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________________ Jain लोंकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २३६ मुनि कान्तिसागर सेवो रूपसिंघ हे सखी युगप्रधांन जसवंत जिसो जी । वैरागी वड भाग हे सखी कुण कहीजइ त्रिभुवन मांहि तिसो जी । साह पेथड सुत सार है सखी मात कनकादे उरि ऊपना । जाणों जंबूकुमार हे सखी गुणनिधांन गछपति नीपना जी ॥ गुरु गौतम अवतार हे सखी जसवंतजीइं पूरा परषीया जी । आचारिज पद आपि हे सखी संघ समीक्ष्यइं हीयडि हरषीया जी ॥ जसवंतजी जगि जाण हे सखी आठ पहोर नो अणसण आदरी जी । सार्या सघलां काम हे सखी पाटि पट्टोधर रूपसिंघजी करी जी ।। वरत्यौ जय-जयकार हे सखी दरसण दीठइ दोलति होइ घणी जी । हरष धरि मन मांहि हे सखी आण मानयो सहुको एह तणीजी || सुरतरु सरिषो सुजाण हे सखी पार न पामि गुरु गुण ते कही जी । तो मानव कुण मात है सखी गुण संपूरण बोलिजे सुहीजी || श्रीरूपसिंघ ऋषिराइ हे सखी पुहवी प्रतपो अविचल । भोज भइ कर जोडि नाम वपुं निज गुरु तुम्ह तणुंजी ॥ मेह समरइ जिम मोर हे सखी । तिम समरूं तुम्ह नाम हे सखी हरष धरीनि गिरुया गछपति ।। मेह ती परि वाट हे सखी संघजी जोइ सदगुरु तुम्ह तणी जी । मया करी मुनिराई हे सखी वेगइ वंदावो गुरुजी गच्छ धणी जी ॥ कलशलो श्री तस पाटि दिनकर जिसो दीपइ श्रीरूपसिंघ वषांणीइ || नर नारि भणिस्य अनि सुणस्यइ गछपतिना गुण घणां । श्रीपूज्य शिष्य कर जोडि जंपइ फलइ मनोरथ तस तणां ॥ इति श्री भास संपूर्ण लिखतं ऋषि भोजाजी तस्य शिष्य ऋषि वाघा । बाई अमृत पठनार्थ ॥ ६ वाघ मुनि रचित रूप ऋषि भास ढाल आरिनी प्रथम जिनेसर पाय प्रणमीनि श्रीगुरु लागुं पाइ । श्री पूज्यना पट्टोधर गाऊं पात्तिक दूरि पुलाय ॥ १ ॥ गुणायर गछपति गाइइ हो श्रीरूपसिंघ साधु सुजांण गु० आंकणी || श्रोसस अवनीतल उदयो साह पेथड सुत सार । दिनकरनी परि दीपइ दिन-दिन गुरु ज्ञान तणा भंडार ॥ स्वर्गं तजा सुष सुंदर अनुभवि कनकादे उरि अवतार । उत्तम ग्रह अनुसारि अनोपम जनम हुउ तिण बार ॥ For Private & Personal Use Only 330000 च्याय www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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