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________________ मुनि श्री मिश्रीमल 'मधुकर' जीवन-वृत्त : १५ पंच महाव्रतों (पंचयाम) में ज्ञाताज्ञात भाव से लगे दोषों का शुद्धीकरण किया. नवीन व्रतों का मूलारोहण कर १०-१० पर बूढ़ी देह में मुनि हजारीमलजी के नाम से विद्यमान आत्मा अदृश्य हो गई ! ठीक वे चले गए और अपने गुरुभाई युगल को संयम का, समता का, धर्मदृढ़ता का और विश्ववात्सल्य का कभी नहीं छीना जानेवाला अमूर्त आत्म धन सौंप गए. चरित्र नायक के तीन महत्वपूर्ण योग नागौर में बने इसे नागौर का गौरव कहना चाहिए. इस गौरव गरिमा-महिमा से पूर्व के सुसंयोगों को देखकर कहना चाहिए नागौर में इस प्रकार के संयोगों की परम्परा-सी चलती आई है. यथा१. प्रत्येक धर्म व सम्प्रदाय में आचार्य, सदाचार का गौरीशंकर और प्रेरणा का स्रोत माना जाता है, उसका किसी भी नगर में पहुंचना परम सौभाग्य का सूचक होता है । पूज्य मुनिश्री के दीक्षा प्रसंग पर आचार्य श्रीजयमल्लजी महाराज की परम्परा के ज्येष्ठ आचार्य श्रीकस्तुरचंदजी महाराज भी उस समय वहाँ पधारे थे. नागौर - नगर की गौरवशाली परम्परा : MURDER MARDANA २ पूज्य प्रवर श्रीजोरावरमलजी महाराज के गुरुदेव श्री फकीरचन्दजी महाराज ने स्वामी श्रीबुद्धमलजी महाराज के कर-कमलों द्वारा इसी नागौर नगरमें दीक्षा ग्रहण की थी. ३. कैसे विधिसंयोग बनते जा रहे हैं. श्री फकीरचन्दजी महाराज ने अपने शिष्य जोरावरमलजी को सं० १६४४ की अक्षय तृतीया के ऐतिहासिक दिवस पर नागौर में ही दीक्षा प्रदान की तो बात कितनी स्वाभाविक रीति से बन रही है. स्वामीजी बुधमलजी ने श्रीफकीरचन्दजी महाराज को, और स्वामी फकीरचंदजी ने जोरावरमलजी को, श्रीजोरावरमलजी ने मुनि श्री हजारीमलजी को नागौर में दीक्षा प्रदान की. Jain Education International ४. इससे भी अधिक महत्वमंडित सत्य यह है कि आचार्य श्रीजयमल्लजी महाराज ने स्थिरवास के रूपमें रहना भी नागौर में स्वीकार किया और वे १३ वर्ष तक महास्थविर के सम्बोधनपूर्वक स्थिर रहे. सं० १८५३ की वैशाख शुक्ला चतुर्दशी की दूध-सी चाँदनी में उनकी तपोनिष्ठ काया भी नागौर नगर की भूरी मिट्टी में विलुप्त हुई ! स्वामीजी महाराज ने स्थानकवासी सम्प्रदाय की जिस शाखा में संयमशील जीवन व्यतीत किया, उस सम्प्रदाय का नाम 'आचार्य श्रीजयमल्लजी म० का सम्प्रदाय' है. जिसके नाम से सम्प्रदाय का नामकरण है उसका आदि पुरुष नागौर में स्वर्गस्थ हुआ. इस तरह नागौर 'जय गच्छ' में प्रारम्भ से ही जुड़ा हुआ है. कहना चाहिए नागौर जयगच्छ के शुभ योगों की परम्पराका जयस्तम्भ या यशः स्तम्भ है ! नागौर नगर कितना गौरवशाली रहा है. आज भी नागौर के स्थानकवासी जैनबन्धु आचार्य श्रीजयमल्लजी महाराजके गौरव गरिमायुक्त जीवनका पावन स्मरण करते हैं और अपने को धन्य धन्य अनुभव करते हैं. 16 For Private & Personal Use Only 30 30 30 30 300 300 300 300 300 30 30 30 30 30 30 23030030300 www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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