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________________ काका कालेलकर सत्याग्रह और पशु प्रश्न--अगर सत्याग्रह आत्म-शक्ति का प्रयोग है तो क्या सिंह आदि हिस्र जानवरों के खिलाफ सत्याग्रह चल सकता है ? जवाब-जिस अर्थ में आप सत्याग्रह शब्द का उपयोग करते हैं उस अर्थ में सिंह आदि पशुओं के प्रति सत्याग्रह का उपाय कारगर नहीं हो सकेगा. पशुओं में बुद्धिशक्ति परिमित पायी जाती है. पशुओं में अन्तर्मुख होकर सोचने की शक्ति हमारे देखने में आयी नहीं. प्रथम आपका हिंस्र शब्द लीजिये. गाय घास खाती है; बंदर फल-पत्ते आदि खाता है, पक्षी धान्य भी खाते हैं और कीड़े आदि जन्तुओं को भी खा जाते हैं, इसी तरह सिंह, बाघ और भेड़िया पशुओं को मार कर खा जाते हैं. उनका यह आहार ही है. पशुओं का दुःख हम देख सकते हैं इसलिए उनको खानेवालों को हम हिस्र कहते हैं. इसमें भी सिंह बाघ भेड़िया आदि से हमें भय है इसलिए हम उन्हें हिंस्र कहते है. बिल्ली भी तो हिंस्र है. साँप अजगर आदि सरीसृप भी हिंस्र हैं. वे हमें काटते हैं लेकिन फाड़ नहीं खाते, इसलिए उनके बारे में हिंस्र शब्द का प्रयोग देखने में नहीं आता. हिस्र शब्द केवल आपका अपनी दृष्टि से प्रेरित Re-action है, प्रतिक्रिया है. जिसमें परिवर्तन लाने के लिये आप सत्याग्रह का प्रयोग करेंगे उसके प्रति द्वेष, तिरस्कार आदि भावना हटाने की आपकी कोशिश होनी चाहिए. पशु में सुधार हो सकता है ऐसी आपकी भावना भी कहाँ तक है ! इस तरह सत्याग्रह का प्रभाव डालने की शक्ति आपके पास नहीं है और सत्याग्रह के असर के नीचे आने का माद्दा ही पशु में नहीं है. इसलिए मैंने तुरन्त स्पष्ट 'नहीं' का जवाब दिया. लेकिन इस बारे में जरा गहराई में उतरना जरूरी है. चन्द ईसाई मिशनरियों से बातचीत हो रही थी. उन्होंने कहा कि जानवरों को आत्मा नहीं होता. उनमें जीव है, प्राण है किन्तु आत्मा नहीं है. मैंने कहा कि इस भेद की चर्चा मैं नहीं करूंगा. आप हमेशा कहते हैं न कि परमात्मा प्रेमस्वरूपGod is Love है. तो जिन प्राणियों में प्रेम कमोबेश प्रकट होता है उनमें ईश्वरी अंश आस्मा है ही. प्राणी अपने बच्चों पर प्यार करते हैं. उनको बचाने के लिये अपना प्राण तक दे देते हैं. तो आप कैसे कह सकते हैं कि उनमें प्रेम का उत्कर्ष नहीं है ? आत्मा नहीं है ? जहाँ आत्मबलिदान का तत्त्व आया वहां आत्मशक्ति है ही. पशु एक दूसरे के बच्चों को बचाने के लिये संगठित प्रयत्न भी करते हैं. हमारी एक भैस मर गई तो तब से दूसरी भैस ने उसके बच्चे को अपना दूध देना शुरू किया. उसके पहले उस पराये बछड़े को वह पास भी आने नहीं देती थी ! यह सहानुभूति, करुणा, प्रेम आत्मा का ही आविष्कार है. इसलिए यह कहते मुझे तनिक भी संकोच नहीं है कि योग्य साधुता जिसमें है वह पशुओं पर भी असर कर सकता है. "अंड्रोक्लीज़ और सिंह" की कथा तो आप जानते ही हैं. मेरा ही एक छोटा अनुभव आपको कहूँ. जब मैं अपने गाँव में रहता था तब घर में मेरी एक प्यारी बिल्ली थी. हमारे बीच गहरी दोस्ती थी. उसका वर्णन नहीं करता क्योंकि बिल्ली का प्यार सब जानते ही हैं. एक दिन जंगल के नजदीक अपने बगीचे में मैं गया था, मैंने एक खरगोश का बच्चा पाया. मैंने सोचा---यहां तो कुते आकर उसे फाड़कर खा जाएंगे. मैं उसे उठाकर घर ले आया. solibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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