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________________ ६८० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय ऐसा ही उल्लेख (मालवा स्युरवन्तयः)' अमरकोष में भी है. वैजयन्ती कोष में आता है : दशार्णास्स्युर्वेदिपरा मालवास्स्युरवन्तयः इस मालव का उल्लेख जैन-आगमों में भी मिलता है. भगवती सूत्र में जहाँ १६ जनपद गिनाये गये हैं, उनमें एक 'मालवगाण' का भी उल्लेख है. पर जैन-ग्रंथों में जहाँ २५।।, आर्य देशों का उल्लेख है, उनमें दशार्ण भी एक गिना जाता है.४ वहाँ मालव की गणना अनार्य देशों में की गई है.५ भगवान महावीर दशार्ण तो गये पर मालव वे कभी नहीं गये. और, बौद्ध ग्रन्थों में बुद्ध ने आर्य देश की सीमा इस प्रकार बतायी है : "भिक्षुओ ! अवन्ति दक्षिणापथ में बहुत कम भिक्षु हैं, भिक्षुओ ! सभी प्रत्यन्त जनपदों में विनयधर को लेकर पांच भिक्षुओं के गण से उपसम्पदा (करने) की अनुज्ञा देता हूँ. यहाँ यह प्रत्यन्त जनपद है-पूर्व में कजंगल नामक निगम है, उसके बाद शाल (के जंगल) हैं. उसके परे 'इधर से बीच' में प्रत्यन्त जनपद है. पूर्व-दक्षिण दिशा में सलिलवती नामक नदी है. उससे परे इधर से बीच में प्रत्यन्त जनपद है. दक्षिण दिशा में सेतकणिक नामक निगम है. पश्चिम दिशा में थूण नामक ब्राह्मण गाम०. उत्तर दिशा में उसीरध्वज नामक पर्वत. उससे परे प्रत्यन्त जनपद है." बुद्ध द्वारा निर्धारित इस सीमा में मालव नहीं पड़ता. और बुद्ध वहाँ गये भी नहीं. वहाँ के राजा पज्जोत ने बुद्ध को आमंत्रित करने के लिए कात्यायन को भेजा. कात्यायन बुद्ध का उपदेश सुनकर साधु हो गया. बाद में जब बुद्ध को उसने राजा की ओर से आमंत्रित किया तो बुद्ध ने कहा कि तुम्हीं वहाँ जाकर मेरा प्रतिनिधित्व करो. इस प्रसंग में लिखा है-" शास्ता ने उनकी बात सुन ..बुद्ध (केवल) एक कारण से न जाने योग्य स्थान में नहीं जाते, इसलिए स्थविर को कहा-"भिक्षु तू ही जा...!" और अवन्ति के उल्लेख से तो भारतीय साहित्य भरा पड़ा है. वैदिक साहित्य में अवन्ति १. श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में जहाँ सीता को खोजने के लिए दूतों के भेजे जाने का उल्लेख है, वहाँ आता है १. अमरकोष, द्वितीय कांड, भूमि वर्ग, श्लोक ६, पृष्ठ २७८. -खेमराज श्रीकृष्णदास बम्बई २. वैजयन्ती कोष, भूमिकांड. देशाध्याय, श्लोक ३७, पृष्ठ ३८. ३. तंजहा--१ गाणं, २ बंगाणं, ४ मगहाणं, ४ मलयाणं, ५ मालवगाणं, ६ अच्छाण, ७ वच्छागा, ८ कोच्छाणं, १ पाढाणं, १७ लाढाणं, ११ बज्जाणं, १२ मोलीणं, १३ कासोणं १४ कोसलाणं, १५ अबाहाणं, १६ संभुत्तराणं. -भगवती सूत्र, शतक १५, सूत्र ५५४, पृष्ठ २७. ४. बृहत्कल्पसूत्र सटीक विभाग ३, पृष्ठ ६१३ प्रज्ञापना सूत्र मलयगिरि की टीका सहित पत्र,५५-२ सूत्रकृतांग सटीक. प्रथम भाग, पत्र १२२ प्रवचनसारोद्धम् सटीक, भाग, २ पत्र ४४-३।१-२. ५. (अ) सग जवण सवर बब्बर काय मुरूडोड गोण पक्कणया । अरबाग होण रोमय पारस खस खासिया चेव ।७३। दुविलय लउस बोक्कस भिल्लंध पुलिंद कुंच भमररुपा | कोवाय चीण चंचुय मालव दमिला कुलग्या या |७४। केक्कय किराय यमुहं खरमुह गयतुरय मिंढयमुहा य । हयकन्ना गयकन्ना अन्नेऽवि प्रणारिया बहवे ७५ पावा य चंडकमा गारवा निधिणा निरगुताबी | धम्मोत्ति अक्खराई सुमिणेऽपि न नउजए. जाणं । -प्रवचन सारोद्धार, उत्तराद्ध, पत्र ४४५-२, ४४६-१. (आ) प्रश्नव्याकरण सटीक पत्र १४-१ पराणवणा (बाबूवाला) पत्र ५६-१ ६. बुद्धा , पृष्: ३७१ (१९५२ ई०). ७. डिक्शनरी आव पाली प्रार नेम्स, भाग १, पृष्ठ ११३. ८. बुद्धचर्या पृष्ठ ४५. Jain Ellion tonal Jay.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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