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________________ डॉ. देवीलाल पालीवाल : राजस्थान के प्राचीन इतिहास की शोध : ६३३ कृतियाँ उपलब्ध होती ही रहती हैं. स्फुट पद्यात्मक वीररसमूलक अनेक चरित्रात्मक कृतियाँ ऐसी हैं जिनके रचयिता अज्ञात हैं. इसी प्रकार की कतिपय पुस्तकों के सम्बन्ध में, जो टाड ने जैसलमेर से ले जाकर रायल एशियाटिक सोसायटी को दी थी और जिनमें ५ से ८ शताब्दी पूर्व की कुछ जैन पांडुलिपियाँ सम्मिलित थीं; उन्होंने बताया था कि-'इन पुस्तकों में लिख गई कई बातों से, जिनका अभी तक निरीक्षण नहीं हुआ है, प्राचीन भारत के इतिहास पर नया प्रकाश पड़ेगा.' राजस्थान में मध्यकाल में सांगा, प्रताप एवं दुर्गादास जैसे शूरवीर योद्धा उत्पन्न हुए तो कुम्भा जैसे वीर किन्तु साहित्य एवं कला प्रेमी शासक भी हुए, जिन्होंने अपने काल के साहित्य, शिल्प, स्थापत्य, संगीत एवं चित्रकला को प्रोत्साहित ही नहीं किया अपितु उनपर अपनी छाप भी छोड़ी. निस्संदेह समय की ही विध्वंस आंधी ने उस काल की अधिकांश मूल्यवान् सामग्री नष्ट कर दी, फिर भी उनमें से इतिहास के उपयोग की दृष्टि से यथेष्ट अवशेष बच गये हैं. यही बात विभिन्न स्थानों पर प्राप्त शिलालेखों एवं मन्दिरों आदि में प्राप्त ताम्रपत्रों आदि के सम्बन्ध में कही जा सकती है. कर्नल टाड ने राजस्थानियों के समक्ष इस प्रकार की वस्तुओं का ऐतिहासिक महत्त्व प्रकट किया. बाद में अंग्रेजी काल में राजस्थान के राजाओं में प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालने वाली इस प्रकार की पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्री का संग्रह करने और अपने-अपने वंश का क्रमबद्ध इतिहास तैयार कराने की प्रवृत्ति पैदा हुई, इस दृष्टि से उन्होंने पुरातत्त्व संग्रहालयों एवं पुस्तकालयों का निर्माण किया. कविराजा श्यामलदास द्वारा रचित 'वीरविनोद, एवं महाकवि सूरजमल कृत 'वंशभास्कर' नामक ऐतिहासिक ग्रन्थ उसी प्रवृत्ति के प्रतीक हैं. किन्तु राजस्थान के राजपूत शासकों के लिये पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्री का संग्रह करने एवं ऐतिहासिक शोध करने की प्रवृत्ति नई नहीं थी. मुस्लिम काल एवं मराठा काल के निरन्तर विध्वंस कार्य ने राजपूत राज्यों पर जो दुष्प्रभाव डाला उसका सर्वाधिक शिकार ज्ञान और शोध की प्रवृत्ति हुई. काल ने ज्ञान के साधनों और ज्ञान की प्रवृत्ति दोनों पर दुष्प्रभाव डाला था. इतिहास-प्रेम की दृष्टि से इस प्रदेश के मध्यकाल के शासकों में महाराणा कुम्भा का नाम सर्वोपरि आता है. महाराणा कुम्भा मेवाड़ के यशस्वी, विद्वान् एवं विद्याप्रेमी शासक थे. उन्हें सभी प्रकार की कलाओं एवं विद्याओं के प्रति अगाध रुचि थी. कुम्भा के समय उनके पूर्वजों की शुद्ध नामावली तथा उनका चरित्र उपलब्ध नहीं था, जिससे महाराणा ने अपने राज्य में मिलने वाले अनेक प्राचीन शिलालेखों का संग्रह करवाया और उनके आधार पर अपनी वंशावली ठीक की और यथासाध्य उनका वृत्तान्त भी एकत्र किया. उन्होंने एकलिंग माहात्म्य का 'राजवर्णन' नामक अध्याय अनेक प्राचीन शिलालेखों के आधार पर स्वयं संग्रह किया. उन्हीं के समय की बड़ी प्रशस्ति की तीसरी शिला के आरम्भ में जनश्रुति के आधार पर उनके पूर्वजों का वर्णन है, जिसके बाद 'राजवर्णन' प्राचीन प्रशस्तियों के आधार पर लिखा गया. शिलावाले 'राजवर्णन' का अधिकांश भाग नष्ट हो गया है, किन्तु उसकी पूर्ति महाराणा के 'एकलिंग माहात्म्य' के 'राजवर्णन' अध्याय से हो जाती है। इस भाँति महाराणा कुम्भा को राजपूताने का सर्वप्रथम प्राचीन शोधक माना जाना चाहिए. जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, राजपूताना के प्राचीन इतिहास की शोध एवं रचना की दृष्टि से आधुनिक काल में प्रथम क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित प्रयत्न अंग्रेज अधिकारी कर्नल टाड द्वारा किया गया. वे १७ वर्ष की आयु में सन् १७६६ में भारत आये थे. पदोन्नति होने के कारण वे कुछ ही अर्से में मराठा सरदार दौलतराव सिन्धिया के दरबार के ब्रिटिश राजदूत और रेजिडेन्ट मि० ग्रीम मर्सर के साथ रहने वाली सरकारी सेना की टुकड़ी के अध्यक्ष नियत हुए. उस समय सिन्धिया का मुकाम मेवाड़ में था. इसी काल से टाड का कार्य शुरू होता है. प्रारम्भ में उन्होंने मुख्यतः पिंडारियों के दमन में सहायता करने की दृष्टि से अंग्रेजी सरकार के लिये पैमाइश करके राजपूताने का भौगोलिक नकशा तैयार किया. राजपूताने का सर्वप्रथम नकशा बनाने का श्रेय भी टाड को ही मिला. सन् १८१८ में पश्चिमी राजपूताने के राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार की सन्धि होने के साथ कर्नल टाड उदयपुर, जोधपुर, कोटा, बूंदी, सिरोही और जैसलमेर राज्यों के पोलिटिकल एजंट नियुक्त हुए. १८२२ में वे स्वदेश लौट गये. टाड को वीर जातियों के इतिहास से बड़ा प्रेम था। उन्होंने राजपूतों के इतिहास की सामग्री का संग्रह करना प्रारम्भ Jain Ede Halibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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