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________________ विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : ८९ श्रीदेवेन्द्र मुनिजी, शास्त्री, साहित्यरत्न वे एक महापुरुष थे 業職業選戰隊球迷来来来来来来来来靠岸 फ्रांस के विश्व-विख्यात विद्वान् रोम्यां रोलां ने कहा-"महापुरुष ऊँचे शैल-शिखरों के समान होते हैं. हवा उन पर जोरों से प्रहार करती है, मेघ उनको ढंक देता है, परन्तु वहीं हम अधिक खुले तौर से व जोर से साँस ले सकते हैं." वस्तुतः महापुरुष की छत्रछाया में और उनके पावन पादपद्मों में बैठकर जो आनन्दानुभूति होती है वह अनुभवगम्य है. महापुरुष स्वयं कष्ट सहन करते हैं किन्तु आथित व्यक्ति को कभी कष्ट नहीं होने देते. जहाँ वे स्वयं के लिए 'वज्रादपि कठोर' होते हैं वहाँ दूसरों के लिए कुसुमादपि कोमल होते हैं. वे स्वयं विघ्नों और बाधाओं के वात्याचकों से विचलित नहीं होते परन्तु दुखियों के स्वल्प से करुण क्रन्दन से भी कांप जाते हैं. अनेकान्त की भाषा में कहा जाय तो महापुरुष का जीवन विविधताओं का सुन्दर संगम है. उसमें कोमलता है, कठोरता भी, सहिष्णुता भी आवेग भी, निष्ठा भी, तर्क भी, अपेक्षा भी, उपेक्षा भी, राग भी, विराग भी, आचार भी, विचार भी और सरलता भी होती है. यह एक शाश्वत सिद्धांत है कि महापुरुष बनने के लिये जीवन को निखारना और चमकाना होता है. तपे बिना कोई भी व्यक्ति ज्योति नहीं बनता और खपे बिना कोई भी व्यक्ति मोती नहीं बनता. परम-श्रद्धेय श्रीहजारीमलजी महाराज इसी प्रकार के एक विशिष्ट महापुरुष थे. उनका जीवन गंगा की तरह निर्मल था, स्फटिक की तरह स्वच्छ था, संगीत की तरह सुखद था और उषा की तरह मोहक था. सन् १९४२ के मई के द्वितीय सप्ताह में उस महापुरुष के दर्शनों का सौभाग्य सर्वप्रथम ब्यावर में प्राप्त हुआ. गैहुआँ वर्ण, लम्बा कद, एकहरा शरीर, उन्नत ललाट, पैनी नाक, उपनेत्र में से गोल-गोल चमकती हुई आँखें, सजग कर्ण, अधरों पर खेलती स्निग्ध मधुर-मुस्कान, विरलरूप में सुशोभित सिर पर बर्फ-सी धवल केशराशि-यह था उनका बाह्य व्यक्तित्व जिसे मैं अज्ञात प्रेरणावश टकटकी लगाये कुछ क्षणों तक निहारता रहा. मुझे अनुभव हुआ कि उनके प्रशस्त ललाट पर क्रोध और दुश्चिंताओं की लिखावट नहीं है, सीधी और सरल भृकुटियों में असहिष्णुता का कुंचन नहीं है. ऊँची व पैनी नासिका पर दम्भ का उतार-चढ़ाव नहीं है. अधरों पर निष्ठुरता की वक्रता नहीं है और न एवरेस्ट की तरह उनका व्यक्तित्व दुरूह है अपितु सरिता की सरसधारा के समान सहज ग्राह्य है जो अपने शीतल स्वच्छ शिखरों से जन-जन के मन को आह्लादित करता है. कवि की भाषा में जिसके अधरों पर अगर, अमर मधुर मुस्कान, उसके लिये जहान में, सब कुछ है आसान. भारत के अनेक मूर्द्धन्य मनीषी महापुरुषों को अत्यन्त सन्निकट से देखने का इन पंक्तियों के लेखक को अवसर प्राप्त हुआ है. इस आधार पर अधिकार की भाषा में कहा जा सकता है कि श्रीहजारीमलजी महाराज भी एक विशिष्ट महापुरुष थे. कारलाइल ने महापुरुष की परिभाषा करते हुए लिखा है कि-"किसी भी महापुरुष की महानता का पता लगाना है तो यह देखना चाहिये कि वह अपने छोटों के साथ कैसा बर्ताव करता है ?" प्रस्तुत कसौटी पर श्रीहजारीमल जी महाराज पूर्ण खरे उतरते थे. भारत के विचारकों ने मस्तिष्क को महत्त्व नहीं दिया है अपितु यह कहा कि हृदयशून्य विकसित मस्तिष्क-अभिशाप है. श्रीहजारीमल जी महाराज बाल की खाल निकालनेवाले प्रकाण्ड पण्डित नहीं थे और न धुंआधार प्रवक्ता ही, तथापि उनका हृदय इतना विशाल था और मन इतना विराट् था कि आबाल वृद्ध सभी उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे. वे हृदय के राजा थे, मनके सम्राट् थे. उस युग-पुरुष के जीवन में अनेकों गुण थे-सहृदयता, नियमबद्धता, परदुःखकातरता, सरलता सौजन्य-आदि. उनका जगमगाता व्यक्तित्व, वस्तुतः विभिन्न रंगों से रंजित एक कलामय चित्र की तरह रमणीय था. किसी को उच्च स्वर में वार्तालाप करते देखकर उनके रोगटे खड़े हो जाते थे. वे कभी-कभी मधुमक्षिकाओं के दंश सदृश पीड़ा का अनुभव MOR Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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