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________________ 'शाश्वत धर्म' : पाक्षिक सुरेन्द्र लोढा 'शाश्वत धर्म ने वाङमय और विधा के बन्धनों से दूरियाँ स्थापित कर विभिन्न क्रांतियों के ऊंचे स्तर से टकराने का प्रयास किया । एक चौथाई शताब्दी के समय फासले में शाश्वत धर्म की मूक वाणी विभिन्न विषयों को प्रतिपादित करती रहीं, दर्शन-चिन्तन तथा संस्कृति के लिये सामग्री जुटाती रही, सामाजिक परिवर्तनों की रेखाओं को जागृति से परिपूर्ण बनाती रही एवं जीवन के शाश्वत मल्यों के लिये वैचारिक तरंगों का प्रगहन करती रही। 'शाश्वत धर्म' ने समग्र जैन संस्कृति को परिमाजित करने का उपक्रम एक कर्तव्य की तरह निर्वहित किया। उसका अभिषेक साहित्यवेदी को पवित्र बनाता रहा। विचारोत्तेजित धाराएँ बार-बार जीवन धरातल की सीमाएँ तैयार करती रहीं। ईस्वी सन् उन्नीस सौ बावन में पूज्य गुरुदेव स्वर्गीय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के रूप में 'शाश्वत धर्म' को उदार संस्थापकदेव प्राप्त हुए । स्वर्गीय पूज्य गुरुदेव का साहित्य अनुराग जैन समाज के लिये एक गौरवशाली परिप्राप्ति है। आपके निर्देशन में ही अभिधान राजेन्द्र कोष का मुद्रण कार्य सम्पन्न हुआ और साहित्य पटल पर उसकी दीप्ति स्थिति निर्मित हो पाई। शाश्वत धर्म ने प्रथम अंक से ही सामाजिक चेतना के आन्दोलन का श्रीगणेश किया। यह आन्दोलन अपनी विभिन्न परतों से आयोजित कर अग्रशील होता गया। _ 'शाश्वत धर्म 'के पृष्ठों में किस विषय ने महत्व प्राप्त नहीं किया? राष्ट्रीय चेतना, समाज सुधार, संस्कृति-उत्थान एवं संगठनात्मकअभ्युदय का प्रत्येक स्वर वर्णमाला के अक्षरों के माध्यम से उतरकर साकार हुआ। प्रारंभ से ही तूफानों ने इसे डगमगाने की कोशिश की, आँधियाँ इसे इसके मार्ग से विचलित करने के लिये बढ़ीं, किंतु गुरुदेव श्री की कृपा ने पूर्व में और पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर' के स्नेहसिक्त अनुग्रह ने इसे जीवन्त बनाये रखा। श्री सूरजचंदजी डांगी 'सत्यप्रेमी' का इसके प्रथम सम्पादक के रूप में उल्लेख किया जाना प्रासंगिक है। निम्बाहेड़ा (जिला चित्तौड़गढ़, राजस्थान) से इसका प्रकाशन हुआ। सामाजिक पत्र होने के कारण सम्पादक मण्डल में क्रमगत परिवर्तन आया। श्री दौलतसिंहजी लोढा, श्री सौभाग्यसिंहजी गोखरू, श्री परदेशीजी, श्री शिवनारायणजी गौड़, श्री लक्ष्मी चंद्रजी जैन तथा पं. श्री मदनलालजी जोशी इसके सम्पादक मण्डल में रहे । श्री कुन्दनलालजी डांगी ने प्रबंध सम्पादक का कार्यभार निर्वहित किया। उनकी कर्मठता के कारण शाश्वत धर्म की परम्परा शृंखलावत होती गई। हर अंक ने एक कड़ी के रूप में जुड़ना प्रारंभ कर दिया। १९६१ में अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् ने पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर' की प्रेरणा से 'शाश्वत धर्म' को मखपत्र के रूप में स्वीकृत किया। श्री सौभाग्यमलजी सेठिया को सम्पादक पद का दायित्व सौंपा गया एवं प्रकाशन