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________________ १२२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय आज मस्तक स्वतः ही झुका जा रहा है 景深謀業紧器洋家常瑞洋將羅漢 आज मस्तक स्वत: ही झुका जा रहा, कर रहा भक्ति के पुष्प अर्पित तुम्हें. किन्तु वाणी कहे आज क्या किस तरह, किस तरह वह तुम्हारी करे अर्चना ? किस तरह वह तुम्हारे गुणों को कहे, क्या करे वह नये कोष की सर्जना ? स्नेह भीने सहस्रों हृदय अश्रुओं से, करेंगे गुरुवर्य चचित तुम्हें. आज मस्तक स्वतः ही झुका जा रहा, कर रहा भक्ति के पुष्प अर्पित तुम्हें. था लहरता तुम्हारे नयन में सदा, स्नेह का एक निस्सीम निष्पाप सागर. कि करुणा उमड़ती सदा बन तरंगें, गगन कांपता डोल जाता प्रभाकर. 'हजारी' हजारों बरस तुम हृदय में, बहो प्रेरणा का सहज स्रोत बनकर. सभी आत्माएं बनें भद्र तुम-सी, तुम्हारे सुगुण ही रहें सब बिखर कर. जगत् के प्रलोभन सदा दूर रहते, कि मानों प्रताडित किया हो उन्हें. आज मस्तक स्वतः ही झुका जा रहा, कर रहा भक्ति के पुष्प अर्पित तुम्हें. हुआ क्या न सशरीर हो जो यहां पर, न करना कभी पर विजित हमें. आज मस्तक स्वतः ही झुका जा रहा, कर रहा भक्ति के पुष्प अर्पित तुम्हें. सुकोमल वयस में गहा मुक्ति का पथ, सदा अग्रसर किन्तु होते रहे थे. कभी भी न नन्हें चरण डगमगाए, महत साधना-भार ढोते रहे थे. तपोधन ! तुम्हें वन्दना बार सौ-सौ, सहस बार स्नेहांजलि भेंट तुमको. महादिव्य आत्मा, महा प्राणयोगी, सहस बार श्रद्धांजलि देव तुमको. दिखाया सदा पथ भटकते हुओं कोकिया आत्मवत और हर्षित उन्हें. आज मस्तक स्वतः ही झुका जा रहा, कर रहा भक्ति के पुष्प अर्पित तुम्हें. हृदय में सदा छवि तुम्हारी रहेगी, दृगों ने किया क्योंकि चित्रित तुम्हें. आज मस्तक स्वतः ही झुका जा रहा कर रहा भक्ति के पुष्प अर्पित तुम्हें. श्री कमला जैन 'जीजी' एम. ए. Jain Ed Latiosemational Shardale Only Sww.jrincibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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