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________________ डॉ. देवीलाल पालीवाल एम० ए०, पी-एच० डी० राजस्थान के प्राचीन इतिहास की शोध राजस्थान का प्रथम क्रमबद्ध इतिहास सन १८२६ में अंग्रेजी भाषा में इंग्लैण्ड में प्रकाशित हआ था. ग्रन्थ का नाम था 'एनल्ज़ एन्ड एन्टिक्विटीज आफ राजस्थान' और लेखक थे कर्नल जेम्स टाड, उस विश्वविख्यात ग्रन्थ का महत्त्व केवल इतना ही नहीं है कि उसमें वर्धन साम्राज्य के पतन के बाद से लेकर दिल्ली सल्तनत की स्थापना तक के राजपूत काल के प्रमुख राजवंशों का क्रमबद्ध इतिहास प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है, बल्कि उसका महत्त्व इस बात में भी है कि उसने पश्चिम के सभ्य देशों को व्यापक रूप से भारतीय ज्ञान एवं सभ्यता की उच्चता के सम्बन्ध में एक झलक दी और पूर्वीय ज्ञान के सम्बन्ध में शोध करने तथा पश्चिमी एवं पूर्वीय ज्ञान के बीच समन्वय की एक नवीन धारा प्रवाहित की. राजस्थान का इतिहास लिखते समय कर्नल टाड की मनः स्थिति एक ऐसे गोताखोर की तरह थी, जिसे समुद्र में गोता लगाते हुए एक अमूल्य रत्न प्राप्त हो गया हो और जो उस रत्न को विश्व के सन्मुख प्रदर्शित करने का हर्ष अनुभव कर रहा हो. ग्रन्थ की भूमिका के प्रारम्भ में टाड ने लिखा था “यूरोप में इस बात पर अत्यन्त निराशा प्रकट की गई है कि भारतवर्ष में गम्भीर ऐतिहासिक चिन्तन का अभाव है... ......सामान्य तौर पर लोग इस बात को स्वतः सिद्ध मानते हैं कि भारतवर्ष का कोई राष्ट्रीय इतिहास नही है. फ्रांस के एक प्रसिद्ध प्राच्य विद्या-विशारद ने उपर्युक्त धारणा के विरुद्ध यह सवाल उठाया है कि यदि भारतवर्ष का कोई राष्ट्रीय इतिहास नहीं था तो अबुलफरल को प्राचीन हिन्दू इतिहास की रूपरेखा तैयार करने के लिए सामग्री कहाँ से प्राप्त हुई ? वास्तव में काश्मीर की इतिहास सम्बन्धी पुस्तक 'राजतरंगिणी' का अनुवाद कर विल्सन महोदय ने इस भ्रम को मिटाने में काफी योग दिया है. इससे यह प्रमाणित हो गया है कि नियमित इतिहास लिखने की परिपाटी का भारतवर्ष में अभाव नहीं था. ...........तथा ऐसी सामग्री आज से कहीं अधिक मात्रा में उपलब्ध थी ...........यद्यपि फ्रांस और जर्मनी के विद्वानों के साथ-साथ कोलबुक विलकिन्स, विल्सन एवं हमारे देश के अन्य विद्वानों ने भारतवर्ष के गुप्त विद्याभंडार के कुछ विषयों को यूरोपवासियों के सन्मुख प्रकट किया है, किन्तु अब भी इतना ही कहा जा सकता है कि हम अभी केवल भारतीय ज्ञान की ड्योढ़ी तक कर्नल टाड ने ग्रन्थ की भूमिका में मध्ययुग के दौरान में हुए भारतीय साहित्य एवं कला के विनाश के सम्बन्ध में लिखते हुए कहा : 'भारतवर्ष के विभिन्न भागों में अब भी ऐसे बड़े-बड़े पुस्तकालय विद्यमान हैं जो इस्लाम धर्म के प्रवर्तकों द्वारा विनष्ट होने से बच गये हैं, उदाहरण के लिए जैसलमेर और पट्टन के प्राचीन साहित्य के संग्रह...........इस प्रकार के कई अन्य छोटे-छोटे संग्रहालय मध्य एवं पश्चिमी भारत के प्रदेशों में विद्यमान हैं जिनमें से कुछ तो राजाओं की व्यक्तिगत सम्पत्ति हैं और कुछ जैनसम्प्रदाय के अधिकार में हैं.' कर्नल टाड का ग्रंथ, प्रकाश-स्तम्भ बन गया और उसकी रोशनी में पश्चिमी देशों के पुरातत्त्ववेत्ता एवं भारतीय विद्वान् Jain Edit www.anendrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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