प्रसिद्ध छे. (४) इसी प्रकार "जैसलमेर के जादवा' आदि गीतों की चाल में भी ढाल बनाई गई है. प्रस्तुत ग्रंथ अब हमारे द्वारा संपादित रूप में प्रकाशित होने को है. अतः विशेष परिचय ग्रंथ को स्वयं पढ़ कर प्राप्त करें. (१३) रामयशोरसायन--विजयगच्छ के मुनि केशराज ने संवत् १८८३ के आश्विन त्रयोदशी को अन्तरपुर में इसकी रचना की. ग्रंथ चार खण्डों में विभक्त है. ढाले ६२ हैं. इसका स्थानकवासी और तेरहपंथी सम्प्रदाय में बहुत प्रचार रहा है. उन्होंने अपनी मान्यता के अनुसार इसके पाठ में रद्दोबदल भी किया है. स्थानकवासी समाज की ओर से इसके २-३ संस्करण छप चुके हैं. पर मूल पाठ 'आनन्द काव्य महोदधि' के द्वितीय भाग में ठीक से छपा है. इसका परिमाण समयसुन्दर के सीताराम चौपाई के करीब का है. इसकी दो हस्तलिखित प्रतियां हमारे संग्रह में हैं. (१४) रामचन्द्र चरित्र-लोकागच्छीय त्रिविक्रम कवि ने संवत् १६६६ सावण सुदी ५ को हिसार पिरोजा डंग में इसकी रचना की. त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र के आधार से नवखण्डों एवं १३५ ढालों में यह रचा गया है. इसकी १३० पत्रों की प्रति प्राप्त है, जिस के प्रारम्भ के २५ पत्र न मिलने से तीन ढालें प्राप्त नहीं हुई हैं. इस शताब्दी के प्राप्त ग्रंथों में यह सब से बड़ा राजस्थानी रामकाव्य है. १८ वीं शताब्दी (५५) रामायण --खरतरगच्छीय चारित्रधर्म और विद्याकुशल ने संवत् १७२१ के विजयादशमी को सवालसदेस के लवणसर में इसकी रचना की. प्राप्त जैन राजस्थानी रचनाओं में इसकी यह निराली विशेषता है कि कवि ने जैन होने पर भी इसकी रचना जैन रामचरित ग्रंथों के अनुसार न करके, बाल्मीकि रामायण आदि के अनुसार की है बाल्मीक वाशिष्टरिसि, कथा कही सुभ जेह । तिण अनुसारे रामजस, कहिये घणे सनेह ॥ सुप्रसिद्ध बाल्मीकि रामायण के अनुसार इसमें बालकाण्ड, उत्तरकाण्ड आदि सात काण्ड हैं. रचना ढालबद्ध है. ग्रंथ का परिमाण चार हजार श्लोक से भी अधिक का है. सिरोही से प्राप्त इसकी एक प्रति हमारे संग्रह में है. (१६) सीता अालोयणा-लोंकागच्छीय कुशल कवि ने ६३ पद्यों में सीता के बनबास समय में की गई आत्मविचारणा *** *** *** *** *** .. . JainEducaininthalichal.................... ............ iiiiiiiiii. .ade-brary.org !! !
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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