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________________ 常装藥業带涨涨涨涨猪猪購業樂業開著 १६४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय व्यवहार करता है, यह पढ़कर रौद्ररस हमारे सामने साकार हो उठता है सोमल देखी लारलो देशी, बांधी माटी नी पाल । मस्तक खीरा मेलिया अंगीरा, वेदन भई असराल । नाड्यां तूटे ने भेजी फूटे, बल रही नसां जाल । छन्दों में आपने प्रचुर मात्रा में पद ही लिखे हैं, पर सवैया और दोहा आदि छन्दों का भी प्रयोग किया है. वास्तव में आचार्य श्रीआसकरणजी की रचनाएँ हिन्दी साहित्य भंडार की अनमोल निधि हैं. आपकी बहुमूल्य समस्त रचनाएँ उपलब्ध होने पर निश्चय ही भारतीय साहित्य की श्रीवृद्धि होगी. व्रज, भोजपुरी, अवधी आदि भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य की अपेक्षा निस्संदेह राजस्थानी का साहित्य अधिक समृद्ध है. डिंगल में वीररस के अनेकानेक ग्रंथ उपलब्ध हैं. आचार्य जी की रचनाएँ वीररस के अलावा प्रेम, त्याग, वैराग्य आदि के क्षेत्र को अपनी रसमयी काव्यधारा से सिंचित करती हैं. दुःख है कि अधिकांश राजस्थानी साहित्य अब तक अप्रकाशित है और काव्यप्रेमियों के लिए अनुपलब्ध है. आशा है हिन्दी साहित्य-संसार आचार्य जी के साहित्य का अध्ययन कर उसका यथोचित सन्मान करेगा. वास्तव में आपकी रचनाएँ मुमुक्षुओं के लिए सांत्वनाप्रद और आशा-किरण हैं. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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