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________________ ५६४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय अतएव उक्त प्रसंग में सूत्रकार शब्द से केवल आचार्य उमास्वामी अभिप्रेत न होकर तत्वोपदेशक सभी आचार्य अभिप्रेत हैं-यह निःसन्दिग्ध सिद्ध होता है. तत्त्वप्रतिपादक शास्त्र के प्रारम्भ में अखिल तत्त्वज्ञान के प्रभवस्थान परम गुरु तीर्थंकर तथा तत्त्वार्थनिर्णय में सहायभूत गणधरादि गुरुपरम्परा के प्रति कृतज्ञता निवेदन करना ही आध्यान है. और वही शास्त्रसिद्धि का हेतु है. हां, अपरगुरुप्रवाह के अन्तर्गत सूत्रकारों में आचार्य उमास्वामी का स्थान प्रमुख है, जैसा कि आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी प्रमाणमीमांसा (पृ० १) में कहा है--प्रेक्षस्व वाचकमुख्यविरचितानि सकलशास्त्रचूडामणि-भूतानि तत्त्वार्थसूत्राणीति. आप्तपरीक्षागत आचार्य विद्यानन्द की यह उक्ति भी इस स्थल पर मननीय हैन हि परम्परया मोक्षमार्गस्य प्रणेता गुरुपर्वक्रमाविच्छेदादधिगततत्त्वार्थशास्त्रार्थोऽप्यस्मदादिभिः साक्षाद्विश्वतत्त्वज्ञतायाः समाश्रयः साध्यते प्रतीतिविरोधात्, किं तहि साक्षान्मोक्षमार्गस्य सकलबाधकप्रमाणरहितस्य यः प्रेणता स एव विश्वतत्त्वज्ञताश्रय: तत्त्वार्थसूत्रकारैरुमास्वामिप्रभृतिभिः प्रतिपाद्यते भगवद्भिः.' यहां तत्त्वार्थ शब्द और सूत्रकार शब्दये दोनों व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं. अन्यथा प्रभृति शब्द निरर्थक होगा, कारण तत्त्वार्थ नामक ग्रंथ के सूत्रकार के मूलरूप में केवल उमास्वामी ही प्रसिद्ध हैं, अन्य कोई आचार्य नहीं. हां तत्त्वार्थ के वृत्तिकार, वातिकककार आदि के रूप में अन्य आचार्य भी प्रसिद्ध हैं. अतएव उक्त स्थल में अपने व्यापक अर्थ में ही सूत्रकार शब्द प्रयुक्त हुआ है- यह स्वत: सिद्ध है. तत्त्वार्थ शब्द भी यहां सामान्य अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, न कि ग्रंथविशेष के अर्थ में. अतएव सन्मतिप्रकरण आदि के कर्ता आचार्य सिद्धसेन दिवाकर आदि का समावेश भी तत्त्वार्थसूत्रकार शब्द में हो जाता है. सन्मतिप्रकरण सन्मतिसूत्र के नाम से प्रसिद्ध है. आप्तपरीक्षा के निम्नोक्त वाक्यों में भी सूत्रकार शब्द ऐसे ही व्यापक अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं-गुरुपर्वक्रमात् सूत्रकाराणां परमेष्ठिन: प्रसादात् ....... श्रेयोमार्गस्य संसिद्धिरभिधीयते (पृ० ८), परमेष्ठिन: प्रसादात्सूत्रकाराणां श्रेयोमार्गस्य संसिद्धेर्युक्तं शास्त्रादौ-परमेष्ठिगुणस्तोत्रम् (पृ०६). प्रस्तुत प्रसंग में सूत्र और शास्त्र के स्वरूपविषयक आचार्य विद्यानन्द का निम्नोक्त उल्लेख विवेचनीय है-वर्णात्मक हि पदं, पदसमुदायविशेषः सूत्रं, सूत्रसमूहः प्रकरणं, प्रकरणसमितिराहिनकं, आहिनकसंघातोऽध्यायः, अध्यायसमुदायः शास्त्रमिति शास्त्रलक्षणम्. दशाध्यायीरूप सम्पूर्ण शास्त्र के कर्ता होने के कारण आचार्य उमास्वामी शास्त्रकार हैं, और पदसमुदायविशेष रूप सूत्रों के कर्ता होने के कारण वे सूत्रकार भी हैं. इसी तरह दूसरे आचार्यों (उदाहरणार्थ आचार्य हेमचन्द्र, वादिदेवसूरि आदि) को भी पदसमुदायविशेष रूप सूत्रों के कर्ता के रूप में सूत्रकार और सम्पूर्ण ग्रन्थ के कर्ता रूप से शास्त्रकार कहा जा सकता है. इस प्रसंग में सूत्र का निम्नोक्त लक्षण भी ध्यान-योग्य है : अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद् विश्वतोमुखम् , अस्तोभमनवद्य च सूत्र सूत्रविदो विदुः । इन सारी बातों को ध्यान में रख कर ही आचार्य विद्यानन्द 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' श्लोक के रचयिता को कभी एक अखण्ड अर्थ के वाचक विशिष्ट पदसमुदाय रूप इसी श्लोक के कर्ता के रूप में सूत्रकार और कभी सम्पूर्ण तत्त्वार्थशास्त्र के रचयिता रूप से शास्त्रकार कहते हैं. मोक्षमार्गस्य नेतारम् श्लोक के रचयिता को तत्त्वार्थशास्त्रकार कहने में भी कोई बाधा नहीं, कारण उमास्वामिरचित मूल तत्वार्थसूत्र की तरह उस पर स्वरचित वार्तिक तथा अन्य व्याख्यान ग्रन्थ को भी शास्त्र कहना प्राचार्य विद्यानन्द को इष्ट है. उन्होंने स्पष्ट रूप से निम्नोक्त उद्धरण में यह बात कह भी दी हैतत्त्वार्थविषयत्वाद्धि तत्त्वार्थों ग्रन्थः प्रसिद्धः.........प्रसिद्धे च तत्त्वार्थस्य शास्त्रत्वे तद्वार्तिकस्य शास्त्रत्वं सिद्धमेव १. आप्तपरीक्षा, पृ० २६०-१ (पादटिप्पण सहित). पण्डित श्रीदरबारीलालजी कोठिया सम्पादित पाठ संगत प्रतीत नहीं होता. उनके पाठ में-तत्त्वार्थसूत्रकारैरुमास्वामिप्रभृतिभिः यह अंश नहीं है तथा भगद्धिः के स्थान पर भगवतः है. प्रस्तुत उद्धरण में आये हुर अस्मदादिभिः अंश की संगति के लिये परित्यक्त अंश आवश्यक है. तत्त्वार्थसूत्रकार के स्थान पर तत्वार्थसूत्रकारादिभिः पाठ भी संभव नहीं,कारण आदि शब्द विवक्षित प्रकर्ष का बाधक होगा. 'भगवद्धिः' पाठ को आवश्यकता भी स्पष्ट है. २. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ० २ । देखो न्यायवार्तिक (न्यायदर्शन, पृ०४). ३. युक्तिदीपिका, पृ० ३. वाचस्पति मिश्रकृत न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका (न्यायदर्शन, पृ० ७०), में उद्धृत. - w INTIMAHILE WAJOLYA AN Y muslimmah IMA n ti Pranam amsANIROMLAIMIMELATAST I NITHAmeanARNITINADHIMALAMIC HIMNOMANIM. JAITRI...IMATMreMorary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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