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________________ मुनि श्रीनगराजजी अणुव्रतपरामर्शक महावीर और बुद्ध-जन्म व प्रव्रज्यायें भगवान् महावीर की मौलिक जीवन-गाथा आचाराङ्ग सूत्र और कल्प-सूत्र, इन दो आगमों में मिलती है. टीका, चूणि, नियुक्ति और काव्य ग्रंथों में वह पल्लवित होती रही है. भगवान् बुद्ध का प्रारम्भिक जीवन-वृत्त मुख्यतः "जातकनिदानकथा" में मिलता है. वैसे तो समग्र आगम व त्रिपिटक ही दोनों की जीवन-गाथा के पूरक हैं, पर 'जीवनचरित की शैली में उनकी यत्किञ्चित् जीवन-गाथा उक्त स्थलों में ही उपलब्ध है. दोनों युग-पुरुषों के जन्म व दीक्षा के वर्णन परस्पर समान भी हैं और असमान भी. वे समानताएँ जैन और बौद्ध संस्कृतियों के व्यवधान को समझने में बहुत महत्वपूर्ण हैं. इसके अतिरिक्त उन वर्णनों से तत्कालीन लोक-धारणाओं, सामाजिक-प्रथाओं और धार्मिक परम्पराओं पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है. यहाँ आचारांग एवं कल्पसूत्र तथा जातकनिदानकथा के आधार से ही दोनों धर्मनायकों का जन्म से प्रव्रज्या तक का एक गवेषणात्मक अवलोकन प्रस्तुत किया जा रहा है. महावीर और बुद्ध-दोनों ही अपने प्राग्भव के अन्तिम भाग में अपने अग्रिम जन्म को सोच लेते हैं. दोनों के सोचने में जो अन्तर है, वह यह कि-महावीर सोचते हैं 'मेरा जन्म कहाँ होने वाला है' और बुद्ध सोचते हैं-मुझे कहाँ जन्म लेना चाहिये.' महावीर का जम्बूद्वीप एक लाख योजन का है और बुद्ध का जम्बूद्वीप दस हजार योजन का. महावीर जम्बू-द्वीप के दक्षिण भारत में उत्तर-क्षत्रियकुडपुर में जन्म लेते हैं, बुद्ध जम्बू-द्वीप के 'मध्य देश' में कपिलवस्तु नगर में जन्म लेते हैं. दोनों ही भूभाग बहुत निकट के हैं केवल अभिधाएँ भिन्न-भिन्न हैं. महावीर ब्राह्मणकुल में देवानन्दा के गर्भ में जन्मते हैं. इन्द्र सोचता है--अरिहन्त क्षत्रिय कुल को छोड़ ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र इन कुलों से न कभी उत्पन्न हुये, न होंगे. श्रेयस्कर है मुझे देवानन्दा का गर्भ हरण कर, भगवान् को त्रिशला क्षत्रियाणी के उदर में स्थापित करना. इन्द्र की आज्ञा से हरिणगमेषी देव वैसा कर देते हैं. बुद्ध स्वयं सोचते हैं-बुद्ध, ब्राह्मण और क्षत्रिय कुल में ही जन्म लेते हैं, वैश्य और शूद्र कुल में नहीं. अतः मुझे क्षत्रिय कुल में ही जन्म लेना है. यहाँ इन्द्र ने केवल क्षत्रिय कुल में ही तीर्थंकर का उत्पन्न होना माना है और बुद्ध ने क्षत्रिय और ब्राह्मण इन दो कुलों में बुद्ध का उत्पन्न होना माना है. . गर्भाधान के समय महावीर की माता सिंह, गज, वृषभ आदि चौदह स्वप्न देखती हैं, बुद्ध की माता केवल एक स्वप्न देखती हैं-हाथी का. स्वप्नपाठक प्रात: महावीर के लिये चक्रवर्ती या जिन होने का और बुद्ध के लिये चक्रवर्ती या बुद्ध होने का फलादेश करते हैं. 40 SISNL AIRJARA DEN JainEducatalRIL PERMANESAMRALASISATEVTAL L GULATIONALYADHE tinenierrohanlyHunt: PRATIMAHITITIONARImaReathmmmonly. n a hati.hum. .HMAN Indrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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