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________________ गोपीलाल अमर : दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य : ३७३ उसीमें गन्ध तब कितनी स्पष्ट हो उठती है जब खेतों में पहली बरसात होती है ? चूंकि यह गन्ध जल के संयोग से उत्पन्न होती है अतः उसे केवल पृथ्वी का ही गुण न मानकर जल का भी गुण मानना होगा. वायु में न्यायदर्शन ने केवल स्पर्श गुण ही माना है लेकिन जब उद्जन (Hydrogen) और जारक (Oxygen) वायुओं का संयोग होकर जल बनता है तो उसके सभी गुण प्रत्यक्ष हो जाते हैं. तीसरे तकं में हम यह बताएँगे कि न्यायदर्शनकार अग्नि के तेजस्वी रूप के समान सुवर्ण के तेजपूर्ण वर्ण को देख उसमें अप्रकट अग्नितत्त्व की अद्भुत कल्पना करता है.' यह बात यदि शक्ति की अपेक्षा कही जाय तो जल के परमाणुओं तक में अग्निरूप परिणत होने की शक्ति सिद्ध होती है. चौथा तर्क वैज्ञानिक है. विज्ञान सिद्ध करता है कि जिस वस्तु में स्पर्श, रस, गन्ध और रूप, इन चारों में से एक भी गुण होगा उसमें प्रकट या अप्रकट रूप में शेष तीन गुण अवश्यमेव होंगे. सम्भव है कि हमारी इन्द्रियों से किसी वस्तु के सभी गुण अथवा उनमें से कुछ गुण लक्षित न हो सकें. जैसे उपस्तु किरणें (Infrared rays) जो अदृश्य तापकिरणें हैं, हम लोगों की आंखों से लक्षित नहीं हो सकतीं, किन्तु उल्लू और बिल्ली की आँखें इन किरणों की सहायता से देख सकती हैं. कुछ ऐसे आचित्रीय पट (Photographic plates) होते हैं जो इन्हीं किरणों से अविष्कृत हुए हैं और जिनके द्वारा अन्धकार में भी आचित्र (Photographs) लिए जा सकते हैं. इसी प्रकार अग्नि की गन्ध हमारी नासिका द्वारा लक्षित नहीं होती किन्तु गन्धवहन-प्रक्रिया (Tele-olefaction phenomenon) से स्पष्ट है कि गन्ध भी पुद्गल का (अग्नि का भी) आवश्यक गुण है. एक गन्धवाहक यंत्र (Tele-olefactory cell) का आविष्कार हुआ है जो गन्ध को लक्षित भी करता है. यह यंत्र मनुष्य की नासिका की अपेक्षा बहुत सद्यहृष (Sensitive) होता है और सौ गज दूरस्थ अग्नि को लक्षित करता है. इसकी सहायता से फूलों आदि की गन्ध एक स्थान से ६५ मील दूर दूसरे स्थान तक तार द्वारा या विना तार के ही प्रेषित की जा सकती है. स्वयंचालित अग्निशमक (Automatic fire Control) भी इससे चालित होता है. इससे स्पष्ट है कि अग्नि आदि बहुत से पुद्गलों की गन्ध हमारी नासिका द्वारा लक्षित नहीं होती किन्तु और अधिक सद्यहृष (Sensitive) यंत्रों से वह लक्षित हो सकती है. पुद्गल सक्रिय और शक्तिमान् है. पुद्गल में क्रिया होती है. शास्त्रीय शब्दों में इस क्रिया को परिस्पन्दन कहते हैं. यह परिस्पन्दन अनेक प्रकार का होता है. इसका सविस्तार विवेचन भगवती सूत्र के टीकाकार अभयदेव सूरि ने किया है.२ पुद्गल में यह परिस्पन्दन स्वतः भी होता है और दूसरे पुद्गल या जीव द्रव्य की प्रेरणा से भी. परमाणु की गतिक्रिया की एक विशेषता है कि वह अप्रतिघाती होती है, वह वज्र और पर्वत के इस पार से उस पार भी निकल जा सकता है पर कभी-कभी एक परमाणु दूसरे परमाणु से टकरा भी सकता है. पुद्गल में अनन्त शक्ति भी होती है. एक परमाणु यदि तीव्र गति से गमन करे तो काल के सबसे छोटे अंश अर्थात् एक समय (Timepoint) में वह लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक जा सकता है. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा भी सिद्ध है कि पुद्गल में अनन्त शक्ति होती है एक ग्राम (Gram) पुद्गल में जितनी शक्ति (energy) होती है उतनी शक्ति ३००० टन (८४००० मन) कोयला जलाने पर मिल सकती है. पुद्गल में संकोच-विस्तार होता है-पुद्गल आदि द्रव्य लोक में अवस्थित हैं. लोक में असंख्यात (Countless) प्रदेश (absolute units of space) ही होते हैं जबकि पुद्गल द्रव्य ही केवल अनन्तानन्त (Infinite in number) हैं. अब प्रश्न यह उठता है कि अनन्तानन्त पुद्गल असंख्यात प्रदेश वाले लोक में कैसे स्थित हैं जबकि एक प्रदेश, आकाश का वह अंश है जिससे छोटा कोई अंश संभव ही न हो ? उत्तर यह होगा कि सूक्ष्म परिणमन और अवगाहनशक्ति के १. सुवर्ण तैजसम् , असति प्रतिबन्धकेऽयन्ताग्निसंयोगेऽपि अनुच्छिद्यमानद्रवत्वाधिकरणत्वात् । -आचार्य अन्नंभट्टः तर्कसंग्रह, पू० ८. २. शतक ३, उद्दश ३. Jain EduS 2.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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