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________________ श्रीकन्हैयालाल लोढा, बी० ए० जैनदर्शन और विज्ञान वर्तमान युग विज्ञान का युग है. इसमें प्रत्येक सिद्धांत विज्ञान के प्रकाश में निरखा-परखा जाता है. विज्ञान की कसौटी पर खरा न उतरने पर उसे अंधविश्वास माना जाता है और उस पर विश्वास नहीं किया जाता है. आज अनेक प्राचीन धार्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्त विज्ञान के समक्ष न टिक सकने से धराशायी हो रहे हैं. परन्तु जैनदर्शन इसका अपवाद है. वह विज्ञान के प्रकाश से शुद्ध स्वर्ण के समान अधिक चमक उठा है. विज्ञान के विकास के पूर्व जनदर्शन के जिन सिद्धांतों को अन्य दर्शनकार कपोल-कल्पित कहते थे वे ही आज विज्ञानजगत् में सत्य प्रमाणित हो रहे हैं. जिस युग में प्रयोगशालाएँ तथा यान्त्रिक साधन न थे, उस युग में ऐसे सिद्धांतों का प्रतिपादन करना निश्चय ही उनके प्रणेताओं के अलौकिक ज्ञान का परिचायक है. जैनदर्शन के सिद्धांतों से विश्वविख्यात साहित्यकार श्री जार्ज बर्नार्ड शा इतने अधिक प्रभावित थे कि महात्मा गांधी के पुत्र श्रीदेवदास गांधी ने जब उनसे पूछा कि आप से किसी धर्म को मानने के लिए कहा जाय तो आप किस धर्म को मानना पसंद करेंगे ? शा ने चट उत्तर दिया-- 'जैनधर्म'. इसी प्रकार प्रसिद्ध विद्वान् डा. हर्मन जैकोबी आदि ने जैनदर्शन के सिद्धांतों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है. जनदर्शन के उन कतिपय सिद्धांतों पर, जो पहले इतर दार्शनिकों के बुद्धिगम्य न थे और आज विज्ञान जिन्हें सत्य सिद्ध कर रहा है, प्रस्तुत निबन्ध में प्रकाश डाला जायेगा. जीव तत्त्व पृथ्वी, पानी, पावक, पवन और वनस्पति की सजीवताः-जैनदर्शन विश्व में मूलत: दो तत्त्व मानता है :-जीव' और अजीव. इनमें से जीव के मुख्यतः दो भेद माने गये हैं--त्रस और स्थावर. वे जीव जो चलते फिरते हैं त्रस और जो स्थिर रहते हैं वे स्थावर कहे जाते हैं. केंचुआ, चिउंटी मक्खी, मच्छर, मनुष्य, पशु आदि त्रस जीवों को तो अति प्राचीन काल से ही प्रायः सभी दर्शन सजीव स्वीकार करते रहे हैं परन्तु स्थावर जीवों को एक मात्र जैनदर्शन ही सजीव मानता रहा है. स्थावर जीवों के भी पांच भेद हैं-पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति. कुछ समय पूर्व तक जैनदर्शन की स्थावर जीवों की मान्यता को अन्य दर्शनकार एक मनगढंत कल्पना मानते थे. परन्तु आज विज्ञान ने इस मान्यता को सत्य सिद्ध कर दिया है. १. जीवा चेव अजीवा य एस लोए वियाहिए.-उत्तराध्ययन अ०३६ गाथा २. २. संसारिणस्त्रसस्थावरा:-तत्त्वार्थसूत्र अ० २ सूत्र १२. ३. पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः-तत्त्वार्थसूत्र अ० २ सूत्र १३. Jair Cinelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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