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________________ #NIRMEREKKARKHERE962 १६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय आपने जीवन को पंगु बनाकर एक स्थान पर रहने की अपेक्षा विचरणशील जीवन ही पसंद किया. वे कहते थे कि 'रमता जोगी और बहता पानी पवित्र रहता है'. स्वामीजी का अन्तिम चातुर्मास संवत् २०१८ कार्तिक शुक्ला १४ को कुचेरा में सानन्द सम्पन्न हुआ था. अस्वस्थतावश बर्षावास सम्पन्न हो जाने पर भी कुछ अधिक समय तक विराजना हुआ था. स्वास्थ्य कुछ ठीक होने पर खजवाना की तरफ विहार किया. महाराजश्री जब खजनाना विराज रहे थे तब वहाँ के श्रावकों ने कुछ अधिक दिन तक अपने यहाँ विराजने की प्रार्थना की, स्वामीजी ने श्रावकों से कहा था- 'मुझे तो नोखा जाना है'. कौन जाने नोखा जाने की यह बात स्वामीजी का भविष्य ज्ञान था या अकस्मात् यूं ही यह शब्द स्वामीजी महाराज के श्रीमुख से निकल गये थे. वे नोखा पहुँच कर नोखा के ही हो गये. मेड़ता तहसील में 'नोखा चांदावतों' का एक सुन्दर ग्राम है. मद्रास नगर के ख्यातनामा सेठ श्रीमान मोहनमलजी चोरडिया की यह जन्मभूमि है. यहाँ विशाल चोरडिया परिवार निवास करता है. यहाँ के सभी श्रावक स्वामी जी म० के विशेष भक्त हैं. भक्तों की भावना पूर्ति के लिये ही स्वामी जी, संभव है, नोखा पधारे थे. नोखा में बड़े आनन्द पूर्वक विराजमान थे. धर्मध्यान तथा तपस्या इत्यादि चल रही थी. परन्तु अघटितघटितं घटयति, सुघटितघटितानि दुर्घटीकुरुते । विधिरेव तान्विघटयति, यान्नरो नैव चिन्तयति . सुगमता से सम्पन्न होने वाले कार्य कठिनता से सम्पन्न हो पाते हैं. अनहोनी घटनायें सामने उपस्थित हो जाती हैं. विधिविधान कुछ ऐसा विचित्र है कि उन घटनाओं का हम सबको सामना करना पड़ता है, जिनके बारे में मनुष्य कभी सोच भी नहीं पाता है. सं० २०१८ चैत्रकृष्णा दशमी की रात्रि को उन्होंने अत्यन्त शान्तभाव से समाधिमरण किया. उनके देहोत्सर्ग के थोड़े ही क्षणों में शोक-समाचार चारों ओर गृहस्थों ने प्रसारित किये. जोधपुर, अजमेर ब्यावर, पाली, नागौर, कुचेरा एवं सुदुर प्रदेशों में जैन जनता को तार-फोन आदि किये गये. समीपस्थ ग्रामों के निवासी स्वामीजी के अन्तिम दर्शन करने उमड़ पड़े. स्वामीजी के पार्थिव शरीर को नये परिधान पहनाये गये. पद्मासन से उनके शरीर को स्थापित किया गया. मैंने देखा कि उनका मृत शरीर भी तप:त्यागमय जीवन के प्रभाव से ऐसा लग रहा था जैसे वे ध्यानम द्रा में ही बैठे हों ! उनके शरीर को रजत शिविका पर विराजित किया गया. सहस्त्रों की संख्या में नर-नारी अपने गुरुवर की शिविका के साथ दुखी व साश्रुनयनों से आगे बढ़ रहे थे. जनसमूह धीरे-धीरे जैनधर्म की जय के नारे लगाता हुआ एक सरोवर के समीप पहुँचा. ज्ञानी जनों की बात को तो ज्ञानी ही जानें, परन्तु मैंने देखा कि उपस्थित जनसमूह साश्रुनयनों से उनके अन्तिम अग्निसंस्कार को देख रहा था. परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते ? यह संसार परिवर्तनशील है, जिसने जन्म लिया है उसकी एक दिन मृत्यु भी अवश्यंभावी है. व्यक्ति आता है और चला जाता है, परन्तु कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो जाने के बाद भी जन-जन के हृदयों पर अपने व्यक्तित्व की ऐसी गहरी छाप छोड़ जाते हैं जिससे वह चिरस्मरणीय बन जाती है. अस्तु शरीर त्याग जाने पर भी वे अमर रहेंगे. स्वामीजी म. की पवित्र आत्मा जहाँ भी हो, मैं अपनी-उस महान् आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. श्रीलालचन्दजी पीतलिया. मेरे मनोदेवता के प्रति कराल काल की करतूतों का अन्त कहाँ ? देखते-देखते वह हमारे श्रद्धास्पद और स्नेहास्पद जनों को उठा ले जाता है. विवश आँखें बरसना शुरु कर देती हैं. बरसती हैं. बरसती रहती हैं. मन का वह श्रद्धाभाजन लौटकर नहीं आता है. Y MOTIONAL MADHAN de SIN GITUD SUV FuraniuTRATHORITTAMATAMITRUTIVATIONhI mtih..." ' RAIL Jain E i nemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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