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________________ पारसमल प्रसून एम० ए०, साहित्यरत्न दीर्घदृष्टि लोकाशाह विषय-प्रवेश विक्रम संवत् १४७२ के कार्तिक मास की अमल रात्रि ! ऊपर नील गगन में चन्द्रमा अपनी समग्र रश्मियों से जगमगा कर वसुधातल को उजला बना रहा था. कितना सुन्दर संयोग था कि सौभाग्यवश इसी रात्रि में धरती पर भी अरहटवाड़ा नगर में, ओसवाल गृहस्थ सेठ हेमाभाई के घर, माता गंगाबाई की कुक्षि से एक चन्दा का उदय हुआ. कवि की बात सही हुई कि-"एक ही रात में दो दो चांद खिले". पर आश्चर्य कि इस सलौने चांद ने आगे जाकर प्रचण्ड प्रभाकर की तरह, धार्मिक जगत् में व्याप्त रूढ़िवादिता के अज्ञानपूरित भीषण अंधकार को क्षत-विक्षत कर, सत्य के प्रखर आलोक से आध्यात्मिक क्षेत्र को प्रकाशित कर प्रशस्त बनाया. यह चन्द्रमा और कोई नहीं, मध्यकालीन जगत् का अग्रगण्य, महाप्रभावक, निडर क्रांतिकर वीर लोंकाशाह था. वही लोकाशाह जिसकी क्रान्ति जन जगत् के इतिहास में अद्वितीय एवं अद्भुत है, और वही लोकाशाह जिसके पुण्य प्रयासों का ही सत् परिणाम है आज का स्थानकवासी समाज. तात्कालिक परिस्थितियाँ कल्पसूत्र में उल्लेख है-भगवन् ! आपके जन्म-नक्षत्र पर भस्मकग्रह का संक्रमण है--उसका क्या फल होगा? शकेन्द्र ने भगवान् से नम्र जिज्ञासा की. भगवान् ने फरमाया- "हे इन्द्र ! इस भस्मकग्रह के कारण दो हजार वर्ष तक श्रमणसंघ की उत्तरोत्तर सेवा-भक्ति क्षीण होगी. धर्म की हानि होगी. जड़ता बढ़ेगी. सच्चे गुणों की पूजा घटेगी. भस्मकग्रह के हटने पर जैन धर्म में नव चेतना का जागरण होगा. उजड़े उपवन में एक नई बहार छा जायेगी. वीतराग के वचन में कैसे सत्य नहीं ? वे तो सर्वज्ञ होते हैं. भगवान् महावीर के निर्वाण के कुछ समय पश्चात् पंचम पारा प्रारम्भ हो गया. काल-प्रभाव से धर्म का भी क्रमशः ह्रास होने लगा. कल के चमकते दमकते धर्म-सूर्य को आज ग्रहण लग गया था. दृढ़ वैराग्य व सर्वोच्च त्याग की मनहर भूमिका पर आधारित जैन धर्म आज आडम्बर व विलासिता के कीचड़ में फंस गया था. त्याग भोग से पराजित हो गया था, विराग के स्थान पर जैन-वीणा आज राग के मादक स्वर अलाप रही थी. श्रमणवर्ग में शैथिल्य का अखण्ड साम्राज्य था. नंगे पाँव, नंगे शिर, गांव गांव, नगर Jain EOS www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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