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________________ Jain Eddes आचार्य मुनिजनविजय वैशालीनायक चेटक और सिंधुवीर का राजा उदायन २१ को कहा गया. राजगृह पहुँच कर उसने भगवान् बुद्ध के समीप प्रव्रज्या ग्रहण कर ली और बुद्ध का शिष्य बन गया. इधर शिखण्डी अपने दो दुष्ट मंत्रियों की संगति से अनीति के मार्ग पर चलने लगा और प्रजा को भी सताने लगा. उसने दो पुराने अच्छे मंत्रियों को अलग कर दिया. कुछ व्यापारियों से जब इस वृद्ध भिक्षु को अपने पुत्र के अन्याय का पता लगा तो वह उसे समझाने के लिये रोरुक नगर की ओर चल पड़ा. जब दोनों दुष्ट मंत्रियों को इस बात का पता चला तो उन्होंने उसे मार्ग में ही रोकना अच्छा समझा. उन्होंने शिखण्डी से कहा - ' सुना है कि वृद्ध भिक्षु यहाँ आ रहा है.' इस पर शिखण्डी ने कहा- 'अब तो वह प्रव्रजित हो गया है, भले आये' इस पर मंत्रियों ने कहा--- जिस व्यक्ति ने एक दिन भी राज्यश्री का अनुभव कर लिया हो वह पुनः राज्य पाने का लोभ संवरण नहीं कर सकता. इस पर शिखण्डी ने कहा—-अगर वे पुनः राज्य प्राप्त करना चाहते हैं, तो मैं उन्हें अपना राज्य दे दूंगा. मंत्रियों ने उसे कहा- क्या प्राप्त राज्य को इस प्रकार खो देना बुद्धिमत्ता है इस तरह मंत्रियों ने कई तरह से समझा-बुझाकर वृक्ष को राज्य में न आने देने के लिये शिखण्डी को राजी किया. यहाँ तक कि दुष्ट मंत्रियों की बातों में आकर उसने कुछ घातक पुरुषों को भेज कर अपने पिता का शिरच्छेद करवा दिया. : पिता की मृत्यु के बाद वह राजा प्रजा पर खूब अत्याचार करने लगा. एक समय शिखण्डी अपनी मण्डली के साथ नगरपरिक्रमा के लिये निकला. मार्ग में उसे भिक्षु कात्यायन मिला. कात्यायन भिक्षु को देखकर शिखण्डी अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और उसने उस पर एक-एक मुट्ठी धूल डालने की प्रजाजनों को आज्ञा दी. राजाज्ञा से लोगों ने उस भिक्षु पर इतनी अधिक धूल डाली कि वह उसी में दब गया. पुराने हिरु, भिरु नाम के मंत्रियों को जब इस बात का पता चला तो वे उस भिक्षु के पास आये और उसे मिट्टी से बाहर निकाला. भिक्षु ने मंत्रियों से कहा - ' अब इस नगर के विनाश का समय आ गया है. आज से सातवें दिन धूलि दृष्टि होगी जिससे सारा नगर नष्ट हो जायगा. अगर तुम अपना बचाव करना चाहते हो तो अपने घर से नदी के तट तक एक सुरंग बनवा लेना और नदी के तीर पर एक नाव भी तैयार रखना. जब नगरप्रलय का समय आयगा उस समय तुम नाव पर बैठ कर अन्यत्र चले जाना. नगरप्रलय में प्रथम दिन बड़ी आंधी आएगी. वह आंधी नगर की सारी दुर्गन्धित धूलि को आकाश में उड़ाकर ले जाएगी. दूसरे दिन फूलों की वर्षा होगी. तीसरे दिन वस्त्रों की वर्षा होगी. चौथे दिन चांदी बरसेगी. पाँचवें दिन सोने की वर्षा होगी. छठे दिन रत्न बरसेंगे और सातवें दिन धूल की दृष्टि होगी जिससे सारा नगर भुमिसात् हो जायगा.' कात्यायन की भविष्यवाणी के अनुसार सातवें दिन एक भयंकर आंधी आई जिससे सारे नगर की धूल उड़ गई. मंत्रियों को भिक्षु की भविष्यवाणी पर विश्वास हो गया. उन्होंने अपने घर से नदी तक सुरंग बना ली. छठे दिन जब रत्नों की वर्षा हुई तो उन्होंने नाव को रत्नों से भर लिया और उसमें बैठकर अन्य देश चले गये. वहां हिरु मंत्री ने हिरुकच्छ और भिरु मंत्री ने भिरुकच्छ नाम का देश बसाया. कात्यायन भिक्षु नगर के नष्ट हो जाने पर लम्बकपाल, श्यमांक वोक्काण आदि देश होता हुआ सिन्धु नदी के किनारे पर आ पहुँचा वहां से मध्यदेश आया और श्रावस्ती नगरी में, जहां भगवान् बुद्ध अपने संघ के साथ रहते थे, आकर उनके संघ में मिल गया. जहां तक मुझे स्मरण है, यह कथा दक्षिण के हीनयान संप्रदाय के पाली साहित्य में कहीं भी नहीं मिलती. किन्तु उत्तर के महायान संप्रदाय के संस्कृत एवं टिबेटियन साहित्य में उपलब्ध होती है. 'दिव्यावदान' के सिवा क्षेमेन्द्र के 'अवदानकल्पलता' में भी यह कथा आती है. अस्तु, यहां इतना ही बताना अभिप्रेत है कि चीनी यात्री व्हेएन सींग [ह्य वत्सोंग ] द्वारा वर्णित 'हो-लो लो किअ' नगर के नाश की और दिव्यावदान के 'रोरुक' नगर के नाश की कथा में कहीं अंतर दृष्टिगोचर नहीं होता. इससे यह मालूम होता है कि इन दोनों कथाओं का मूल स्रोत एक ही है. इतना ही नहीं, 'दिव्यावदान' के 'रोरुक' नगर का ही चीनी उच्चारण 'हो- लो- लो-किअ' हो ऐसा लगता है. थोमसवाटर्स इस नाम की व्युत्पत्ति O-Lao-Lo Ka ( Rallaka?) इस प्रकार करते हैं. 'दिल' महाशय Ho-Lo-Lo-Kia ऐसा करते हैं. 'बिल' jio to lotorol www Potatolo i olol olololol ololol brary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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