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________________ ६२२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय धर्म का एक अंग बन गई. दूसरी ओर उपनिषदों से प्रतीत होता है कि रुद्र की उपासना का प्रचार नवीन धार्मिक तथा दार्शनिक विचारधारा के प्रवर्तकों में हो रहा था, और ये लोग रुद्र को परब्रह्म मानते थे. सूत्रयुग में रुद्र को 'विनायक' की उपाधि दी गई और यही अपर वैदिक काल में गणेश नाम से प्रसिद्ध हुआ. रुद्र तथा विनायक प्रारम्भ में एक ही देवता के दो रूप थे, परन्तु कालक्रम से यह स्मृति लुप्त हो गयी और गणेश को रुद्र का पुत्र माना जाने लगा. उपनिषत्कालीन भक्तिवाद ने देश के धार्मिक आचार-विचार में युगान्तर उपस्थित कर दिया. कर्मकाण्ड का स्थान स्तुति, प्रार्थना तथा पूजा ने ले लिया और मन्दिरों के निर्माण के साथ मानवाकार तथा लिगाकार में रुद्र-मूर्तियों की प्रतिष्ठा तथा पूजा आरम्भ हो गई तथा रुद्र का नाम भी अब शिव के रूप में लोकप्रचलित हो गया. पाणिनि के समय में शिव के विकसित स्वरूप के प्रमाण वे सूत्र हैं, जिन्हें 'माहेश्वर" बतलाया गया है. वैसे पाणिनि की अष्टाध्यायी में रुद्र, भव और शर्व शब्दों का भी उल्लेख मिलता है.२ रामायण में रुद्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप के दर्शन होते हैं. यहाँ उन्हें मुख्यत: 'शिव' कहा जाता है. महादेव, महेश्वर, शंकर तथा त्र्यम्बक नामों का अधिक उल्लेख मिलता है. यहाँ उन्हें देवताओं में सर्वश्रेष्ठ देव-देव कहा गया है, और अमरलोक में भी उनकी उपासना विहित दिखलाई गई है.४ एक अन्य स्थल पर उन्हें अमर, अक्षर और अव्यय भी माना गया है.५ एक स्थान पर उन्हें हिमालय में योगाभ्यास करते हुए दिखलाया गया है.६ रामायण में शिव के साथ देवी की उपासना भी भक्त जन करते हैं. इन दोनों को लेकर जिस उपासनापद्धति का जन्म हुआ, वेदोत्तर काल में वही शैवधर्म का सर्वाधिक प्रचलित रूप बना. रामायण में शिव की 'हर तथा 'वृषभध्वज इन दो नवीन उपाधियों का भी उल्लेख मिलता है. महाभारत में शिव को परब्रह्म, असीम, अचिन्त्य, विश्वस्रथा, महाभूतों का एक मात्र उद्गम, नित्य और अव्यक्त आदि कहा गया है. एक स्थल पर उन्हें सांख्य के नाम से अभिहित किया गया है और अन्यत्र योगियों के परम पुरुष नाम से. वह स्वयं महायोगी हैं और आत्मा के योग तथा समस्त तपस्याओं के ज्ञाता हैं. एक स्थल पर लिखा है कि शिव को तप और भक्ति द्वारा ही पाया जा सकता है.'' अनेक स्थलों पर विष्णु के लिये प्रयुक्त की गई योगेश्वर" की उपाधि इस तथ्य की द्योतक है कि विष्णु की उपासना में भी योगाभ्यास का समावेश हो गया था, और कोई भी मत इसके वर्धमान महत्त्व की उपेक्षा नहीं कर सकता था. महाभारत में शिव के एक अन्य नवीन रूप के दर्शन होते हैं और वह है उनका 'कापालिक' स्वरूप. यह स्वरूप मृत्युदेवता वैदिक रुद्र का विकसित रूप मालूम देता है. यहाँ उनकी आकृति भक्तिवाद के आराध्यदेव शिव की सौम्य १. माहेश्वर सूत्र इस प्रकार हैं-अइ उण, कालू क. ए ओ ङ, ऐ ओ च, ह य व र, ल ण, अम ङ ण न म्, म भ ञ, घढ ध ५, ज व ग ड द श, ख फ छ ठ थ च ट त ब, क प य श प सर, हल. २. अष्टाध्यायो : १,४६, ३, ५३, ४,१००. ३. रामायण, बालकाण्डः ४५, २२-२६, ६६.११-१२, ६, १,१६, २७. ४. वही, १३, २१. ५. वही, ४. २६. ६. वही,३६, २६. ७. रामायण, बालकाण्डः ४३, ६. उत्तरकाण्डः ४, ३२, १६, २७, ८७, ११. ८. वही, युद्धकाण्डः ११७, ३ उत्तरकाण्डः १६, ३५, ८७, १२. ६. महाभारत द्रोणः ७४,५६,६१.१६९, २६. १०. वहीः अनुशासनः १८,८,२२. ११. अनुशासन वही: १८, ७४ आदि. HDMCLI _Jain tumadan www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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