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________________ ६७४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय भी शास्त्रश्रवण कर रहे थे. आया हुआ विद्वान् टोडरमलजी के पास बैठा और धीरे से उनसे बक्ता का नाम पूछा. बंशीधर नाम बताने पर उसने वक्ता से कहा कि उनका विना बंशी के बंशीधर नाम कैसा ? यह सुन कर वक्ता द्वारा उत्तर दिये जाने के पूर्व ही टोडरमलजी ने उत्तर देने की आज्ञा मांगी और बंशीधर शब्द के १७ अर्थ कर डाले और कहने लगे कि बोलिये आप किस वंशीधर को पूछते हैं ? टोडरमलजी द्वारा दिये गये प्रत्युत्तर को सुनकर वह विद्वान् हक्का-बक्का रह गया और अपने पोथी पन्ने लेकर चलता बना. वह कहने लगा-जहाँ श्रोता ही ऐसे हैं वहाँ वक्ता कैसा होगा? प्राचीन ग्रन्थों का स्वाध्याय :-पंडितजी ने न्याय, व्याकरण, गणित आदि उपयोगी विषयों को प्रारंभ में पढ़ा था. ज्यों ही इनमें उनका प्रवेश होने लगा त्यों ही उन्होंने समयसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, नियमसार, गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार, त्रिलोकसार, पुरुषार्थ-सिद्ध्युपाय, आत्मानुशासन आदि सिद्धांतग्रंथों एवं उनकी टीकाओं का अनुशीलन किया. श्रावक तथा मुनियों के आचारग्रंथों का गंभीर अध्ययन कर उनके रहस्य को समझा. गार्हस्थ्य जीवन :-आपने गृहस्थी में रहते हुए जितना कार्य किया, संभव है उतना अन्य कोई घर छोड़कर संन्यासी बनने पर भी नहीं कर सका होगा. आपने १७ वर्ष की उम्र में गृहस्थी का भार संभाला और उसी वर्ष विवाह हुआ. १८ वें और २१ वें वर्ष में आपके क्रमशः हरिचन्द्र और गुमानीराम पुत्र हुए. हरिचन्द्र के कोई उल्लेखनीय कार्यों का विवरण नहीं मिलता. दूसरा पुत्र गुमानीराम प्रभावशाली विद्वान् एवं कर्मठ पुरुष था. पिता की तरह शिथिलाचार के विरुद्ध जीवनभर लड़कर उसने गुमानपंथ (शुद्धाम्नाय) स्थापित किया जो उन के नाम पर अब तक प्रचलित है और इसका मुख्य स्थान बधीचन्द जी का मंदिर है, जहाँ स्वयं पं० टोडरमलजी ग्रंथरचना किया करते थे और जहाँ आज भी स्वयं पंडितजी के हाथ से लिखे गये मोक्षमार्गप्रकाश एवं आत्मानुशासन की दर्शनीय पाण्डुलिपियाँ हैं. पंडितजी घर में ही जल से भिन्न कमलवत् रहते हुए अनासक्त या निलिप्त रहे और एकाग्रता तथा पूर्ण निष्ठा के साथ अपना कार्य करते रहते. कहा जाता है कि माता रंभादेवी ने पुत्र को ग्रंथरचना में तल्लीन देख शाक में नमक डालना बंद कर दिया और पुत्र को कुछ पता भी नहीं लगा. छह महीने बाद गोम्मटसार की टीका पूर्ण हो जाने पर पुत्र ने एक दिन कहा-'माता, क्या शाक में आज नमक नहीं डाला ?' माता ने बतलाया कि आज ही क्या, छह महीने से नहीं डाल रही हूँ. वास्तव में कार्य में तल्लीन होने पर ऐसा ही होता है. इससे पंडितजी की अलौकिक प्रतिभा, कार्यशीलता एवं तल्लीनता का पता चलता है. साहित्य-निर्माण :-महापंडित टोडरमलजी ने साहित्य की जो अपरिमित सेवा की थी वह उनके जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी. वे केवल २८ वर्ष तक ही जीवित रहे, लेकिन इतने अल्प समय में ही उन्होंने जो साहित्य लिखा वह वयोवृद्ध साहित्यसेवियों को भी स्वयमेव नतमस्तक करने वाला है. टोडरमलजी प्रतिभाशाली साहित्यकार थे. इसलिए जो भी उनके सम्पर्क में आया वह स्वयं भी साहित्यकार बन गया. उनकी विवेचनाशक्ति अपूर्व थी. किसी भी वस्तु या तत्त्व की विवेचना करते समय उनकी गहराई तक पहुँचते और अपने विवेचन से पाठकों को स्तंभित कर देते. १४ वर्ष की अवस्था में मुलतान के अध्यात्मप्रेमियों के नाम एक रहस्यपूर्ण चिट्ठी लिखी वह इनकी विद्वत्ता की प्रथम परिचायक थी. इसी चिट्ठी को पढ़कर भाई रायमल्ल अत्यधिक प्रभावित हुए और उनसे प्राकृतभाषा में निबद्ध गोम्मटसार आदि महान् सैद्धांतिक ग्रंथों की हिन्दी टीका करने का आग्रह किया और उन्हीं की प्रेरणा से गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार, त्रिलोकसार आदि ग्रंथों की ३८००० श्लोक प्रमाण टीका का कार्य तीन ही वर्ष में समाप्त कर दिया. ऐसी महान् साहित्यसेवा केवल उन जैसे प्रतिभासम्पन्न विद्वान् से ही संभव हो सकती थी. वैसे उनका तीन वर्ष में स्वाध्याय करना भी साधारण पाठक की शक्ति से बाहर है. इसके पश्चात् उन्होंने आत्मानुशासन, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय एवं मोक्षमार्गप्रकाशक जैसी महत्त्वपूर्ण कृतियों की रचना प्रारंभ की लेकिन इनमें से अंतिम दो रचनाओं को पूरा भी नहीं कर पाये थे कि कालकवलित हो गये. देश का एवं समाज का यह घोर दुर्भाग्य था. यदि वे साधारण आयु (५० MAN Jain Edit
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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