SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 663
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय वाली जिनमूर्ति है, उसका अभिषेक करने के लिये ही मानों गंगा उस मूर्ति के मस्तक पर हिमवान् पर्वत से अवतीर्ण हुई है. त्रिशूल वैदिक परंपरा में शिव को त्रिशूलधारी बतलाया गया है तथा त्रिशूलांकित शिवमूर्तियाँ भी उपलब्ध होती हैं. जैनपरंपरा में भी अर्हन्त की मूर्तियों को रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सयग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र) के प्रतीकात्मक त्रिशूलांकित त्रिशूल से सम्पन्न दिखलाया गया है. आचार्य वीरसेन ने एक गाथा त्रिशूलांकित अर्हन्तों को नमस्कार किया है.' सिन्धु उपत्यका से प्राप्त मुद्राओं पर भी कुछ ऐसे योगियों की मूर्तियाँ अंकित हैं जो दिगम्बर हैं, जिनके शिर पर त्रिशूल हैं और कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानावस्थित हैं. कुछ मूर्तियाँ वृषभचिह्न से अंकित हैं. मूर्तियों के ये दोनों रूप महान् योगी वृषभदेव से संबंधित हैं. इस के अतिरिक्त खंडगिरि की जैन गुफाओं (ईसापूर्व द्वितीय शताब्दी) में तथा मथुरा के कुशानकालीन जैन आयागपट्ट आदि में भी त्रिशूलचिह्न का उल्लेख मिलता है.२ डा० रोठ ने इस त्रिशुल चिह्न तथा मोहनजोदड़ो की मुद्राओं पर अंकित त्रिशूल में आत्यन्तिक सादृश्य दिखलाया है. ब्राह्मीलिपि तथा माहेश्वर सूत्र जैसी कि जैन मान्यता है तथा पहले हमने महापुराण की पांचवीं सन्धि में देखा कि भगवान ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत आदि को सम्पूर्ण कलाओं में पारंगत किया और अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपिविद्या (अक्षर विद्या) तथा सुन्दरी को अंकविद्या सिखलाई. भारत की प्राचीनतम लिपि ब्राह्मी लिपि है. जैनपरम्परा में तथा उपनिषद् में भी भगवान् ऋषभदेव को आदि ब्रह्मा कहा गया है, अतः ब्रह्मा से आई हुई लिपि ब्राह्मी कहलाई जा सकती है तथा ब्रह्मी से सम्बन्धित लिपि का नाम भी ब्राह्मी हो सकता है. दूसरी ओर पाणिनि ने अइउण् आदि सूत्रों (सूत्रबद्ध वर्णमाला) को 'माहेश्वर' बतलाया है, जिसका अर्थ है महेश्वर से आये हुए. वैदिक परंपरा में जहाँ शिव को महेश्वर कहा गया है, वहाँ जैनपरम्परा में भगवान् ऋषभदेव ही महेश्वर अथवा ब्रह्मा (प्रजापति) हैं. इस प्रकार वृषभदेव द्वारा ब्राह्मी पुत्री को सिखाई गई ब्राह्मीलिपि की अक्षरविद्या तथा माहेश्वर सूत्रबद्ध वर्णमाला दोनों में जहाँ स्वरूपतः ऐक्य है, वहाँ यह ऐक्य ही दोनों के प्रवर्तक संबंधी ऐक्य को इंगित करता है. वृषभ [बैल] का योग वैदिक परम्परा में शिव का वाहन वृषभ (बैल) बतलाया गया है. जैनमान्यतानुसार भगवान् वृषभदेव का चिह्न बैल है. गर्भ में अवतरित होने के समय इनकी माता मरुदेवी ने स्वप्न में एक वरिष्ठ वृषभ को अपने मुख-कमल में प्रवेश करते हुए देखा था, अत: इनका नाम वृषभ रक्खा गया. सिन्धु घाटी में प्राप्त वृषभांकित मूर्तियुक्त मुद्राएँ तथा वैदिक १. तिरया -तिसूलधाग्यि.........."धवलाटीका, १,४५-४६. २. (a) Kurtshe, list of ancient monuments protected under Act VII of 1904 (Arch. Survey of India New imperial series vol 4) Trisula in Anant gumpha P. 273 and in Trisula Gumpha P.280. (b) Smith Jain stupa and other Antiquities of Mathura Ayegapata tablets pls. IX,X and XI. ३. ब्रह्मा देवानां प्रथम संबभूव विश्वस्थ कर्ता भुवनस्य गोप्ता । "मुण्डकोपनिषद् : १,१. ४. ब्रह्मण : आगता (ब्रह्मा से आई हुई) इस अर्थ में व्याकरणशास्त्र द्वारा ब्रह्मी शब्द की निष्पति होती है. ५. इति माहेश्वराणि सूत्राण्यणादिसंज्ञार्थानि. --सिद्धांतकौमुदी, पृ० सं० २. ६. अथर्ववेदः १६, ४२, ४१६, ४३ सूक्त, यजुर्वेद ४०, ४६ ऋग्वेद ४, ५८. aaaaaa Jain on jainelprary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy