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________________ Jain मुनि श्री मिश्रीमल 'मधुकर': जीवन-वृत्त : ३६ सं० ० १८६४ आश्विन कृष्णा तृतीया को सोजत नगर में मुनिदीक्षा ग्रहण की. दीक्षोपरांत विभिन्न विषयों का अध्ययन किया. अपने द्वारा स्वीकृत आचारधर्म का अर्द्धशताब्दी से भी कुछ अधिक समय तक सुदृढ़ मन से पालन किया. आपने बालवय में ही दीक्षा धारण की थी. इन्हें वैराग्य किन परिस्थितियों में उत्पन्न हुआ था, इस बारे में कुछ भी अधिकृत रूप से ज्ञात नहीं होता है. आपका छन्द अलंकार सम्बन्धी ज्ञान प्रसिद्ध है. पद्य रचनाएँ कम ही मिली हैं. पर जो मिली हैं वे परिपूर्ण हैं. अन्वेषकों से अनुरोध है कि जहाँ भी आपकी रचनाएँ प्राप्त हो सकें, उन्हें प्रकाश में लाने का प्रयास करें. आपकी सम्पूर्ण आयु ६६ वर्ष की रही. सं० १६२० फाल्गुन कृष्णा सप्तमी को आप स्वर्गवासी हुये. आचार्य श्रीकस्तूरचन्द्रजी आचार्य श्रीसबलदासजी म० ने युवाचार्य पद प्रदान करने की परम्परा उठा दी थी, अतः आचार्य श्रीकस्तूरचन्द्रजी म० सं० १९२० फाल्गुन शुक्ला पंचमी को संघ द्वारा आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए. आचार्य श्रीकस्तूरचन्द्रजी का जन्म ०१०१८ की फाल्गुन कृष्णा तृतीया को बिसलपुर में हुआ था. गाता कुन्दनादे और पिता नरसिंह जी थे. आचार्य हीराचन्द्रजी द्वारा पाली नगर में मुनिदीक्षा धारण कर संयम के अग्निपथ पर आप बढ़ते रहे. संयम की बाट में आई अनेक बाधाओं पर साहस पूर्वक विजय प्राप्त की. आपका गृहीजीवन ६ वर्ष १ मास और १६ दिन का था - ऐसा स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है. मुनि जीवन, ६१ वर्ष ६ माह और २१ दिन का रहा है. समग्र जीवनायु ७० वर्ष के लगभग है. इस प्रकार दीक्षा का सं० १६०७ फलित होता है. इन्होंने ५ भव्यात्माओं को मुनिजीवन की दीक्षा प्रदान की थी. आपके द्वारा कोई साहित्य रचा गया या नहीं, इस विषय में अभी तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है. सम्भव है। अपने पूर्व आचार्यों की परम्परा का निर्वाह करते हुए आपने भी कुछ रचनाएँ की हों, जो किन्हीं ग्रंथागारों में दबी पड़ी हों. प्राचार्य श्रीभीखमचन्द्रजी सातवें आचार्य श्री भीखमचन्द्र जी म० भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा सं० १९६० में आचार्य पद पर आसीन हुए. मारवाड़ की प्रसिद्ध राजधानी जोधपुर में आपको आचार्य पद प्रदान किया गया था. आपका जन्म, माता जीवनदे की रत्नकुक्षि से हुआ था. पिता का नाम रत्नचन्द्र था, बरलोटा गोत्र के थे. मूथाजी के नाम से अधिक प्रख्यात थे. आचार्य श्रीकस्तूरचन्द्रजी के द्वारा मुनिदीक्षा ग्रहण की थी. आप जन्मजात वैरागी थे. आपने कुमार वय में ही संयम व्रत स्वीकार कर लिया था. आपके दो शिष्य हुये थे. श्री कानमल जी अतीव प्रतिभाशाली थे. आगे चलकर वे ही आपके उत्तराधिकारी हुये. जन्म, आचार्य पद व स्वर्गवास संवत् से दीक्षा सं० का अनुमान किया जा सकता है. सं० १९६५ की वैशाख कृष्णा पंचमी आपका देहोत्सर्ग दिवस है. श्राचार्य श्रीकानमलजी आचार्य भीखमचन्द्र जी म० के पश्चात् आपके सुयोग्य शिष्य मुनि कानमल जी को सं० १९६५ की ज्येष्ठशुक्ला द्वादशी को कुचेरा ( कूर्मपुर) में आचार्य पद प्रदान कर जयगच्छ का आध्यात्मिक शासन सौंपा गया. इनका जन्म सं० १९४८ की माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन धवा गाँव में हुआ था. माता तीजादे, पिता अगराजी पारिख थे. आचार्य भीखमचन्द्र जी द्वारा १६६२ की कार्तिक शुक्ला अष्टमी को महामंदिर (जोधपुर) में लघु वय में ही आपने मुनिद्रत स्वीकार किया था. २२ वर्ष मुनि जीवन के रूप में व्यतीत किये. आपके बारे में एक विशेष उल्लेखनीय घटना यह है कि सिर्फ तीन वर्ष की दीक्षापर्याय के पश्चात् ही आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए. इससे ज्ञात होता है कि आप में असाधारण योग्यता, संयमनिष्ठा और सुशासन की अद्भुत योग्यता थी. ॐ 20033083108308 304 30838308 3082304308 brary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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