SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -0--0-0--0--0--0--0--0-0-0 ३३४ : मुनि श्रोहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय निमित्तो विद्युत्" अर्थात् विद्युत् स्निग्ध रूक्ष गुणों के मिलन का परिणाम है. यों कहें कि स्निग्ध गुण से धन (Positive) विद्युत् और रूक्ष गुण से (Negativc) विद्युत् उत्पन्न होती है. और इन दोनों को विद्यमानता प्रत्येक पदार्थ में अनिवार्य है. इस प्रकार आणविक बंधन के कारणभूत सिद्धान्त में जैन दर्शन और विज्ञान दोनों एक मत है. जैन दर्शन की भाषा में उसे स्निग्ध और रूक्ष गुणों का संयोग कहा है जब कि विज्ञान की भाषा धन और ऋण विद्युत् का संयोग कहती है. यही नहीं, विज्ञान ने जैन दर्शन के इस सिद्धान्त को–कि दो गुण से अधिक होने पर स्निग्ध का स्निग्ध के साथ और रक्ष का रूक्ष के साथ बंध होता है-स्वीकार कर लिया है. विज्ञान ने भारी ऋणाणु (Heavy Electrons) को स्वीकार किया है, उसे नेगेट्रोन (Negatrons) कहा जाता है. यह साधारण ऋणाणु का ही समुदाय है, इस प्रकार यह ऋणाणु का ऋणाणु के साथ अर्थात् रूक्ष का रूक्ष के साथ बंधन है. इसी प्रकार प्रोटोन स्निग्ध का स्निग्ध के साथ तथा न्यूट्रोन स्निग्ध का रूक्ष के साथ बंधन का परिणाम है. जैनदर्शन परमाणु को निरंतर गतिशील मानता है. विज्ञान भी कहता है कि प्रत्येक परमाणु में ऋणाणु (इलोक्ट्रोन) हैं और प्रत्येक इलोक्ट्रोन प्रति सेकिण्ड अपनी कक्षा पर १३०० मील की चाल से चक्कर काटता है. प्रकाश की गति प्रति सैकिण्ड १८६००० मील है. जैन शास्त्रों में पुद्गल का वर्णन करते हुए कहा है:-- सहन्धयार-उज्जोओ, पभा छायाऽऽतवे इ वा , वरणरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं । उत्तराध्ययन सूत्र अ० २८ गा० १२. अर्थात् शब्द, अंधकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप एवं वर्ण, गंध, रस स्पर्श ये पुद्गल हैं. इनमें से शब्द, अंधकार, प्रकाश, प्रभा, छाया, और ताप को पौद्गलिक मानना जैन दर्शन की निजी विशेषता थी, जो अन्य दर्शनों से निराली ही थी. 'शब्द' ही को लीजिए। पहले यह आकाश का गुण माना जाता था. इस विषय में प्रो० ए० चक्रवर्ती का मत देखिए:The Jain account of sound is a physical concept. All other Indian systems spoke of sound as a quality of space. But jainism cxplains in relation with material particles as a result of concission of atmospheric molecules. To prove this the jain thinkers employed arguments which are now generally found in the text Book of physics. यहाँ यह दिखलाया गया है कि अन्य सब भारतीय विचारधाराएँ शब्द को आकाश का गुण मानती रही हैं जब कि जैनदर्शन उसे पुद्गल मानता है. जैन दर्शन की इस विलक्षण मान्यता को विज्ञान ने पुष्ट कर दिया है और अब वह पाठ्यपुस्तकों पर भी उतर रही है. आधुनिक वैज्ञानिक मानते हैं कि 'शब्द' शक्ति (energy) रूप है और यह प्रति घंटा ११०० मील की गति से आगे बढ़ता है. परन्तु विज्ञान के नये आविष्कारों ने शक्ति को पदार्थ का ही सूक्ष्म रूप स्वीकार कर लिया है. अतः शक्ति अब पदार्थ से भिन्न प्रकार की कोई वस्तु नहीं रह गई है. प्रोफेसर मैक्सबोर्न लिखते हैं-Energy and mass are just different names for the same thing-अर्थात् शक्ति और पदार्थ एक ही वस्तु के दो अलग-अलग नाम हैं. यही नहीं, आईस्टीन के सापेक्षवाद के अनुसार शक्ति भार सहित प्रमाणित हो चुकी है, साथ ही पदार्थत्व (mass) वाली भी. विज्ञान अंधकार, प्रकाश, छाया, ताप को शक्ति (energy) रूप मानता है और पहले कह आये हैं कि शक्ति पुद्गल का ही रूपान्तर मात्र है. अतः ये पुद्गल ही हैं. इस प्रकार जनदर्शन के इनको पौद्गलिक मानने के सिद्धांत की पूर्ण पुष्टि हो जाती है. अंधकार, छाया और प्रकाश का विवेचन करते हुए लिखा है:अंधकार केवल प्रकाश तथा व्यक्तीकरण पट्टियों (Interferance bands) पर गणना यंत्र (counting machine) चलाया जाय तो काली पट्टी में से विद्युत् रीति से विद्युद्दण्ड निसृत होते हैं. इससे सिद्ध होता है कि काली पट्टी केवल प्रकाश का अभाव ही नहीं किन्तु शक्ति (energy) का रूपांतर भी है. अतः अंधकार और छाया उर्जा के भी THATRAPATI -S SINESS S म Jain Educando tematto For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy