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________________ मानव जीवन में सर्वोत्तम है और जिसकी बदौलत संसार में आज भी प्रशस्त भावनाएँ प्रभाव हीन नहीं हुई हैं, वह उच्च तत्त्व प्राणी मात्र को अपने समान मान कर व्यवहार करने वाले महान् सन्तों की ही देन है. सन्त का जीवन व्यवहार और उपदेश मानव जाति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला होता है. संसार ऐसे सन्तों का सदा ऋषि रहा है. राजस्थान की एक निर्मल विभूति मूनि हजारीमलजी म० ऐसे ही सन्तों में से एक थे. मैं उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. और उनकी स्मति में प्रकाशित होनेवाले विराट् ग्रंथ के आयोजन की सफलता चाहता हूँ. भंवरलाल मेहता डायरेक्टर स्वायत्त शासन विभाग पवत्रिता, सादगी और उच्चता भारतीय संस्कृति का मूल है. हमारे सन्तों ने हमारी संस्कृति के उन मूल्यवान् तत्त्वों को को सदैव ही सुरक्षित रखा है. और समय समय पर विकसित भी किया है. उनके जीवन से प्रेरित हो कर हम लोग भी अपनी इस महान् सस्कृति की धारा के साथ चलते हैं और बढ़ते रहे है. मुनिश्री हजारीमलजी म० का जीवन एक तपोनिष्ठ सन्त जीवन था. स्मृति में प्रकाशित किये जा रहे स्मृतिग्रंथ का महत्त्व तथा मूल्य इसलिए निर्विवाद है. मैं इस ग्रंथ की पूणतः सफलता चाहता हूँ. गुलाबसिंह लोढ़ा डायरेक्टर समाज कल्याण राजस्थान स्वामीजी महाराज के दर्शन पाने का सौभाग्य तो मुझे नहीं मिला, परन्तु उनके विषय में जो कुछ सुना और पढ़ा है, उससे मेरा हृदय उनके प्रति श्रद्धा से पूर्ण है. ऐसे महानुभाव किसी भी सम्प्रदाय के क्यों न हों वे सब के आदरणीय होते हैं. उनकी साधुता के प्रति मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित है. मेरी तुच्छ बुद्धि में यही आता हैपथ बहुत हैं, एक ही गन्तव्य, दिव्य की ही ओर उन्मुख भव्य । -मैथलीशरण Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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