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________________ 88824888034930030030393003930MER ११८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय बड़ी बातें बनाते हैं तो उनका ज्ञान उन्मत्तप्रलाप मात्र है. जो भी उनके सम्पर्क में आया और जिसने उनके वचनामृत का पान किया, वही उनकी संत प्रकृति व अनेक सद्गुणों का भक्त बन गया. वे महान् सरलहृदय सन्त थे. उन्होंने जीवन भर कभी नाम पाने की आंकाक्षा नहीं की. जो भी सन्तप्तहृदय उनके पास पहुँच गया उसे सदैव सन्मार्ग का उपदेश देकर अशोक-वाटिका में पहुँचा दिया. यही उनकी महान् देन उनके उपदेशों में सदैव झलकती रहती थी- 'वर्तमान वर्ते सदा सो ज्ञानी जग मांय' उन्होंने जिन भावों से सांसारिक सुखों का त्याग किया उन्हीं उच्च भावों को जीवन भर कायम रखा. वैसे तो स्थानकवासी समाज में साम्प्रदायिक मोह अभी तक कुछ अंशों में विद्यमान है और प्रायः श्रावकगण में कुछ लोग अभी तक इसे मान्यता भी प्रदान करते हैं मगर जो भी स्थानकवासी जैन इस महान् आत्मा की सेवा में उपस्थित हुआ और जिसने वचनामृत का पान किया, उसने अपने सम्यक्त्वदाता गुरु के समान उनका सादर सत्कार किया. श्रीसरदारमलजी छाजेड़ जेनी सुवास सर्वत्र म्हेकी रही छे कुदरतना गर्भागारमाथी विश्वना विशाल भूमंडल पर प्रतिदिन अनेक व्यक्तिओ प्रवेशे छे अने विदाय ले छे. परन्तु चित्रगुप्तना चोपडे मे सोनी नोंध लेवाती नथी अने स्मृतिये जळवाती नथी. आम छतां आ सनातन नियम सर्वथा अपवादविहीन तो नथीज. अनेक पयगंबरो, तीर्थंकरो, ज्योतिर्धरो अने महापुरुषो के जेओओ पृथ्वी पर प्रवेशी, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह आदि सत्योनो विश्वने संदेश आप्यो, अमनी नोंध इतिहासना पाने सुवर्णाक्षरे अंकाई छे, अने अमनी स्मृति युग-युगथी लोकोना अन्तरमां दृढ़ स्वरूपे सचवाई रही छे. आ ग्रंथमा अवा एक वीतरागी सन्त श्रीहजारीमलजी म. नी स्मृति जनहृदय पर चिरंजीव राखवानो सुयोग्य प्रयास करवामां आव्यो छे. स्मृतिग्रंथ प्रकाशन समिति द्वारा प्रगट थयेल 'महकता व्यक्तित्व' शीर्षक पुस्तक द्वारा जाणवामां आव्यु के मात्र अगीयार वर्षनी कुमली वये श्रीहजारीमलजी म० नु जीवन, तप, त्याग, वैराग्यथी सर्वथा योगनिष्ठ बनी गयुं हतु . अमना अंतरमा प्रेम, करुणा, त्याग अने मध्यस्थभाव महेकता. संसार अषणाथी पीडित मानवीओ प्रत्ये अमनी संवेदना सदैव जागृत रहेती, संसार त्रस्त मनुष्योना ओ आश्वासन हता. चिंतन, मनन आत्मरटन, निदिध्यासनमां मे सदा ओतप्रोत रहेता, धर्मोपदेश आपता त्यारे ज्ञान, विरक्ति अने मुदुतानी सुरभि अमना शब्दे-शब्दे टपकती, अमनी वैराग्यमूलक वाणीनो स्रोत श्रोताने मंत्रमुग्ध बनावी देतो. तोली तोली ने बोलाता शब्दो आकार लेता त्यारे अमां सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्रनी प्रतिभा प्रतिबिम्बित थती. मूले आचार्य श्रीजयमलजी महाराजना संप्रदायना संत श्रमणसंपनी स्थापना पहेलां वी० सं० १९८८ मां पाली मुकामे भरेला ६ संप्रदायना संघना प्रवर्तक रह्या. अ बाद वर्धमान श्रमण संघनी स्थापना थतां तेमनो संप्रदाय श्रमणसंघमां प्रविष्ट थतां तेओ विशाल श्रमणसंघना अक प्रतिभाशाली सन्त बन्यां. आ प्रभावशाली सन्त श्रीहजारीमलजी महाराजनी स्मृति रूपे आध्यात्मिक, तात्त्विक, शैक्षणिक आदि विविध प्रकारना साहित्यथी समृद्ध अवो स्मृतिग्रंथ प्रकाशित थई रह्यो छे, ओ माटे स्मृतिग्रंथसमितिने धन्यवाद छे. जेओ अमना जीवनकाल दरम्यान वीतरागी, योगनिष्ठ, आध्यात्मिक अने उत्कृष्ट साधक जीवननी सुन्दर सुवास पसारी गया अवा श्रीहजारीमलजी म० श्री प्रत्ये हुं मारी आ भाव-भक्तिभरी श्रद्धांजलि सम छु'. श्रीखीमचन्द मगनलाल वोरा, मंत्री, अ० भा० स्था० जैन कॉन्फरेंस COODARA L s-IIII Jain ELA www.janenorary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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