कार्यालय का स्थानान्तर मंदसौर (म. प्र.) पर हो गया। श्री राजमलजी लोढा को प्रकाशक के रूप में मनोनीत किया गया । उपरांत श्री सुरेन्द्र लोढा भी सम्पादन कार्य में सम्मिलित किये गये। जो वर्तमान में इस उत्तरदायित्व को पूर्ण कर रहे हैं। वर्तमान में श्री सौभयग्यमलजी सेठिया एवं श्री सुरेन्द्रजी लोढा 'शाश्वत धर्म' के सम्पादक हैं। सम्पादक मण्डल में कलम के कुशल लेखकों के हस्ताक्षर प्राप्त कर शाश्वत धर्म समाज का सद्भावपात्र बन गया। ___शाश्वत धर्म के विशेषांकों की अनूठी परम्परा रही है । इस पत्र ने कई विशेषांक प्रकाशित किये, जिन्हें काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई। परिषद् के अधिवेशनों के अवसर पर जो विशेषांक प्रकाशित हुए उनमें खाचरौद, श्री मोहनखेड़ा तीर्थ, जावरा, श्री लक्ष्मणी तीर्थ तथा निम्बाहेड़ा में सम्पन्न परिषद् अधिवेशनों की गणना की जा सकती है । स्वर्गीय गुरुदेव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में समाधि मंदिर की प्रतिष्ठा तथा वर्तमानाचार्यदेव श्रीमद् विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के आचार्य पाटोत्सव की स्मति में शाश्वत धर्म का १६० पृष्ठों का विशेषांक प्रकाशित हआ। आकोली (जिला जालोर),राजस्थान में आयोजित श्री आदीश्वर जिनेन्द्र प्रतिष्ठोत्सव की सम्पूर्ण कार्यवाही को चित्रित करते हुए 'शाश्वत धर्म' का जो विशेषांक प्रकाशित हुआ उसकी पृष्ठ संख्या १६४ है। कामठी (महाराष्ट्र) में श्री आदीश्वर जिनेन्द्र प्रतिष्ठोत्सव के महत्वपूर्ण महोत्सव के कार्यक्रमों को समाज तक पहुँचाने के लिये शाश्वत धर्म ने १०२ पृष्ठों का विशेषांक समाज को अर्पित किया। सूरा (जि. जालोर) के प्रांगण में श्री पाच जिनेन्द्र प्रतिष्ठोत्सव की जानकरियाँ लेकर ८६ पृष्ठों का विशेषांक 'शाश्वतधर्म' ने पाठकों तक पहुँचाया। श्रीमद् राजेन्द्रसूरि अर्द्ध शताब्दि समारोह के अवसर पर भी डेढ़ सौ पुष्ठों का विशेषांक प्रकाशित हुआ। 'शाश्वत धर्म' के विशेषांक उत्सवों तथा आयोजनों तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि श्री सम्मेत शिखर तीर्थ को अधिगृहीत करने का आपत्तिजनक कदम जब बिहार, राज्य सरकार ने उठाया तब शाश्वतधर्म' का 'श्री सम्मेदशिखर सुरक्षा विशेषांक' क्रांति-वाणी लेकर सामने आया। इस विशेषांक में १०४ पृष्ठ हैं । 'गाश्वत धर्म' का वृहद् विशेषांक तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी की स्मृति में उनके २५०० वें निर्वाण वर्ष के उपलक्ष में प्रकाशित हुआ। इसमें पांच सौ पृष्ठ हैं तथा जैन पत्र-पत्रिकाओं द्वारा इस स्मृति में प्रकाशित समस्त विशेषांकों में यह विशालता की दृष्टि से सर्वोच्चता का दावा कर सकता है। वर्तमान में शाश्वत धर्म पाक्षिक रूप में प्रकाशित हो रहा है। इसके पच्चीस वर्षीय अंकों में जो विभिन्न विषयों पर सामग्री प्रकाशित बी.नि.सं. २५०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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