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________________ दरबारीलाल जैन : जैनदर्शन में संलेखना का महत्वपूर्ण स्थान : ४६३ अविचार प्रत्याख्यान-सल्लेखना कहते हैं. यह दो प्रकार का है-१. प्रकाश और २. अप्रकाश. लोक में जिनका समाधिमरण विख्यात हो जाये वह प्रकाश है तथा जिनका विख्यात न हो वह अप्रकाश है. २. निरुदतर–सर्प, अग्नि, व्याघ्र, महिष, हाथी, रीछ, चोर, व्यन्तर, मूर्छा, दुष्ट पुरुषों आदि के द्वारा मारणान्तिक आपत्ति आने पर तत्काल आयु का अन्त जानकर निकटवर्ती आचार्यादिक के समीप अपनी निन्दा, गहीं करता हुआ साधु शरीर-त्याग करे तो उसे निरुद्धतर-अविचार-भक्त-प्रत्याख्यान-सल्लेखना कहते हैं. ३. परमनिरुद्ध सर्प, व्याघ्रादि भीषण उपद्रवों के आजाने पर वाणी रुक जाय, बोल न निकल सके, ऐसे समय में मन में ही अरहन्तादि पंच परमेष्ठियों के प्रति अपनी आलोचना करता हुआ साधु शरीर त्यागे उसे परम-निरुद्ध-भक्त प्रत्याख्यान-सल्लेखना कहते हैं. 0-0--0-0-0--0-0--0--0--0 समाधिमरण की श्रेष्ठता ये तीनों (भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोपगमन) समाधिमरण उत्तम एवं सर्वश्रेष्ठ माने गये हैं. आचार्य शिवार्य ने (भगवती आराधना गाथा-२५ से ३० तक में) सत्तरह प्रकार के मरणों का उल्लेख करके उनमें पाँच' तरह के मरणों का वर्णन करते हुए तीन मरणों को प्रशंसनीय बतलाया है. वे तीनों मरण ये हैं.२ 'पंडितपंडितमरण, पंडितमरण, और बालपंडितमरण ये तीन मरण सदा प्रशंसा के योग्य हैं.' आगे पाँच मरणों के सम्बन्ध में कहा है कि वीतराग केवली भगवान् के निर्वाण-गमन को 'पंडित-पंडितमरण' देशव्रती श्रावक के मरण को 'बालपंडितमरणं' आचारांग शास्त्रानुसार चारित्र के धारक साधु-मुनियों के मरण को 'पंडितमरण" अविरतसम्यग्दृष्टि के मरण को 'बालमरण' और मिथ्यादृष्टि के मरण को 'बाल-बालमरण कहा है. भक्त-प्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोपगमन ये तीन पंडित मरण के भेद हैं. इन्हीं तीन का ऊपर संक्षेप में वर्णन किया गया है. आचार्य शिवार्य ने इस सल्लेखना के करने, कराने, देखने, अनुमोदन करने, उसमें सहायक होने, आहार-औषध-स्थानादि का दान देने तथा आदरभक्ति प्रकट करने वालों को पुण्यशाली बतलाते हुए बड़ा सुन्दर वर्णन किया है. वे लिखते हैं, १. पंडिदपंटिदमरणं पंडिदयं बालपंडिदं चेव । बालमरण चउत्थं पंचमयं बालबालं च । भग० आराधना गा० २६. २. पंडिदपंडिदमरणं च पंडिदं बालपंडिदं चेव । एदाणि तिरिण मरणाणि जिणा पिच्चं पसंसन्ति ।-भग० आराधना गा० २७. ३. पंडिदपंडिदमरणे खीणकसाया मरन्ति केवलियो । विरदाविरदा जीवा मरन्ति तदियेण मररोण । पायोवगमणमरणं भत्तपण्णा य इंगिणी चेव । तिविहं पंडिदमरणं साहुस्स जहुत्तचरियस्स । अविरदसम्मादिट्ठी मरन्ति बालमरो चउत्थहम्मि । मिच्छादिट्ठी य पुणो पंचमए वालबालम्मि |-भग० आराधना गा० २८, २९, ३०. ४. ते सूरा भयवन्ता आइच्चइऊण संघमझम्मि । आराधणा-पटाया चउप्पयारा धिया जेहिं । ते धरणा ते पाणी लद्धो लामो व तेहि सब्जेहिं । आराधणा भयवदो पडिबरणा जेहि संपुण्णा । किंणाम तेहि लोगे महागुभावेहिं हुज्ज ण य पत्तं । आराधणा भयवदो सयला आराधिदा जेहिं । ते चिय महाणभावा धराणा जेहिं च तस्स खवयस्स । सव्वादर - सत्तोप उवविहिदाराधणा सयला। ICAN HTR A या TTARAIANTATIALALIRA HALLIANALANNIMAIMILARAS Anna MIMARY HELLO ESEARTIMILITAMIN A NTAHIRALLUMINAINA COPATI % 3DA JANAM IMUD RANI RANT Mahes Imus Jain E NIATibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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