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________________ डा. कन्हैयालाल सहल : नियति का स्वरूप : ४२१ 0-0--0--0-0----------- नियतिविषयक यह दृष्टिकोण अत्यन्त वैज्ञानिक है जिसकी तुलना वैदिक 'ऋत' तथा पाश्चात्य दार्शनिकों के नियतवाद (Deteromiinsm) से की जा सकती है, यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि नियति संबन्धी यह धारणा अन्ध भाग्यवाद (Blind fatalism) की किसी भी प्रकार नहीं है-जहाँ भाग्य के देवता को अन्धा चित्रित किया गया है. बबूल का पेड़ लगाने से बबूल का पेड़ ही उगता है, अन्य कोई पेड़ नहीं, इसका कारण नियति ही है, और कुछ नहीं. नियति के विषय में यही दृष्टिकोण काश्मीर शैवागमों में भी गृहीत हुआ है. मिट्टी से मिट्टी का घड़ा ही निर्मित होता है, स्वर्ण-घट नहीं, इसके मूल में भी कार्यकारण की नियामिका शक्ति नियति ही वर्तमान है. मक्खलि गोशाल के नियतिवाद का वास्तविक रूप क्या था, यह प्रश्न सहज ही हमारे मन में उपस्थित होता है. 'उपासकदशांग सूत्र' में श्रमण भगवान् महावीर के तथा मक्खलि गोशाल के अनुयायियों में जिस प्रकार का वार्तालाप हुआ है, उससे मक्खलि भाग्यवादी, (Fatalist) सिद्ध होते हैं, गुणरत्नसूरी द्वारा प्रतिपादित नियतिवाद के मानने वाले नहीं. यदि मक्खलि के अनुयायी गुणरत्नसूरी द्वारा प्रस्तुत नियतिवाद के मानने वाले होते तो वे श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रश्नों का भली-भांति ऊत्तर दे सकते थे, उन्हें निरुत्तर होने की आवश्कता नहीं थी. मक्खलि गोशाल द्वारा किया हुआ नियतिवाद का स्वतंत्र विवेचन यदि उपलब्ध हो तो मक्खलि के नियतिवाद का यथार्थ रूप समझने में बड़ी सहायता मिलेगी. श्रीपरशुराम चतुर्वेदी ने 'आजीवकों का नियतिवादी सम्प्रदाय' शीर्षक अपने एक लेख में लिखते हैं :'छुट-पुट अवतरणों के सहारे भी यह अनुमान करते अधिक विलंब नहीं लगता कि मक्खलि गोशाल के नियतिवाद में सारतत्त्व की कमी नहीं है. उनकी मान्यता की आधार-शिला यह प्रतीत होती है कि 'नियत' किसी सुव्यवस्था के सिद्धांत का एक व्यापक एवं सर्वग्राही नियम है जो प्रत्येक कार्य एवं प्रत्येक दृश्य को मूलतः शासित किया करता है, जिस कारण मनुष्य के कर्म स्वातंत्र्य को कोई स्थान नहीं और न उसकी क्रियाशक्ति का ही कोई परिणाम संभव है. वास्तव में यह नियति एक प्रकार के किसी प्राकृतिक व विश्वात्मक नियम की प्रतीक है जिसके किसी न किसी रूप को स्वयं भगवान् बुद्ध एवं महावीर ने भी स्वीकार किया है. उनके द्वारा उपदिष्ट कर्मवाद में भी एक सर्व व्यापक नियम दृष्टिगोचर होता है जो सारे विश्व को नियंत्रित एवं शासित करता है, अन्तर केवल यही हो सकता है कि वहाँ पर अपवाद की भी संभावना है, इसी प्रकार सांख्य दर्शन के परिणामवाद में भी हमें नियतिवाद के तत्व दीख पड़ते हैं, किन्तु वहाँ पर भी आजीवकों की जैसी कठोरता का पता नहीं चलता. नियति की चर्चा करते समय मक्खलि गोशाल का कथन कुछ इस प्रकार का था कि जिस प्रकार कोई सूत से भरी रील फेंकने पर बराबर उभरती चली जाती है और वह उसकी पूरी लंबाई तक एक ही प्रकार से बढ़ती जाती है, उसी प्रकार चाहे कोई मूर्ख हो, चाहे कोई पंडित ही क्यों न हो, सभी को ठीक एक ही नियम का अनुसरण कर अपने दुःख का अन्त करना है, मक्खलि गोशाल के इस नियतिवाद की धारणा को उनके दक्षिणी अनुयायियों ने कुछ और भी विकसित किया. उन्होंने, कदाचित् पकुध कच्चायन की मान्यता के अनुसार, नियति को 'अविचलितनित्यत्वम्' जैसा विशेषण अथवा नाम दिया जिसका भाव यह था कि वह सभी प्रकार से अपरिवर्तनशील है. इस प्रकार नियति का रूप गतिशील न होकर सर्वथा 'नित्य स्थायी' (Statie) सा बन जाता है जिसमें किसी प्रकार के काल (Time) की भी गुंजायश नहीं रहती. एक तमिल ग्रन्थ के अनुसार धन एवं निर्धनता, पीड़ा और आनन्द, किसी एक देश का निवास और अन्य देशों में भ्रमण-ये सभी पहले से ही गर्भ के भीतर निश्चित कर दिये गए रहते हैं और यह सारा जगत् किसी कठोर नियति द्वारा शासित और परिचालित है.' मक्खलि गोशाल के दक्षिणी अनुयायियों की विचारधारा को यदि एक बार छोड़ दें तो उक्त उद्धरण के आधार पर मक्खलि उस नियतिवाद के समर्थक जान पड़ते हैं जिसके अनुसार विश्व कार्यकारण के नियमों द्वारा संचालित है. यह दृष्टिकोण 'उपासकदशांग सूत्र' में प्रस्तुत किये हुए नियतिवादी दृष्टिकोण से भिन्न जान पड़ता है तथा श्री गुणरत्नसूरि १. भारतीय साहित्य (जुलाई १९५८) पृ० २६-३० Me Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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