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________________ विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : ८१ रहते थे. आप ६४ वर्ष तक निरन्तर स्व-पर कल्याण में लीन रहे. ऐसी दिवंगत महान् आत्मा की पवित्र स्मृति किस विचारशील मानव को न आयेगी ? मेरे जीवन में अन्तिम क्षण तक उनकी बालसुलभ सरलता स्मरण रहेगी. ऐसे श्रद्धेय पुरुषों के चरणों में मैं नतमस्तक हूँ. * EXXX प्र० श्रीपुष्करमुनिजी महाराज एक ज्योर्तिमय जीवन बहुत शौक से सुन रहा था जमाना, तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते ! जोधपुर से आए एक सज्जन के मुख से मंत्री हजारीमलजी महाराज के स्वर्गवास की हृदयवेधक सूचना सुनी तो सिर चकरा गया और एक क्षण तक विश्वास ही नहीं हुआ कि क्या यह सत्य है ? मैंने उनसे प्रश्न किया कि क्या कह रहे हैं आप ? उन्होंने स्वामी जी महाराज की रुग्रणता का विस्तृत विवरण सुनाया और साथ ही यह भी बताया कि जोधपुर से अंत्येष्टि-क्रिया में सम्मिलित होने के लिये श्रद्धालु श्रावक बस लेकर पहुंचे हैं. मंत्री मुनिश्री के स्वर्गवास के दुःखद समाचारों ने सहसा चालीस वर्ष पुरानी स्मृतियाँ जाग्रत कर दी. वि० सं० १९८० का वर्षावास श्रद्धेय सद्गुरुवर्य महास्थविर श्रीताराचन्द जी महाराज का पाली में था. मैं भी उस समय गुरुदेवश्री के सान्निध्य में दीक्षा लेने से पूर्व धार्मिक अध्ययन कर रहा था. उस वर्ष पंडित-प्रवर श्री जोरावरमल जी महाराज के साथ आप श्री का चातुर्मास भी वहीं था. गुरुदेव से आप वय एवं दीक्षा आदि में लघु थे. गुरुदेव के प्रति आपकी अपूर्व निष्ठा थी और उनका भी आप पर अपार स्नेह था. आप समय-समय पर उनके पास भी पधारते रहते थे. मुझ पर भी आपश्री की असीम कृपा थी. आपने मुझे उस समय मधुर शिक्षाएँ प्रदान की-वे आज भी मेरे जीवन की अमूल्य थाही हैं. पिछले चालीस वर्षों में बीसों बार स्वामी जी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य सम्प्राप्त हुआ है. जयपुर में संयुक्त वर्षावास करने का अवसर भी मिला है. उनकी नेत्र चिकित्सा के अवसर पर लम्बे समय तक सेवा का अवसर प्राप्त हुआ, आगमिक, सामाजिक, ऐतिहासिक आदि विविध विषयों पर वार्तालाप भी किया है वह अगणित शिष्ट वाग्विनोदआज भी कानों के गहन गह्वरों में प्रतिध्वनित हो रहा है. सन्त की दृष्टि से स्वामी जी म० की गणना प्रथम कोटि में की जायेगी. वे उच्चकोटि के सहृदय सन्त थे. उनका जीवन आचार और विचार का पावन संगम था. आज के युग में प्रतिभा सम्पन्न विद्वानों की कमी नहीं है, यह फसल बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है. विचारकों का बाजार भी बड़ा गर्म है. ग्रन्थकारों का तो कहना ही क्या ! वे भी अल्प-संख्यक नहीं रहे हैं. पर सच्चे सन्त बड़े मॅहगे हो गये हैं. किन्तु स्वामी जी महाराज सच्चे सुसंस्कारी सन्त थे. इसी कारण जनजन के वे हृदय के हार और जन-मन के सम्राट थे. सहृदयता, नियमबद्धता, परिश्रमशीलता, परदुखकातरता इत्यादि जो सद्गुण सन्तजीवन में अपेक्षित हैं, वे सभी स्वामी जी महाराज में अत्यधिक मात्रा में विद्यमान थे. उनका हृदय कुसुम से भी अधिक कोमल और मक्खन से भी अधिक मृदु था. उनकी नवनीत-सी स्निग्ध सहृदयता, विषण्य हृदयों के लिए मरहम का काम देती थी. सुहावनी सुबह से भी ज़ियादा था उनमें आकर्षण. स्वामी जी महाराज का अपना एक केन्द्रीभूत विचार था कि अधिक वार्तालाप से समय और शक्ति का अपव्यय होता है, अत: बहुत ही कम बोलो, और जब बोलो तो मधुर बोलो. मधुर वाणी ही सन्तजीवन की शोभा है. मुख को कवियों indian OOOY R ARVARIAtakar Jain Education International For Private & Personal Use Only orary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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