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________________ बद्रीप्रसाद पंचोली : महावीर द्वारा प्रचारित आध्यात्मिक गणराज्य और उसकी परम्परा : ६४७ स्वराडसि सपत्नहा सत्रराडसि अभिमातिहा जनराडसि रक्षोहा सर्वराडसि अमित्रहा.' अथर्ववेद में शासक के वरण व अभिषेक समय की मर्यादाओं का उल्लेख मिलता है. ब्रह्मगवी व ब्रह्मजाया के नाम से राज्य की आध्यात्मिक शक्तियों का उल्लेख भी किया गया है, जिन्हें प्रजा की सामूहिक भावनायें राज्य में निक्षिप्त करती हैं. पृथिवीसूक्त में सत्य, ऋत, दीक्षा, तप, ब्रह्म, यज और बृहत् राष्ट्र के आधारभूत तत्त्व कहा गया है. वैदिक राज्यव्यवस्था का वर्णन करना यहाँ अभीष्ट नहीं है, केवल इतना स्वीकार किया जा सकता है कि गणव्यवस्था का आदर्श भी भारतीयों को वेदों से मिला है. ऋग्वेद में दो प्रकार के गणों का वर्णन मिलता है. जिनमें एक है ऋभुओं का गण और दूसरा मरुतों का गण. प्रथम सारस्वतगण (Educational Republics) है और दूसरा सैनिक गण. मरुत् देवताओं में वैश्यवर्ण के कहे गये हैं अत : इनका गण सैनिक गण होते हुए भी कृषि व गोपालन की समृद्धि पर निर्भर कहा जा सकता है. ये दोनों प्रकार के देवगण भारतीय गणराज्यों के प्रेरणास्रोत कहे जा सकते हैं. ऋभुगण सुन्धवा के पुत्र ऋभु, विभु और वाज का है. इनका विस्तृत विवेचन स्वतंत्र निबन्ध का विषय है. इस विषय में ज्ञातव्य संक्षेप में इस प्रकार हैं-'ऋभु पहले मनुष्य थे बाद को ऋत का आश्रय लेकर उन्होंने देवत्व प्राप्त किया. ऋत की साधना ऋभुगण का आदर्श है." देवत्व सदा से मनुष्यों का लक्ष्य रहा है. ऋभुओं ने ऋतसाधना द्वारा देवत्व प्राप्त किया था. ऋत की साधना के लिये पैत-भावना आवश्यक है. साधक, सिद्ध व साध्य का श्रत प्राचीन ग्रंथों में अनेक प्रकार से उल्लिखित है. ऋभुत्रयी में वाज है साधक, विभु सिद्ध और ऋभुत्व साध्य. शिक्षणव्यवस्था में वाज का सम्बन्ध विद्यार्थी से है. विद्यार्जन वाजपेय (वाज को पेय बनाना या पीना) यज्ञ तथा विद्याप्राप्त स्नातक को वाजपेयी कहा जाता है. विभु गुरु है और ऋभुत्व प्राप्त करने वाला ऋभु कहा जाता है. विद्यार्जन की प्रक्रिया को नेम (अधूरे ज्ञान वाला) का भार्गव (तेजस्वी, ज्ञानसम्पन्न) हो जाना भी कहा जा सकता है. इस विषय में नेमभार्गवऋषिदृष्ट ऋग्वेद का सूक्त विचारणीय है. सामूहिक दृष्टि से वाज, विभु और ऋभु का एक गण बनता है. ऋभुगण द्वारा सर्वदुघा गो का निर्माण, एक चमस के चार चमस कर देना आदि बातों को यहाँ अप्रासंगिक समझ कर छोड़ दिया जाता है. ऋभुवों के गण के आदर्श पर ऋत की साधना के केन्द्र शिक्षा-आश्रमों का विकास हुआ था जिन्हें सारस्वतगणराज्य' कहा जा सकता है. सिकन्दर के समय कठों का गण वार्ताकृषि-उपजीवी संघ था. युद्धकाल में सिकन्दर का सामना करने के लिये यह आयुधजीवीसंघ बन गया था । इसका प्रारम्भ सारस्वत गण के रूप में हुआ था जिसमें यजुर्वेद की काठकसंहिता का प्रवचन होता था. काठकसंहिता व कठोपनिषद् इस गण की चिन्तनपरम्परा के अवशेष हैं. नैमिषारण्य के ऋषिगण की स्मृति धार्मिक कथाओं में बनी हुई है. बादरायण व्यास के विशाल पुराण-साहित्य को सुरक्षित बनाये रखने का श्रेय इसी गण को हैं, जिसके ८८हजार ऋषि आरण्यकजीवन बिताते हुए साहित्य व धर्म की चर्चा में समय बिताया करते थे. प्राप्य प्राचीन १. यजुर्वेद ५/२४. २. अथर्ववेद ५१८. ३. अथर्ववेद ५११७. ४. अथर्ववेद १२।११. ५. ऋग्वेद ४१३५२१. ६. ऋग्वेद ३१६०१३, ३२६०११, ४१३५८, ४/३३१३, ४३५३, श११०१४. ७. ऋतेन भान्ति इति ऋभवः-यास्क, निरुक्त ११।२।३, ऋग्वेद ४/३४/२. ८. ऋग्वेद ८/१०० है. ऋग्वेद ४१३३१८,४३४/8, ४१३६/४. १०. ऋग्वेद ४१३५२,५,४/३६/४. ११. सारस्वत गणराज्यों के लिये द्रष्टव्य लेखक का 'प्राचीन भारत के सारस्वत गणतंत्र' नामक निबन्ध 'त्रिपथगा वर्ष ७ अंक ११. JainEdelione rearersmaro www.jainellorary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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