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________________ कन्हैयालाल लोया जैनदर्शन और विज्ञान ३३० : दो रेलगाडियां एक ही दिशा में पास-पास ४० मील और ३० मील की गति से चल रही हैं तो ३० मील की गति से चलने वाली गाड़ी की सवारियों को प्रतीत होगा कि उनकी गाड़ी स्थिर है और दूसरी गाड़ी ४०-३० = १० मील की गति से आगे बढ़ रही है, जब कि भूमि पर स्थित दर्शक व्यक्तियों की दृष्टि में गाडियां ४० मील और ३० मील की गति से चल रही हैं. इस प्रकार गाड़ियों का स्थिर होना व विभिन्न गतियों का होना सापेक्ष ही है. जिस प्रकार स्याद्वाद में 'अस्ति' और 'नास्ति' की बात मिलती है उसी प्रकार 'है' और 'नहीं' की बात वैज्ञानिक क्षेत्र के सापेक्षवाद में भी मिलती है. पदार्थ के तोल को ही लीजिए. जिस पदार्थ को साधारणतः हम एक मन कहते हैं. सापेक्षवाद कहता है यह 'है' भी और 'नहीं' भी. कारण कि कमानीदार तुला से जिस पदार्थ का भार पृथ्वी के धरातल पर एक मन होगा वह ही पदार्थ, मात्रा में कोई परिवर्तन न होने पर भी पर्वत की चोटी पर तोलने पर एक मन से कम भार का होगा. पर्वत की चोटी जितनी अधिक ऊँची होगी भार उतना ही कम होगा. अधिक ऊँचाई के कारण ही उपग्रह में स्थित व्यक्ति, जो पृथ्वी के धरातल पर डेढ़-दो मन वजन वाला होता है, वहाँ वह भारहीन हो जाता है. पदार्थ या व्यक्ति का भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न वजन का होना अपेक्षाकृत ही है. दूसरा उदाहरण और लीजिए- एक आदमी लिफ्ट में खड़ा है. उसके हाथ में संतरा है. जैसे ही लिफ्ट नीचे उतरना शुरू करता है वह आदमी उस संतरे को गिराने के लिए हथेली को उल्टी कर देता है. परन्तु वह देखता है कि संतरा नीचे नहीं गिर रहा है और उसी की हथेली से चिपक रहा है तथा उसके हाथ पर दबाव भी पड़ रहा है. कारण यह है कि संतरा जिस गति से नीचे गिर रहा है उससे लिफ्ट के साथ नीचे जाने वाले आदमी की गति अधिक है. ऐसी स्थिति में वह संतरा नीचे गिर रहा है और नहीं भी लिफ्ट के बाहर खड़े व्यक्ति की दृष्टि से तो वह नीचे गिर रहा है परन्तु लिफ्ट में खड़े मनुष्य की दृष्टि से नहीं. आधुनिक विज्ञान इसी सापेक्षवाद के सिद्धांत (Theory of relativity) का उपयोग कर दिन दूनी और रात चौगुनी उन्नति कर रहा है. सापेक्षवाद न केवल विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि दार्शनिक, राजनैतिक आदि अन्य सब ही क्षेत्रों की उलझन भरी समस्याओं को सुलझाने के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है. अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान् प्रो० डा० आर्चा पी० एच० डी० अनेकांत की महत्ता व्यक्त करते हुए लिखते हैं – The Anekant is an important principle of jain logic, not commonly asserted by the western or Hindu logician, which promises much for world place through metaphysical harmony. इसी प्रकार जैन दर्शन के 'कर्मसिद्धांत' और विज्ञान की नवीन शाखा 'परामनोविज्ञान', अणु की असीम शक्ति का आविर्भाव करने वाले विज्ञान की अणु-भेदन प्रक्रिया और आत्मा की असीम शक्ति का आविर्भाव करने वाली भेद-विज्ञान की प्रक्रिया आदि गणित सिद्धांतों में निहित समता व सामञ्जस्य को देखकर उनकी देन के प्रति मस्तक आभार से झुक जाता है. सारांश यह है कि जैनागमों में प्रणीत सिद्धांत इतने मौलिक एवं सत्य हैं कि विज्ञान के अभ्युदय से उन्हें किसी प्रकार का आघात नहीं पहुँचने वाला है, प्रत्युत् वे पहले से भी अधिक निखर उठने वाले हैं. तथा विज्ञान के माध्यम से वे विश्व के कोने-कोने में जन साधारण तक पहुँचने वाले हैं. विज्ञान जगत् में अभी हाल ही की चात्मतस्वशोध से आविर्भूत आत्म-अस्तित्व की संभावनाएँ एवं उपलब्धियाँ विश्व के भविष्य की ओर शुभ संकेत हैं. विज्ञान की बहुमुखी प्रगति को देखते हुए यह दृढ़ व निश्चय के स्वर में कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं है जब आत्म-ज्ञान और विज्ञान के मध्य की खाई पट जायेगी और दोनों परस्पर पूरक व सहायक बन जायेंगे. विज्ञान का विकास उस समय विश्व को स्वर्ग बना देगा, जिस में अभाव, अभियोग तथा ईर्ष्या, द्वेष, वैयक्तिक स्वार्थ, शोषण आदि बुराइयाँ न होगी. मानव का आनंद भौतिक वस्तुओं पर आधारित न होकर प्रेम, सेवा, Jain Education International For Private & Personal Use Only ७. www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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