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________________ २१८ : मुनि श्रोहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय 落落亲帮菜就法器类学聚落落落都常常都帶著 shelp एवं ग्रंथकी थी. गल्लू ऋषि शिष्य श्रीपाल ने “दशवैकालिक बालावबोध" की रचना सं० १६६४ में की जिसकी कर्ता के हाथ की प्रति उपलब्ध है. पुष्पिका इस प्रकार है श्रीमन्महावीरशासनेचितामणिसदृशाः प्राचार्य श्रीरूपऋषि तत्पट्टे गच्छाधिपो मुनिश्रीजीवराजस्तस्पट्टे मुनि श्री कुवरजीगच्छाधिपस्तत्पट्ट मुनि श्री श्रीमल्लगच्छाधिपस्त पट्टे आचार्य श्रीरत्नसिंह विराजमाने प्राचार्य श्रीजीवनऋषि हस्तदीक्षितऋषि श्रीमल्लूस्तशिष्य मुनि श्रीपालेन श्रीगुरुप्रसादात् विरचितः श्रीदशवैकालिक बालावबोधः ।। सं० १६६४ वर्षे श्रीविक्रम महानगरे प्रासो मासे शुक्लपक्षे द्वितीया दिने शुक्रवारे प्रथम दिने प्रथग प्रहरे लाभ बेलायां सम्पूर्ण कृतः लिषितं श्रोपाल मुनिना स्वपठनार्थे इनके अतिरिक्त कुंवरजी प्रमुख मुनियों द्वारा रचित साहित्य इस प्रकार उपलब्ध हैं१, कुंवरजी साधु वंदना र० का, सं० १६२४. २. नानजी पंचवरण स्त० र० का० सं० १६६६. ३. समरचंद्र श्रेणिक रास र० का० सं० ४. बालचंद्र बालवावनी र० का० सं० १६८५ ५. केशवजी लोकाशाह शिलोका र० का० सं० १६८८ लगभग. ६. धर्मसिंह आ० शिवजी रास र० का० सं० १६६२ उदयपुर, धर्मसिंहजी शिवजी ऋषि के शिष्य थे. इनसे दरियापुरी सम्प्रदाय अलग चला. इन्होंने कई प्राकृत भाषा की रचनाओं पर स्तवकादि लिखकर सामान्य मुनियों को स्वाध्याय की सुविधा की. ये कवि भी थे. इनकी परम्परा २० वीं शती तक विद्यमान रही है. आणंद गणितसार र० का० सं० १७२१ लालपुर आणंद हरिवंश चरित्र र० का० सं० १७३८ राधनपुर. किशन मुनि कृष्णबावनी र० का० सं० १७६७ स्फुट स्तुति रामचन्द्र तेजसार रास र० का० सं०१८६० नवानगर. एक महत्त्वपूर्ण गुटकातात्कालिक अन्यान्य ऐतिहासिक साधनों से प्रमाणित है कि लोंकागच्छ के अष्टम प्राचार्य जीवाजी के एक शिष्य कुंवरजी को बालापुर के श्रीसंघ ने आचार्य पद देकर 'लोंकागच्छ नानी पक्ष' की स्थापना की. बालापुर और तत्सन्निकटवर्ती प्रदेश में इनका वर्चस्व था. बालापुर और बुरहानपुर सत्रहवीं शताब्दी से ही जैन संस्कृति के व्यापक केन्द्र रहे हैं. दोनों स्थानों के श्रावकों में प्रारम्भ से ही स्वाध्याय के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रहा है. सतत संतसमागम के कारण संस्कारशील परम्परा का प्रादुर्भाव एवं विकास साहजिक कार्य है. मैं यहाँ पर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित गुटके का परिचय देने जा रहा हूं जिसमें कुंवरजी पक्ष के मुनियों द्वारा रचित अज्ञात रचनाएं संकलित हैं. इसका लेखनकाल सं० १७०४ से १७२६ है. सुप्रसिद्ध सैद्धान्तिक कवि जीवराजजी के शिष्य लालजी, सामल और श्रीपति ने इसे विभिन्न समयों में वहां के प्रतिष्ठित श्रावक श्री अमरसी पुत्र अखयराज, विजयराज, रूपराज और जीवराज के लिए प्रतिलिपित किया. नित्य स्वाध्याय के गुटके के शीर्ष भाग में "गुरु केशवजी गुरुभ्यो नमः" आलेखित है. भक्तामर, कल्याणमन्दिर स्तोत्र और संबोधसत्तरी के अतिरिक्त साम्प्रदायिक रचनाओं का सुन्दर संग्रह है. श्रीपति, जीवराज, सांमल, बालचन्द आदि मुनियों की कृतियाँ सन्निविष्ट हैं. गुटका सूचित परिवार के कलाप्रेम का परिचायक है, चारों ओर सुन्दर बोर्डर बनाकर विविध अलंकरणों से सुसज्जित है. इसमें जो लेखनपुष्पिकाएं दी हैं वे मुनिपरम्परा की नामावली उपस्थित करती हैं. केशवजी शिष्य भीमा, ठाकुरसी ऋषि, पूंजराजजी, वाघजी, हीरानन्द (मीरपुरीय) आदि नव्य नाम कृतियों के साथ हैं. Jain EdUCO www.jainelikirary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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