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________________ श्रीदेवनारायण शर्मा एम० ए०, साहित्यरत्न, रिसर्च स्कॉलर, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, मुजफ्फरपुर, विहार. हिंदू तथा जैनसाधु-परम्परा एवं आचार यह हमारी राष्ट्रीय विशेषता है कि जब भी हम किसी वस्तु के इतिहास का अन्वेषण करते हैं, तो उसके मूल-स्रोत की जानकारी के लिये वेदों को अवश्य टटोलते हैं. और यह ठीक भी है क्योंकि वेदों में बीजरूप में जो चिंतन है उसका सम्यक् विकास आगे के साहित्य में मिलता है. वस्तुतः यही बात साधु-परम्परा के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है. यद्यपि यह सत्य है कि आत्मा,पुनर्जन्म और कर्मफलवाद के विषय में वैदिक ऋषियों ने अधिक नहीं सोचा था, किन्तु इनका विकास आगे चलकर उपनिषदों में हुआ-सा लगता है. आत्मा शरीर से भिन्न वस्तु है, जो मरणोपरान्त परलोक को जाती है, सिद्धान्त का आभास वैदिक ऋचाओं में मिलता है. यद्यपि वेदों का वातावरण आनन्द और उल्लास का है, उसमें भय अथवा शोक की छाया नहीं है. किन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि वैदिक जनता इसी संसार पर भूली हुई थी और उसे सांसारिक जीवनोपरान्त आनेवाले पारलौकिक जीवन का ध्यान ही नहीं था. ध्यान था और ऋषिओं ने कभी-कभी इस रहस्य पर विचार भी किया है. पर इसके बाद भी वेदों से यही स्पष्ट होता है कि उस समय के आर्यों में श्रेय की अपेक्षा प्रेय की भावना ही अधिक है प्रबल थी. प्रेय को छोड़कर श्रेय की ओर बढ़ने की आतुरता उपनिषदों के समय जगी, जब मोक्ष के सामने गृहस्थ जीवन निस्सार समझा जाने लगा एवं लोग, जीवन से आनन्द लेने के बदले संन्यास लेने लगे. उपनिषदों ने मोक्ष का संसार को समाधान बतलाया और यह कहा कि मोक्ष का मार्ग ज्ञान है. इस युग में ज्ञान की इतनी महिमा बढ़ी कि वर्णाश्रम और यज्ञवाद, दोनों बहुत पीछे छूट गये. चूंकि मोक्ष का सिद्धान्त निरुपित करने में बार-बार सांसारिक जीवन की दुःखपूर्णता की चर्चा की गयी, इस कारण समाज में एक तरह का निराशावाद फैलने लगा और लोग, जीवन में उस उत्साह को खोने लगे, जो वेदकालीन भारतवासियों की विशेषता थी. वैदिक-सभ्यता, कर्मठ मनुष्य की सभ्यता थी जो सोचता कम, काम अधिक करता था. जिसे नरक की चिन्ता नहीं, सदा स्वर्ग का ही लोभ था. जो जीवन को दुःखों का आगार नहीं, सुख और आनन्द का साधन मानता था. मगर उपनिषदों ने मानव-जीवन के अनेक नये पट उघाड़ दिये और वह उनके सवालों के चक्कर में पड़ गया. यह सृष्टि क्या है ? जीव सान्त है या अनन्त ? यह जन्म के पहले क्या था ? जीवन की स्थिति मरने के बाद क्या होगी? क्या जीवन मरने के साथ ही समाप्त हो जायेगा ? या मरने के बाद भी हमें स्वर्ग मिलेगा? अगर हाँ तो इसका १. ऋग्वेद-१,१६४, २०-३७-३८. २. यजुवेंद-३१११८. ३. वहीं-११५. ४. अथर्व वेद-१६५२११, यजु० पुरुष सूक्त २२. ५. ऋग्वेद-३५०८।६।२८ ANCIA- K A RNAAGINB000006 MINS तातावर Jain E Jaimenorary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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