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________________ कन्हैयालाल लोढा : जैनदर्शन और विज्ञान : ३३७ "विचार' शक्ति की परीक्षा करने के लिए डाक्टर वेरडुक ने एक यंत्र तैयार किया है. एक कांच के पात्र में सुई के सदृश एक महीन तार लगाया है और मन को एकाग्र करके थोड़ी देर तक विचार-शक्ति का प्रभाव उस पर डालने से सुई हिलने लगती है. यदि इच्छा-शक्ति निर्बल हो तो उसमें कुछ भी हलचल नहीं होती. विचार-शक्ति की गति बिजली से भी तीव्र है. पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक एक सैकेंड के १६ वें भाग में १२००० मील तक विचार जा सकता है." विचार के समय मस्तिष्क में विद्युत् उत्पन्न होती है और उसका असर भी मिकनातीसी सुई द्वारा नापा गया है. जिस प्रकार यंत्रों द्वारा विद्युत् तरंगों का प्रसारण और ग्रहण होता है और रेडियो, टेलीग्राम, टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, टेलीवीजन आदि उस विद्युत् को मानव के लिए उपयोगी व लाभप्रद साधन बना देते हैं, इसी प्रकार विचार-विद्युत् की लहरों का भी एक विशेष प्रक्रिया से प्रसारण और ग्रहण होता है. इस प्रक्रिया को टेलीपैथी कहा जाता है. यह पहले लिखा जा चुका है कि टेलीपैथी के प्रयोग से हजारों मील दूरस्थ व्यक्ति भी विचारों का आदान-प्रदान व प्रेषण-ग्रहण कर सकते हैं. भविष्य में यही टेलीपैथी की प्रक्रिया सरल और सुगम हो जनसाधारण के लिए भी महान् लाभदायक सिद्ध होगी, ऐसी पूरी सम्भावना है. आशय यह है कि अति प्राचीन काल ही से जैन जगत् के मनोविज्ञानवेत्ता मन के पुद्गलत्व, वर्ण, विद्युतीय शक्ति आदि गुणों से भलीभांति परिचित थे. जब कि इस क्षेत्र में आधुनिक विज्ञानवेत्ता अभी तक भी उसके एक अंश का ही अन्वेषण कर पाये हैं. ज्ञान जैनशास्त्रों में ज्ञान का वर्णन करते हुए कहा है : तत्थ पंचविहं नाणं, सुय आभिणिबोहिय । ओहिनाणं तु तइयं मणनाणं च केवलं ॥-उत्तराध्ययन अ० २८ गाथा ४ अर्थात् ज्ञान पांच प्रकार का है-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल ज्ञान. इनमें से मति और श्रुत ज्ञान तो प्रायः सर्वमान्य हैं परन्तु शेष तीन ज्ञान के अस्तित्व पर अन्य दार्शनिक आपत्तियां उपस्थित करते रहे हैं. लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषण ने इनको सत्य प्रमाणित कर दिया है. ज्ञान के स्वरूप का वर्णन करते हुए भगवती सूत्र श०१ उ० ३ में कहा है-अवधि ज्ञान से मर्यादा सहित सकल रूपी द्रव्य, मनःपर्यवज्ञान से दूरस्थ संज्ञी जीवों के मनोगत भाव तथा केवलज्ञान से तीन लोक युगपत् जाना जाता है. इसी विषय पर वैज्ञानिकों के विचार व निर्णय दृष्य हैं-- डा० वगार्नड थिगा लिखते हैं:२ "पीनियल आई" नामक ग्रन्थि का अस्तित्व मानव मस्तिष्क के पिछले भाग में है. ग्रंथि हमारे मस्तिष्क का अत्यंत सबल रेडियो तन्त्र है जो दूसरों की आंतरिक ध्वनि, विचार और चित्र ग्रहण करती है. इसका विकास होने पर व्यक्ति दुनिया भर के लोगों के मन के भेद जान सकने में समर्थ हो जायेगा. मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई दुराव न रह सकेगा. कोई किसी से कुछ छिपा कर न रख सकेगा." लेखक का यह भी कहना है कि यह शक्ति प्राचीन काल में विद्यमान थी, बाद में लुप्त हो गई. तथा डा. कर्वे का कथन है-"पांच इन्द्रियों के अतिरिक्त एक छठी इन्द्रिय भी है जो अगम्य है, जिसे हम अतीन्द्रिय भी कह सकते हैं. मनुष्य प्रयत्न करे तो इस छठी इन्द्रिय का विकास हो सकता है. इस इन्द्रिय या शक्ति के कारण हम दूसरों के मन की बात जान सकते हैं. मन के विचार जानने के अतिरिक्त ऐसे लोग दूर घटी घटना की सूचना भी प्राप्त कर सकते हैं. कुछ वर्षों पूर्व ऐसी बातें करने वालों को १. देखिये-संकल्प सिद्धि -अध्ययन-विचारशक्ति. २. नवनीत अप्रेल ५३ ३. नवनीत जुलाई ५५ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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