SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Etic मिलापचन्द्र कटारिया : जीवतत्त्व विवेचन : ३३१ प्रश्न- ज्ञानादि गुण शरीर के नहीं है. ऐसा कहना प्रत्यक्ष विरुद्ध है. सब पदार्थों का ज्ञान इन्द्रियों से होता है और इन्द्रियरूप ही शरीर है. इन्द्रियाँ न हों तो कुछ भी ज्ञान नहीं होता. उत्तर- -आत्मा को पदार्थ का ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा होता है. इसका अर्थ यह नहीं है कि आत्मा और इन्द्रियाँ अभिन्न हैं. क्योंकि चक्षु एवं कर्ण के न रहने पर भी अर्थात् अंधा बहरा हो जाने पर भी उनसे उत्पन्न पहिले का ज्ञान आत्मा को बना रहता है. जैसे खिड़कियों के द्वारा देखे हुए पदार्थों का बोध खिड़कियाँ बन्द कर देने पर भी देवदत्त को रहता है. अतः देवदत्त खिड़कियों से जुदा है वैसे ही आत्मा इन्द्रियों से जुदा है. इसी तरह इंद्रियों के रहने पर भी अगर आत्मा का उपयोग विषय ग्रहण की ओर न हो तो पदार्थज्ञान नहीं होता है. इसलिए इन्द्रियों के होने पर भी आत्मा को पदार्थ ज्ञान नहीं होता और इन्द्रियों के न होने पर भी पदार्थज्ञान रहता है. इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि देहादि से आत्मा कोई जुदी चीज है. इसके अतिरिक्त किसी दूसरे को इमली खाते देखकर मात्र उसका अनुभव करने से ही हमारे मुंह में पानी आ जाता है. दूसरे का रुदन सुनकर या उसके कष्ट का अनुभव करने मात्र से ही हमारी आँखों में अश्रु पैदा हो जाते हैं. यहाँ अनुभव करने वाला शरीर से भिन्न कोई आत्मा ही हो सकता है. एक इन्द्रिय से जानकारी हासिल करके दूसरी इन्द्रिय से कार्य करने, जैसे आंख से घटको देखकर हाथ उसे उठाने इत्यादि रूप में इन्द्रियों को सोच समझ कर काम में लेनेवाला भी, इन्द्रियों से भिन्न ही कोई हो सकता है. देवदत्त मकान की किसी एक खिड़की से किसी को देखकर दूसरी खिड़की में मुंह डालकर उसे बुलाता है. यहाँ जैसे खिड़कियों से काम लेनेवाला देवदत्त खिड़कियों से भिन्न है, उसी तरह इन्द्रियों को काम में लेनेवाला आत्मा भी, इन्द्रियों से भिन्न है, जैसे थोड़े ज्ञानवाले पांच पुरुषों से अधिक ज्ञान वाला छठा पुरुष भिन्न है, उसी तरह एक-एक विषय को ग्रहण करनेवाली पांचों इन्द्रियों से सभी विषयों को ग्रहण करने वाला छठा आत्मा भी, इन्द्रियों से भिन्न है. एक सेठ अलग-अलग गुमास्ते रखकर उनसे अपनी इच्छानुसार अलग-अलग काम लेता है. जैसे गुमास्तों से सेठ भिन्न है, उसी तरह इन्द्रियों से अपनी इच्छानुसार अलग-अलग विषय को ग्रहण करने वाला उनका अधिष्ठाता आत्मा भी, इन्द्रियों से भिन्न है. जैसे रेल के डिब्बे इंजन की गति विशेष के अनुसार चलते हैं, मुड़ते हैं, दौड़ते हैं, धीमे चलते हैं, उसी तरह इंद्रियाँ भी आत्मा की प्रेरणा से कार्य करती हैं. रेल के डिब्बों से इंजन भिन्न है उसी प्रकार इंद्रियों से आत्मा भिन्न है. इस प्रकार से जब स्वशरीर में आत्मा की सिद्धि होती है तो उसी तरह शरीर में आत्मा होने से इष्ट में प्रवृत्ति देखी जाती है, तद्वत् परशरीर में परशरीर में भी आत्मा है, यह प्रमाणित होता है. इससे जीवों की अनेक में ज्ञान की हीनाधिकता पाई जाने के कारण सब जीव असमानता का कारण उनका अपना स्वभाव नहीं है. आवरण है. शरीर यद्यपि अचेतन है तथापि वह चेतन जीव द्वारा चलाये जाने के कारण चेतन सदृश ही दिखाई देता है. जैसे कि बैलों द्वारा चलाया शकट बैलों की तरह ही चलता हुआ दिखाई देता है. परशरीर में भी आत्मा है. क्योंकि जैसे स्वभी इष्ट अनिष्ट में प्रवृति देखी जाती है. अतः संख्या सिद्ध होती है. किन्तु सब संसारी जीवों सर्वथा एक समान नहीं हैं, यह भी सिद्ध होता है. इस किन्तु उन पर होने वाला पौद्गलिक कर्मवर्गणाओं का प्रश्न- अगर आत्मा शरीर से भिन्न है तो वह जन्म के समय शरीर में प्रवेश करते और मृत्यु के समय शरीर से निकलते किसी को क्यों नहीं दिखती है ? जैसे पुष्प से गंध भिन्न नहीं, उसी तरह आत्मा भी शरीर से भिन्न नहीं है. जैसे पुष्प के नाश होने से गंध का विनाश हो जाता है उसी प्रकार देह के नाश होने से आत्मा का भी अभाव हो जाता है. गर्भ में शुक्रशोणित के सम्मिश्रण से शरीर का निर्माण होता है. वही शनैः-शनैः बढ़ने लगता है. वहां अन्य स्थान से जीव आकर उसमें स्थान कर लेता है ऐसा कहना केवल कल्पना है. उत्तर- -दूर से आया हुआ शब्द नेत्रों द्वारा नहीं देखा जाता. वह कान द्वारा ही ज्ञात होता है. फिर आत्मा तो सूक्ष्म अरूपी और अमूर्त है. वह न नेत्रों के गोचर है और न अन्य इंद्रियों के. इसलिए जीव जन्म-मरण के समय आता-जाता humw.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy