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________________ लेखफ परिचय : १०३ श्री दरबारीलाल कोठिया-शास्त्राचार्य, न्यायाचार्य, न्यायतीर्थ, सिद्धांतशास्त्री हैं. आप्तपरीक्षा, स्याद्वादसिद्धि, न्यायदीपिका प्रमाणप्रमेयकलिका आदि अनेक जैनदार्शनिक ग्रंथों का सम्पादन तथा अनुवाद किया है. आपकी प्रस्तावनाएँ शोधपूर्ण तथा महत्त्व की हैं. आप समाज के यशस्वी लेखक, सम्पादक, वक्ता और अध्यापक हैं. काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में जैन दर्शन के प्राध्यापक हैं. जैनदर्शन एवं जैनन्याय के इने-गिने विद्वानों में से एक हैं. श्री दलसुख मालवणिया-जन्मस्थान सायला (सौराष्ट्र) मालवणिया जी जैन समाज के चोटी के विद्वानों में प्रमुख हैं। दर्शन, इतिहास आदि विविध विषयों में आपकी अबाध गति है। हिन्दू वि० वि० बनारस में जैनदर्शन के अध्यापक रहे। वर्तमान में लाल भाई दलपत भाई भारतीय संस्कृति विद्या-मंदिर के निदेशक हैं । आपकी साहित्यसाधना से विद्वज्जगत् सुपरिचित है। श्री देवीलाल पालीवाल--जन्मस्थान-कांकरोली (उदयपुर-राजस्थान) एम० ए० (इतिहास) और पी०एच०डी० राजस्थान विश्वविद्यालय से किया. पी०एच०डी० का विषय था "उदयपूर और अंग्रेज-१८५७-१९१६". इस समय टाडकृत राजस्थान का नवीन अनुवाद एवं सम्पादन कार्य कर रहे हैं. प्रथम भाग प्रकाशित हो चुका है. बाल्य-काल से राजनैतिक आन्दोलन में भाग लेना प्रारम्भ किया. १९४६ तक मेवाड़ प्रजामंडल की जनरल कौंसिल के सदस्य रहे, १९५०-५२ तक राजस्थान विद्यार्थी फेडरेशन के और १९४९ से १९५२ तक उदयपुर कम्युनिस्ट पार्टी के मंत्री रहे हैं. डा. देवेन्द्रकुमार जैन-चिरगांव (झांसी) के निवासी हैं. उच्चकोटि के लेखक, सम्पादक, समालोचक और अध्यापक हैं. सरस्वती, नागरी प्र० पत्रिका, सम्मेलनपत्रिका आदि प्रथम श्रेणी की पत्रिकाओं में आपके शोधपूर्ण निबन्ध प्रकाशित होते रहते हैं. विश्वप्रकाश, प्राकृतछन्दकोश, शब्दभेदप्रकाश, भविष्यदत्तकथा, आदि का सम्पादन और राष्ट्रभाषा में अनुवाद कर चुके हैं. संस्कृतसाहित्य संबन्धी बहुसंख्यक उपाधियों से विभूषित सुयोग्य विद्वान् हैं. डा. नरेन्द्रकुमार भानावत-जन्मस्थान-कानौड ( राज०). श्रीभानावत उदीयमान विशिष्ट मेधावी विद्वान् हैं. मेट्रिक से लेकर एम०ए० तक की सभी परीक्षाओं में प्रापने प्रथम श्रेणी प्राप्त की. साहित्यरत्न भी प्रथम श्रेणी में ही हुए. वेलिसाहित्य-राजस्थानी पर पी-एच०डी० की उपाधि ग्रहण की. 'कविता, कहानी, एकांकी, निबन्ध, गद्यकाव्य आदि लिखने में सिद्धहस्त हैं. अनेक अ०, भारतीय निबन्धप्रतियोगिताओं में स्वर्णपदक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं. आपकी अनेक ग्रंथ-रचनाएँ अभी तक अप्रकाशित हैं, यह हिन्दीसाहित्य का दुर्भाग्य ही समझा जा सकता है. वर्तमान में आप राजस्थान वि०वि० में हिन्दी विभाग में अध्यापक पद पर आसीन हैं. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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