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________________ विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ: १२५ श्रद्धार्पण तत्त्वज्ञों ने मानवजीवन की सफलता त्याग में मानी है. जिसके जीवन में त्याग है, अध्यात्मसाधना के लिए धर्मपरायणता है, वही व्यक्ति अखिल विश्व के लिए वन्दनीय और महनीय होता है. मरुधर देश के पावनकर्ता, तपोनिष्ठ स्वर्गीय श्रद्धेय स्वामी श्रीहजारीमलजी म० एक महान् आदर्श संतरत्न थे. मैंने आपके दर्शन भीनासर-सम्मेलन में किये थे. वे क्षण अनिर्वचनीय आनन्दप्रद व दुर्लभ थे, जो सौभाग्य से मुझे मिले. आपके दिव्य जीवन में मधुरता, तेजस्विता आदि अनेकानेक गुण विद्यमान थे. आपश्री शरीर से वृद्ध होते हुए भी युवक की भांति उत्साहपूर्ण व कुशल कार्यकर्ता थे. आपका जीवन सरल एवं निरभिमान था. ज्ञानाभ्यास गहन था. आप शासन सेवा में सदैव तत्पर रहते थे. आपने जैन संस्कृति को जीवित रखने व प्रसारित करने में बेजोड़ श्रम किया. बाधाओं से घबराना आपने सीखा ही न था. इसीलिए आप आज भी जन-जन के हृदयमंदिर में विराजमान हैं. उस महान् आत्मा के चरण-कमलों में मेरी श्रद्धा के पुष्प समर्पित हैं. श्री मदनमुनिजी “पथिक' कलपे म्हाणो जीवडलो (तर्ज-म्हाने जयपुरियारो लहरियो...) गुरुवर दीनानाथ, जोड़ां चरणां में हाथ । म्हाणी झुक-झक वन्दना होईज्यो म्हाणा स्वामी जी। कलपे म्हाणो जोवड़ लो-टेर म्हाणा कालजा री कोर, म्हाणा माथा रा हो मौड़। म्हाने छोड़ी ने अकेला, आप चाल्या प्रो म्हाणा स्वामी जी। कलपे म्हाणो जीवड़लो-१ मोतीलाल जी रा नन्द, नन्दू बाई रा कुल चन्द ।। गांव डांसरिया में आप, जनम लीनो म्हाणा स्वामी जी। __कलपे म्हाणो जीवड़लो-२ प्यारो नाम है हजारी, बोले सघला नर नारी। मोटी पुण्यवानी साथे लेई, पाया ओ म्हाणा स्वामी जी। ____ कलपे म्हाणो जीवड़लो-६ छायो घट में वैराग, देऊ संसार ने त्याग । मोह माया ने छोड़ी ने, संजम लीनो म्हाणा स्वामी जी । कलपे म्हाणो जीवड़लो-४ auhan राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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