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________________ ५७२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय बेल्गोल में एक जिनमन्दिर बनवाया गया था. यह बोप्पण महाराजा बिट्टिदेव का चतुर सेनापति था. बोप्पण की पत्नी सेनानायक मरियण्ण एवं भरत की (व्योटी) छोटी बहन थी. मरियण्ण और भरत ये दोनों प्रथम नरसिंह (ई० सन् ११४१-११७३) के सेनानायक रहे इन सहोदरों ने सैकड़ों मन्दिर बनवाये और श्रवणबेल्गोल में चन्द्रगिरि पर भरतबाहुबली की मूर्तियाँ भी स्थापित की. गंडविमुक्त सिद्धान्तदेव इन सहोदरों के श्रद्धेय गुरु थे. इस होयसल सेना में पुरुष ही नहीं, अपने पूज्य पति सेनापति पुनीष के साथ जैन वीरांगना जक्कियब्बा भी सेनानायिका रही. ये दोनों पति-पत्नी श्रीअजितसेनाचार्य के शिष्य थे. उपर्युक्त ये सभी बातें श्रवणबेल्गोल के शिलालेखों में मौजूद हैं. जैनधर्म का परम श्रद्धालु हुल्ल होय्सल शासक बिट्टिदेव, नरसिंह और वीरबल्लाल इन तीनों के शासन काल में कोशाधिकारी था. हुल्ल को शासन-कार्य एवं राज्यघटना के निर्माण में योगंधराय और राजनीति में बृहस्पति से भी प्रवीण बतलाया है. यह महामण्डलाचार्य देवकीति का शिष्य था. इसने थवणबेल्गोल में शिलामय 'चतुर्विशतित्तीथंकरबसदि' के नाम से एक सुन्दर जिन मन्दिर बनवाया था. राजा नरसिंह जब यात्रार्थ श्रमणबेल्गोल गया, तब इस मन्दिर की पूजा के लिये इसने सबणेरु नामक ग्राम को दान में दे दिया था. हुल्ल की प्रार्थना से इस दान का समर्थन बल्लाल द्वितीय ने भी किया था. इस प्रकार गंगराज, हुल्ल और बोप्पण आदि श्रद्धालु जैन श्रावकों ने होय्सल शासकों से जैन धर्म की बड़ी-बड़ी सेवाएँ कराई हैं. इन लोगों ने स्वयं भी जैनधर्म की अपार सेवा बजाकर, जैन इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया है. अब राष्ट्र कूट राजवंश को लीजिए. इस वंश के शासनकाल में भी कर्णाटक में जैनधर्म विशेष उन्नति पर था. राष्ट्रकूटगंशी अमोघवर्ष प्रथम (ई० सन् ८१५-७७) जैनधर्मानुयायी था. इसकी राजधानी मलखेड या मान्यखेट थी. इसके राज्य में कर्णाटक ही नहीं, महाराष्ट्र का बहुभाग भी शामिल था. अमोघवर्ष के गुरु आदि पुराण के रचयिता भगवज्जिनसेन थे. इसे नृप तुंग और अतिशयधवल उपाधियाँ थीं. अमोघवर्ष ने वैभवपूर्णक राज्य शासन कर अंत में जिनदीक्षा ली थी. अमोघवर्ष के शासनकाल में जैन वाङ्मय विशेष रूप से प्रवर्धमान हुभा. धवला, जयधवला, शाकटायनव्याकरण की अमोघवृत्ति और गणितसार आदि बहुमूल्य कृतियाँ इसी के शासनकाल में रची गईं. राष्ट्रकूट शासकों में प्राय: सभी शासक जैनधर्म के अनुयायी थे. कृष्ण द्वितीय के गुरु आचार्य गुणभद्र थे. इसी के शासनकाल में जैन वीरांगना जक्किमब्बे नागरखंड में दक्षता से राज्य करती रही. राष्ट्रकूट के अंतिम शासक इन्द्र ने अन्त में श्रवणबेलगोल जाकर ई० सन् ६८४ में समाधिमरण स्वीकार किया था. राष्ट्रकूट शासकों के सामंत, जैन वीर बंकेय, इसका सुयोग्य पुत्रलोकादित्य, नागार्जुन आदि कर्णाटकीय राजनीति की उन्नति एवं संस्कृति के उत्थान में पूर्ण सहयोगी रहें. चालुक्यवंश जैन धर्मानुयायी नहीं था. फिर भी इस वंश के शासक जैनधर्म से विशेष प्रभावित थे. इस वंश के पुल केशि द्वितीय के गुरु जैनाचार्य रविकीर्ति थे. इसी प्रकार विनियादित्य के धर्मगुरु जैन विद्वान् निर्विव्यदेव रहे विक्रमादित्य का विवाह तो जैन राजवंश से ही हुआ था. इसकी रानी तथा इंगलिगि प्रांत की शासिका जाकलदेवी के द्वारा वहाँ पर दो सुन्दर जिनमन्दिर निर्माण कराये गये थे. चालुक्य शासकों ने जैन कवियों को भी सहर्ष आश्रम दिया था. कन्नड आदिपुराण का कर्ता यशस्वी महाकवि पंप चालुक्य राज-सभा का भूषण था. बट्टिग के द्वारा निर्मापित एक जिनालय के लिये अरिकेसरी ने सोमदेवसूरी को एक गांव दान में दिया था. रामस्वामी अय्यंगार के मत से कलचूरि राजवंश पक्का जैनधर्मानुयायी था. इस बात को उन्होंने अपनी कृति में पुष्ट प्रमाणों से सिद्ध किया है. विजयनगर साम्राज्य के काल में भी जैन वीरों का साहस कुंठित नहीं हुआ था. सेनानायक बैचण्ण, वीर, शांत, दंडनायक चमूप आदि जैन ही थे. इन्हीं वीरों की मदद से हरिहर को सिंहासन मिला. बुक्कराय के शासनकाल में भी दण्डनायक, मुण्डप मल्लप्प और बैचप्प का पुत्र इरुगप्प आदि सम्मान पूर्वक अविकारारूढ़ रहे. इरुगप्प हरिहर द्वितीय का भी मंत्री था. प्रथम देवराय की पत्नी भीमादेवी जैनधर्मावलंबिनी थी. इसने 'श्रवणबेलगोलस्य मंगायिबसदि' में भगवान् पावनाथ की मूर्तिस्थापित की थी. देवराय ने भी विजयनगर में पार्श्वनाथबसदि को निर्माण कराया था. विजयनगर के इन शासकों ने जैनधर्म से प्रवाहित हो, अनेक जिनालयों को दान भी दिया है. इस वंश के प्रतापी सम्राट् बुक्कराय प्रथम Jain Education Inte myamelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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