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________________ c(. जयगच्छीय विशिष्ट संत आचार्यश्री जयमलजी महाराज की सन्तपरम्परा वैचारिक और आचारिक मामलों में अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है. इस परम्परा में होने वाले आचार्य और विशिष्ट सन्तों में भूल से ही कोई ऐसा सन्त रहा होगा, जिसने साहित्यमुक्ताओं में प्रवेश न किया हो. النارية प्रत्येक युग की एक सीमा होती है. जयगच्छीय सन्तों ने माता सरस्वती के ज्ञानमंदिर में श्रद्धा और भक्ति के पद्यपुष्पों की मालाएँ अत्यंत विनीत भाव से समर्पित की हैं. माता सरस्वती को पुष्पमाला अर्पित करने पर भी समुचित अनुसंधान के अभाव में वे इतिहास के पृष्ठों पर अंकित न हो सके, प्रकाशित न हो सके, ख्याति और यश के निकष पर चढ़ाए न गए. परन्तु राजस्थान के प्राचीन ज्ञानागारों की खोज करने पर उनकी कृतियाँ रत्न की तरह चमकती दीख रही हैं. यह अन्वेषकों की पैनी दृष्टि का सत्य है. साहित्य के कालविभाजन के अनुसार एक युग का नाम भक्तियुग है. भक्तियुग में आत्मविज्ञापन से दूर रहने का एक प्रवाह चल पड़ा था. परिणामस्वरूप उस काल में सन्त भक्त कवियों ने अनंत सत्ता के प्रति पद्य पुष्पांजलियाँ अर्पित की परन्तु अपना एक निश्चित लक्ष्य निर्धारित कर रखा था कि जो रचनाएँ की जाएँ वे ख्याति के लिये नहीं अपितु स्वांतः सुखाय ही की जाएँ. भक्तियुग अठारहवीं सदी से कुछ अधिक दशकों तक माना जाता है. जयगच्छ में होनेवाले परवर्ती सभी सन्त भक्तियुग में हुए हैं. स्वयं ने आनन्दानुभूति करके अपनी रचनाओं को जब जहां अवसर मिला वहाँ के भण्डारों में रख दीं. कभी यह नहीं सोचा कि इनका प्रचार-प्रसार हो. इनके प्रचार-प्रसार के साथ हमारा नाम हो. आचार्य श्रीजयमलजी महाराज एक विशिष्ट चिन्तक और साहित्यकार सन्त थे. वे सन्तपरम्परा का निर्वाह करने वाले और सूक्ष्म साहित्यकार थे. उनके साहित्य ने उनके पश्चात सन्तों को इस दिशा में बढ़ने के लिये उत्प्रेरित किया था. बहुत से ऐसे सन्त उनकी साहित्यिक परम्परा को निभानेवाले हुए. परन्तु आज उनकी रचनाएँ अत्यल्प मात्रा में ही पाई जाती हैं. जयगच्छ में कुछ अन्वेषणप्रिय संत हुए और हैं जिन्होंने उनकी कृतियों की खोज की है. उन्हें इस परम्परा के सन्तों की अनेकानेक कृतियां मिली हैं. 'मुनि श्री हजारीमल स्मृतिग्रंथ' में जयगच्छ के उन समस्त विशिष्ट सन्तों का हम परिचय देना चाहते थे परन्तु दुर्दैवविपाक ही समझिये कि जिन सन्तों के पास इस सम्बन्ध की सामग्री है, प्रयत्न करने पर भी हमें वह उपलब्ध न हो सकी. यदि वह सामग्री किसी पृथक् ग्रंथ के रूप में प्रकाश में आए तो हम उनका अभिनन्दन करेंगे. जयगच्छ के जिन महामनीषी मुनियों का परिचय दिया जा चुका है. उनके अतिरिक्त कतिपय विशिष्ट सन्तों का भी परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जाता है, जो इस प्रकार है (१) स्वामी श्रीशोभाचन्द्रजी महाराज ( २ ) स्वामी श्री हरखचन्द्रजी महाराज ( ३ ) स्वामी श्री चौथमलजी महाराज (४) स्वामी श्रीवक्तावरमलजी महाराज (५) स्वामी श्रीचैनमलजी महाराज ( ६ ) स्वामी श्रीरावतमलजी महाराज. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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