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________________ मुनि महेन्द्रकुमार : अनेकतत्त्वात्मक वास्तविकतावाद और जैनदर्शन : ४३७ -0--0-0--0-0-0-0--0-0-0 अब यदि जैनदर्शन के द्रव्य गुणपर्यायवाद के साथ रसेल के इस 'घटनासिद्धान्त' की तुलना की जाये, तो इनके बीच रहे हुए सादृश्य-वैस दृश्य का पता हमें लग सकता है. जैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक द्रव्य, गुण और पर्यायों का आश्रय है.' प्रतिक्षण प्रत्येक द्रव्य में जो परिवर्तन होता है, उसे पर्याय कहा गया है.२ जीव और पुद्गल, धर्मास्तिकाय, और अधर्मास्तिकाय, आकाश और काल, सभी द्रव्यों में प्रतिक्षण यह पर्याय का क्रम चलता रहता है. अब जिसको रसेल 'घटना' कहते हैं, वह सम्भवतः पर्याय का ही द्योतक लगता है. रसेल पदार्थों को घटनाओं के समूह रूप मानते हैं. जैनदर्शन 'पर्याय' प्रवाह के आधार को द्रव्य मानता है. रसेल की घटनाएं गत्यात्मक हैं और एक दूसरे से सम्बन्धित हैं, तो जैनदर्शन भी पर्यायों को सदा गतिमान और एक दूसरे से सम्बन्धित बताता है. घटनाएं और पर्याय दोनों हमारे अनुभय से परे नहीं हैं. रसेल जहाँ घटनाओं को विविध सम्बन्धों से जड़ और चेतन में विभाजित करते हैं और जड़ पदार्थों की घटनाओं के पारस्परिक सम्बन्ध को चेतन पदार्थों की घटनाओं के सम्बन्ध से भिन्न मानते हैं, वहाँ जैनदर्शन भी पुद्गल और जीव की पर्यायों को भिन्न-भिन्न मानता है. अन्तर केवल इतना ही है कि रसेल प्रत्येक घटना को एक स्वतन्त्र तत्त्व-अनुभव मानते हैं, जब कि जैनदर्शन पर्याय को स्वतन्त्र तत्त्व के रूप में स्वीकार नहीं करता. यथार्थता की दृष्टि से देखने पर रसेल का यह अनुभय भी अन्ततः तो द्वैतवाद में ही परिणत हो जाता है. क्योंकि जहाँ पारस्परिक सम्बन्धों से वे घटनाओं को दो प्रकारों में विभाजित करते हैं, वहाँ मौलिक तत्त्व घटनाएं न रह कर जड़ और चेतन ही बन जाते हैं. जड़ चेतन की उत्पत्ति के लिये उत्तरदायी सम्बन्धों की परीक्षा करते हुए डा० स्टेस (Dr. Stace) इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ये सम्बन्ध अनुभयवाद को वस्तुतः द्वैतवाद बना डालते हैं. वे कहते हैं कि यदि जड़ और चेतन का अन्तर उनके तत्त्वों के सम्बन्धों का अन्तर है. तो इसका मतलब है कि चेतन पदार्थ के तत्त्वों में जो सम्बन्ध है, वह भौतिक पदार्थ के सम्बन्ध से बिल्कुल भिन्न है, अर्थात् वह भौतिक नहीं है. यह भी निश्चित है कि वह अनुभय नहीं है, तो अवश्य ही मानसिक या चेतन होगा. अनुभय नहीं होने का मतलब है कि जड़ और चेतन दोनों से भिन्न नहीं है, अर्थात् भौतिक या मानसिक है. यह भी मालूम है कि भौतिक नहीं है. इसलिए अवश्य ही मानसिक होगा. इसी तरह यह दिखाया जा सकता है कि भौतिक पदार्थों के तत्त्वों में विद्यमान सम्बन्ध भौतिक हैं. अतएव अनुभय तत्त्वों से चेतन पदार्थ को उत्पन्न करने वाले सम्बन्ध सिर्फ चेतन हैं और भौतिक पदार्थ को उत्पन्न करने वाले सिर्फ भौतिक. इसका मतलब है कि जड़ और चेतन की भिन्नता मौलिक या आधारिक है. किन्तु ऐसा होने से उनका वास्तविक द्वैत सिद्ध हो जाता है. इस द्वैत का परिहार नहीं हो सकता, क्योंकि यह द्वैत सम्बन्धों का है. और सम्बन्ध ही जड़ को जड़ और चेतन को चेतन बनाने वाले हैं. इस प्रकार यद्यपि रसेल ने घटनाओं को अनुभय तत्त्वों के रूप में बताया है, पर वस्तुतः तो उनके मूल में जड़ या चेतन, कोई न कोई होता ही है.५ यह तो जैन-दर्शन भी मानता है कि जितने भी चेतन तत्त्व हैं और परमाणु पुद्गल हैं वे सभी स्वतन्त्र वास्तविकताएँ हैं, और इस दृष्टि से विश्व के मूलतत्त्वों की संख्या तो अनन्त ही है. जहाँ हम इन तत्त्वों को प्रकारों में बांटते हैं, वहाँ हमारे सामने केवल दो भेद रह जाते हैं, जीव और पुद्गल. अस्तु रसेल का दर्शन पाश्चात्य जगत् का एक ऐसा दर्शन है जो सम्भवतः जैनदर्शन के सबसे निकट माना जा सकता है. आधूनिक पाश्चात्य दार्शनिकों में प्रो० हेनरी मार्गेनो की विचारधारा भी जैनदर्शन के साथ बहुत सादृश्य रखती है. १. गुणपर्यायाश्रयो द्रव्यम् , जैनसिद्धान्तदीपिका १-३. २. पूर्वोत्तराकारपरित्यागादानं पर्यायः । वही १-४४. ३. दो फिलासोफी आफ बट्रेण्ड रसेल, बी०ए० शिल्प द्वारा सम्पादित पृ०३५५-४०० ४. दर्शनशास्त्र की रूपरेखा, पृ० १३३ ५. रसेल ने स्वयं अपने दर्शन को द्वैतवाद कहा है. देखें दर्शन-दिग्दर्शन पृ०३७१. ६. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये तीन भी वास्तविक तत्त्व है, किन्तु इनकी संख्या एक एक है. Jain Education Intemati For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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