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________________ जिस अराजकता का जन्म हुआ है, वह हमारी सही जीवन पद्धति के प्रति उदासीनता के कारण है। भारत जैसे आध्यात्मिक देश का व्यक्ति यदि अपने कर्त्तव्यों से भ्रष्ट होता है तो यह हमारे उज्ज्वल भविष्य का परिचायक नहीं है। अनुशासन हमारी जीवन प्रणाली में होना चाहिये । अनुशासनहीनता के कारण हमारे व्यक्तिगत एवं समूहगान जीवन में विकृतियां आ गई हैं। आखिर भारत का आम नागरिक अपने दैनिक जीवन में -संपादकीय से ( अंक सितम्बर १९७०) अनुशासन को छोड़ कर विकास की अपेक्षा कैसे करता है। भारत आज कानून, नियम तथा संविधान के पालन की ओर तभी प्रवृत्ति हो सकता है जबकि यहां का हर व्यक्ति मर्यादा व अनुशासन को माने । - सम्पादकीय से (जून १९७१ अंक) हमारी सामाजिक कुरीतियां हमें खोखला बनाये आ रही हैं। देश में दहेज के विरुद्ध जो चेतना उठी है, युवा शक्ति उसका डर कर विरोध कर रही है एवं सार्वजनिक तौर पर उसके उच्छेदन का संकल्प ले रही है, पर शुभ लक्षण है दहेज के कारण देश का कमजोर वर्ग गिरता जा रहा है। इस गिरावट को रोक कर हम उसे उसके आर्थिक विकास का रास्ता दिखा सकते हैं। -संपादकीय से ( अंक अगस्त, १९७६) शराब बग्दी के रूप में देश को अब पवित्र आचरण की ओर प्रवृत्त होने का एक पवित्र मंत्र मिल गया है। शराब की बढ़ती हुई प्रवृत्ति ही देश को पतन के गर्त में ले जा रही है। शराब बन्दी का मंत्र हम अधिकाधिक व्यापक बनावें और हमारा जीवन पवित्रता की ओर बढ़े, यह आवश्यक है । -सम्पादकीय से ( अंक फरवरी, १९७७ ) -- चीन ने आक्रमण कर भारत के शूर सपूतों को ललकारा है । अहिंसा-संस्कृति में विश्वास करने का तात्पर्य कायरता नहीं है । कर्त्तव्य पथ पर देश तथा संस्कृति की रक्षा के लिए शस्त्र भी उठाये गये हैं । अपनी जन्मभूमि पर हम आततायियों को सहन नहीं कर सकते। राष्ट्र एकजुट हो तथा राष्ट्रीय रक्षा कोष की झोली को लबालब परिपूरित कर दे। - सम्पादकीय से ( नवम्बर, १९६२ के अंक से ) बी. नि. सं. २५०३ सन्तों का यह परम कर्त्तव्य है कि वे श्रावक-समाज को एक सूत्र में बांधे और उन्हें संगठन का महत्व बतलायें। छोटे-छोटे दृष्टांतों द्वारा धर्म के वास्तविक तत्व को उनके दिलों में उतारने का सद्प्रयत्न करें। अपने प्रवचनों में ऐसी कोई बात न आने देनी चाहिये जो साम्प्रदायिकता के विष को फैलावे और जो समाज के लिये अहितकर व अरुचिकर हो । - सम्पादकीय से -सौभाग्यसिंह गोखरू ( अगस्त, १९५९) Jain Education International WIT शाश्वत धर्म विशेषांक विविध रूपों में सावधान ! खबरदार ! जाग उठा है जैन समाज Sum बिहार सरकार ने शिखरजी पर कब्जा किया और जैन समाज ने संघर्ष के लिए कमर कसी। - सम्मेत शिखर रक्षा विशेषांक में शीर्षक ( अंक दिसम्बर, १९६४) परिषद् के पदाधिकारियों ने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त कर परिषदों के निरीक्षणार्थ दौरे प्रारम्भ किये जैन संस्कृति पुन: पल्लवित करने हेतु जगह-जगह पाठशालाएं स्थापित होने लगी- कई स्थानों पर वाचनालय, पुस्तकालय स्थापित हुए। भाषणमालाएं चलीहस्तलिखित पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ और वे समाज के अग्रज, श्रेष्ठिवर्गों द्वारा सम्मानित तथा पुरस्कृत हुई । - सौभाग्यमल सेठिया ( मई-जून, १९६४ ) उपासना के द्वारा उपासक अपने उपास्य की प्राप्ति करता है तथा उपासना के लिए जो साधन है उनमें मूर्तिपूजा सर्वोत्कृष्ट साधन है । जिनालय में जाकर जिस आत्मशांति का अनुभव साधक को होता है, यदि वह शांति उसके जीवन में उतर जाए तो साधना सदैव के लिए सार्थक हो जाती है। जिनेश्वर के गुणगान और उनकी स्तवना के द्वारा 'सिद्धा सिद्धि मम दिसन्तु' की मांग का भावोल्लास ही उसे धर्माराधन की उच्च भूमिका पर ले जाकर स्थापित कर देता है (सदीय से' ) - सुरेन्द्र लोढ़ा ( अंक सितम्बर, १९६५ ) शाश्वत धर्म के विशेषांकों की अपने परम्परा रही है। जाज्वल्यमान श्रृंखला की यह कड़ी किती प्रभावपूर्ण है, इसके सही परीक्षक हमारा विशाल पाठक वर्ग है। हम अपने समस्त प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोगियों के प्रति हार्दिक आभारी हैं। (सम्पादकीय) - २५०० वां निर्वाण वर्ष विशेषांक ( सितम्बर, १९७६ ) For Private & Personal Use Only पाक्षिक 'शाश्वत धर्म' समग्र जैन जन गण के प्रखर प्रवक्ता रूप में निखर कर समाज की धारा को शाश्वत आध्यात्मिक तथा नूतन परिष्कृत मूल्यों के साथ जोड़ना चाहता है। ७१ www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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