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________________ परिषद् के चार उद्देश्य * समाज संगठन : धार्मिक शिक्षा प्रचार - समाज सुधार : आर्थिक विकास चार दिशाओं से उठी आवाज विश्व के कण-कण में व्याप्त हो भूतल को गुंजित कर देती है, चार कोनों से झंकृत स्वर पूरे प्रांगण में संदेश प्रदान करते हैं और चार उद्देश्यों से बनी योजना समाज के भविष्य को यशस्वी बनाती है। श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् के चार उद्देश्य आज समाज की उन्नति और प्रगति के लिए उन हिल्लोर खाती तरंगों और लहरों के समान है जो बंजर भूमि में प्रवाहित होकर जन-जन को शांति और सुख प्रदान करती है। समाज संगठन संगठन युग की मांग है और समय की आवाज विगठित समाज उस रूपमती भिखारिन के समान है जो दर-दर की ठोकरें खा कर विश्व में अपना अस्तित्व समाप्त कर देती है। वह समाज जो प्रेम और सद्भाव के प्रति लगाव न रखती हो, जिसे संगठन में विश्वास न हो वह इस बीसवीं सदी के वातावरण में जीवित रह सके यह बिलकुल असंभव है। निरे स्वप्न के अलावा कुछ नहीं । आज विश्व के अस्तित्व के लिए भी भावनात्मक एक्यता, बन्धुत्व भाव और सहृदयता पर जोर दिया जाने लगा है। आज प्रत्येक राष्ट्र अपने को प्राणवान बनाये रखने के लिए विभिन्न भाषा, धर्म, संस्कृति और सभ्यता के आराधकों के बीच की दिवालें तोड़ कर पास-पास लाने का प्रण प्राण प्रयत्न करने लगा है। वहां एक ही धर्म, एक ही विचार और एक ही आचार के मामने वाले संगठन से दूर और विषमताओं के पास जाते रहें यह एक विडम्बना ही है। युवक समाज की सम्पत्ति है तथा वर्तमान और भविष्य का सुन्दर संचालन ही उसी के हाथों सन्निहित है। युवकों की सुदृढ़ता और निष्ठा ही समाज के भावी भविष्य के लिए अपेक्षित है । जिस समाज के नवयुवक अपने कर्तव्यों को भूल कर भौतिकवादी अन्धकार की गलियों में भटक गये उस समाज की पौ बारह पच्चीस ही समझिए। जिन नवयुवकों ने समाज के बुजुर्गों के आशीर्वाद से समाज संचालन नहीं सीखा उनकी समाज का विकास हो सका हो यह न भूत में सम्भव हुआ न वर्तमान में हो सका न भविष्य में हो सकेगा। इसलिए परिषद् ने समाज के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का जिनमें समाजसेवा और समाजोत्थान के लिए एक लगन थी संगठन किया और समाजोन्नति के लिए उन्हें संदेश दिया परिषद् का प्रथम उद्देश्य 'समाज संगठन' है। इसका तात्पर्य यही है कि समाज की विषमताओं, झगड़े-टन्टों तथा मतभेदों का समापन हो और संगठन की शीतल पावन धारा प्रवाहित हो जिससे समाज का सब मैल धुल जाय और वह उज्ज्वलित रूप में विश्व के सम्मुख प्रस्तुत हो । जब तक संगठन नहीं होगा। समाज के विकास की बात सोचना केवल हवाई किलों के अलावा कुछ नहीं। अतएब परिषद् को सहयोग देकर सबल बनाना समाज के संगठन को ही नहीं अपितु अस्तित्व को भी मजबूत बनाना है। धार्मिक शिक्षा समाज के संगठन के बाद उसके सुसंचालन और उसकी सफलता के लिए यह आवश्यक है कि उसका प्रत्येक बालक, प्रत्येक किशोर और प्रत्येक युवा शिक्षित हो, उसमें धर्म के सिद्धांतों की शिक्षा कूट-कूट कर भरी हो जिससे वह स्वतंत्रतापूर्वक समाज के भविष्य पर सोच सके । इस हेतु ग्राम और नगर-नगर में पाठशालाओं का संचालन अपेक्षित है। धार्मिक शिक्षा प्रसार हेतु पाठशालाओं की स्थापना करना परिषद् का प्रमुख उद्देश्य है तथा इसके द्वारा ही समाज के बालकों में धार्मिक संस्कार पैदा किये जा सकते हैं। पाठशालाओं के साथ-साथ युगकालीन पाठयक्रम भी होना चाहिये। इनके अलावा जैन दर्शन के प्रचार तथा प्रसार के साहित्य प्रकाशन का लक्ष्य हो । इन्हीं समस्त उपलब्धियों की प्राप्ति हेतु परिषद् द्वारा द्वितीय उद्देश्य धार्मिक शिक्षा प्रसार कर रहा जिससे कि समाज की हर प्रकार से प्रगति होती रहे। ___ समाज सुधार अन्ध-विश्वास तथा अन्धानुकरण के वशीभूत हो समाज में चल रही रूढ़ियों तथा रीतियों में जो समाज की नींव को हिला रही है जब तक समूल परिवर्तन नहीं हो जाता आदर्श समाज का स्वप्न भी साकार नहीं हो सकता। समाज के नैतिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए इन कुप्रथाओं के स्थान पर सुप्रथाओं का संचार होना ही चाहिए । समाज में सुरीतियों तथा सुरूढ़ियों के संचार से ही समाज प्रगतिशीलता की सीढ़ियों को पार कर सकता है। इसलिए परिषद् का तृतीय ध्येय समाज सुधार से संबंधित रहा ताकि पुराने अन्य रिवाजों और तरीकों में परिवर्तन किया जा सके। बिना इस क्रांति के समाज आज के प्रगतिशील युग में जीवित नहीं रह सकती यदि उसे शान और आन से जिन्दा रहना है तो अपनी संस्कृति की रक्षा करते हुए समय के साथ चलना पड़ेगा। आर्थिक स्थिति का विकास आज समाज के कई व्यक्ति आर्थिक थपेड़ों की मारों से कराह रहे हैं।। उनकी आर्थिक स्थिति के विकास के लिए योजनाएं बनना ही चाहिए। लघु उद्योग, गृह उद्योग और कुटीर उद्योग के प्रचार से इस गिरी हुई स्थिति को ऊंचा उठाना चाहिये। एक ऐसी आदर्श कमशियल बैंक होना चाहिए जिससे समाज का मध्यमवर्गीय समुदाय लाभान्वित हो सके। इन्हीं सब स्थिति को दृष्टिगत कर और इन्हीं सब योजनाओं को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए परिषद् का चतुर्थ उद्देश्य समाज के मध्यम वर्ग का आर्थिक विकास रहा । समाज में आर्थिक विकास के लिए योजनाएँ प्रारम्भ करना इसका ध्येय रहा। इस चतु:दिव्य उद्देश्यों पर परिषद की स्थापना हई है, वर्तमान में उसका शिशुकाल है तथापि उसके द्वारा इनकी सम्पूर्ति हेतु समुचित प्रयत्न किये गये हैं। इनकी सफलता और सबलता तभी निर्भर है जब कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इसमें योगदान देकर इसकी प्रगति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। राजेन्द्र-ज्योति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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