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________________ गोपीलाल अमर : दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य : ३६६ -0--0--0--0-0-0--0--0--0-0 'गल' का अर्थ है गलना या मिटना (Disintegration) जो द्रव्य प्रतिसमय मिलता-गलता रहे, बनता-बिगड़ता रहे, टूटता-जुड़ता रहे वह पुद्गल है.' सम्पूर्ण विश्व में पुद्गल ही एक ऐसा द्रव्य है जो खण्डित भी होता है और पुनः परस्पर सम्बद्ध भी. पुद्गल की एक सबसे बड़ी पहिचान यह है कि वह छुआ जा सकता है, चखा जा सकता है, सूघा जा सकता है और देखा भी जा सकता है. अतः कहा जा सकता है कि जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण, चारों अनिवार्यतः पाये जावें वह पुद्गल है.२ पुद्गल (Matter of Energy) के गलन-मिलन स्वभाव (Disintegration and combination phenomena) को वैज्ञानिक शब्दों में भी समझाया जा सकता है. पुद्गल के मिलने या सम्बद्ध होने (Combination) का अर्थ है कि एक स्कन्ध (Molecule) दूसरे स्निग्ध-रूक्ष गुणयुक्त स्कन्ध से मिल सकता है और इस प्रकार अधिक स्निग्ध-रूक्ष गुणयुक्त स्कन्ध उत्पन्न हो सकता है. पुद्गल के गलने या खण्डित होने का अर्थ है कि एक स्कन्ध में से कुछ स्निग्ध-रूक्ष गुणयुक्त देश (भाग) अलग हो सकता है और इस प्रकार कम स्निग्ध-रूक्ष गुणयुक्त स्कन्ध उत्पन्न हो सकता है. ईसा की उन्नीसवीं शती तक वैज्ञानिकों का मत था कि तत्त्व (Elements) अपरिवर्तनीय (Non-transformable) हैं. एक तत्त्व दूसरे तत्त्व के रूप में परिवर्तित (Transformed) नहीं हो सकता. किन्तु अब तेजोद्गरण (Radio activity) आदि के अनुसन्धानों से यह सिद्ध हो गया है कि तत्त्व परिवर्तित भी हो सकता है. किरणातु (Uranium) के एक अणु (Atom) में से जब तीन अ-कण (Particles) विच्छिन्न हो जाते हैं तो वह एक तेजातु (Radium) के अणु के रूप में परिवर्तित हो जाता है. इसी तरह जब तेजातु का एक अणु पाँच अ-कणों में विच्छिन्न हो जाता है तो वह सीसा (Lead) के अणु के रूप में परिवर्तित हो जाता है. यह तो हुई विगलन या खण्डन (Disintegration) की क्रिया और अब देखिये पूरण या मिलन (Combination) की क्रिया-भूयाति (Nitrogen) के एक अणु की न्यष्टि (Nuclues) में जब एक अ-कण मिल जाता है तो एक जारक (Oxygen) का अणु बन जाता है. यही प्रक्रिया लघ्वातु (Lithium) और विहूर (Beryllium) में भी संभव है. पुद्गल के गुण :-जैसा कि उक्त परिभाषा से स्पष्ट है, पुद्गल के मूलतः चार गुण होते हैं, स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण. इन चारों के भी बीस भेद होते हैं. यह वर्गीकरण अत्यन्त स्थूल रूप में किया गया है, वास्तव में तो ये गुण अपने विभिन्न रूपों में अगणित होते हैं. स्पर्श :—पुद्गल में आठ प्रकार का स्पर्श पाया जाता है—स्निग्ध, रूक्ष, मृदु, कठोर, शीत, उष्ण, लघु (हलका) और गुरु (भारी). १. (१) पूरणात् पुद् गलयतीति गलः । -शब्दकल्पद्र मकोष. (२) पूरणगलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः आचार्य अकलंकदेव : तत्त्वार्थराजवार्तिक, -अ०५, सू० १, बा० २४. (३) छविहसंठाणं बहुविहि देहेहि पूरदित्ति गलदित्ति पोग्गला. --धवला ग्रन्थ. (४) पुंगिलनात् पूरणगलनद्वा पुद्गल इति । -आचार्य अकलंक देव : तत्त्वार्थराजवार्तिक, अ०५, सू० १६, वा० ४०. (५) वर्ग-गन्ध-रस-स्पशैंः-पूरणं गलनं च यत् । कुर्वन्ति स्कन्धवत् तस्मात् पुद्गलाः परमाणवः । -आचार्य जिनसेनः हरिवंशपुराण, सर्ग ७, श्लो० ३६. (६) पूरणाद् गलनाच्च पुद्गलाः | ---गणी सिद्धसेन : तत्त्वार्थभाष्य की टीका, अ०५, सू० १. (७) पूरणाद् गलनाद् इति पुद्गलाः । -न्यायकोष, पृ० ५०२. २. सर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः । -आचार्य उमास्वामी, तत्त्वार्थसूत्र, अ०५, सू० २३. VS LOAN M/ARO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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