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________________ नथमल द्गड़ तथा गजसिंह राठौड़ : श्री एल०पी० जैन और उनकी संकेतलिपि : ६०५ 'इस लिपि में शुद्धतापूर्वक लिखा हुआ लेख इसी लिपि का जानने वाला दूसरा विद्वान् भी भली भाँति पढ़ सकेगा. दूसरे शार्टहैण्डों के संकेतों में प्राय: मोटाई और बारीकपन जरा कम ज्यादा हो जाने से मतलब कुछ का कुछ निकल आता है और वे संकेत इतने अधिक और कठिन होते हैं कि उनका पूर्णतया हर समय याद रखना दुष्कर हो जाता है और यदि चार छः महीने शार्टहैण्ड लिखने का अभ्यास न किया जाय तो उसे फिर कठिन प्रयास करना पड़ता है. तब ही वह अपना कार्य उचित रूप से करने में सफल हो सकता है. इसके अतिरिक्त उन संकेतों के मोटे और पतलेपन के हेतु खास तौर का कीमती फाउन्टेन पैन रखने की आवश्यकता होती है. परन्तु मैंने चिह्नों को सरल और थोड़े बनाने का पूर्णतया यत्न किया है. ताकि इस लिपि का जानने वाला दूसरा व्यक्ति भी इस लिपि के लेखक के लेख का अनुवाद कर सके और यदि कुछ समय तक कारणवश अभ्यास छूट भी जाय तो उन संकेतों को सिर्फ एक ही सप्ताह में फिर से तैयार कर सके. इसके लिखने में सिर्फ बढ़िया नोकदार पैंसिल ही काफी है. 'उपरोक्त बातों के पढ़ने से पाठकों को यह भी भलीभांति विदित हो ही गया होगा कि इस लिपि को जानने के लिये न तो विशेष पाण्डित्य की ही आवश्यकता है, और न अधिक समय की ही. इस लिपि के संकेतों पर एक साधारण पढ़ालिखा यानि एक चौथी कक्षा उत्तीर्ण चतुर विद्यार्थी पूर्ण परिश्रम से सिर्फ ३ महीने के प्रयास ही से इस लिपि के संकेत पर अपना आधिपत्य प्राप्त कर सकता है और गति बढ़ाने पर किसी भी हिन्दी वक्ता के शब्दों को शीघ्रतापूर्वक लिपिबद्ध करने में समर्थ हो सकता है. हमें आशा है कि यह लिपि कचहरी, आफिस वक्ताओं के नोट, अध्यापकों के नोट और समाचारपत्रों के संवाददाताओं को, जहाँ भी शीघ्रता की आवश्यकता होगी, उन सबके लिये समय की बचत और सुचारु रूप से कार्य साधन करने में अति लाभदायक सिद्ध होगी. 'अन्त में मैं उन महात्मा जैनाचार्य पूज्यवर मुनि श्रीजवाहरलालजी महाराज का परम कृतज्ञ हूँ कि जिनके मधुर और विद्वात्तापूर्ण भाषण ही इसके आविष्कार के प्रधान कारण थे और उनके भाषणों को लिपिबद्ध करने की आनन्दमय आशा ही सर्व कठिनाईयों को दूर करने में मेरा आशामय प्रदीप था जो कि मुझे सफलता तक पहुँचा सका.' आज उनका यह प्रयास सफलता के शिखर पर पहुंच गया है. सैंकड़ो की संख्या में इस जैन संकेतलिपि से निष्णात लेखक देश भर में फैले हुए हैं. इस संकेत लिपि के लेखक मुख्यतया राजस्थान, मध्यप्रदेश, एवं महाराष्ट्र, की विधानसभाओं में प्रमुख रूप से सरकारी रिपोर्टरों के पद पर कार्य कर रहे हैं. वैसे देश भर के सरकारी एवं गैरसरकारी कार्यालयों में इनके जानकारों की भरमार है. यह जैन संकेतलिपि इस देश में प्रचलित समस्त संकेतलिपियों में अधिक सरल और शीघ्रग्राह्य गिनी जाती है. यही कारण है कि हर वर्ष सैकड़ों की संख्या में इस देश के नवयुवक इस लिपि का अध्ययन करके भावी जीवन का निर्माण कर रहे हैं. सन् १६३१ में इन्होंने जैन संकेतलिपि का निर्माण किया और जैन जगत् में ही नहीं, देश में वे अपनी एक अमर यादगार छोड़ गये. आज उनकी यह संकेतलिपि हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, बंगला, मराठी आदि देश की समस्त भाषाओं में प्रचलित है. समस्त भाषाओं में इसका साहित्य छपा हुआ है. आपने अपने जीवनकाल में ही इस अविष्कार को सफल होते देख लिया, यह प्रसन्नता की बात है. उस महान् कर्मवीर गृहस्थसंत के प्रति हम श्रद्धा से नतमस्तक हैं. वास्तव में उनका समग्र जीवन आदर्श और अत्यन्त स्पृहणीय रहा. न केवल जैन समाज ही प्रत्युत समग्र देश चिरकाल तक उनका आभारी रहेगा. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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