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________________ मनन भी किया। उन्होंने सदैव इसका एक सहज साधन के रूप में उपयोग किया। विक्रम संवत् १९४५ में श्रीमद् राजनगर-अहमदाबाद में थे। वहाँ वाघणपोलस्थित श्री महावीर जिनालय की प्रतिष्ठा के मुहूर्त को सदोष बताते हुए कहा : “इस प्रतिष्ठा-मुहूर्त से प्रतिकूल स्थिति बनेगी। अग्नि-प्रकोप का योग प्रतीत होता है। इसे बदलकर कोई और कर लीजिए।" आग्रही व्यक्तियों ने श्रीमद् की सलाह मानने से इन्कार कर दिया । अन्तत: भयंकर अग्निकाण्ड हुआ । इस तथ्य से राजेन्द्रसूरिजी के ज्योतिष-संबंधी ज्ञान की पुष्टि होती है। __ श्रीमद् का ज्योतिष के दोनों पक्षों पर अधिकार था। विक्रम संवत् १९५५ में जब आप प्रतिष्ठांजनशलाका सम्पन्न करवा रहे थे तब प्रतिपक्षी वर्ग भी अपने यहाँ उत्सव आयोजित करने के लिए तत्पर हुए । श्रीमद् ने सम्पूर्ण सद्भाव से उन्हें तथा प्रतिष्ठाकारक को समझाया कि "यह मुहुर्त उनके अनुकूल नहीं है । इसमें ग्रहगति और संगति विपरीत बैठती है ।" किन्तु किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया और अपनी जिद पर अडिग रहे । अन्तत : जो दुष्परिणाम हुआ, वह सर्वविदित है। इस तरह श्रीमद् परामर्श देते थे, किसी को उसे मानने पर विवश नहीं करते थे। श्रीमद् राजेन्द्रसरि के संबंध में अभी पूरी तरह अनुसंधान नहीं हुआ है, किन्तु वे महासमुद्र थे; उन्होंने कहाँ, कितना और किन-किन विषयों पर लिखा है इसकी प्रामाणिक जानकारी अभी अनुपलब्ध है । ज्यों-ज्यों उनकी रचनाएँ मिलती जाती हैं, कई तथ्य प्रकट होते जाते हैं । उनकी कई स्फुट रचनाएँ यत्र-तत्र ग्रंथागारों में अरक्षित और अप्रकाशित पड़ी हैं । इनका व्यापक सर्वेक्षण और अध्ययन-विश्लेषण होना चाहिए । महर्त-प्रकरण और फलादेश पर श्रीमद् की जो प्रभावक पकड़ थी, वह अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने सैकड़ों प्राण-प्रतिष्ठाएँ करवायीं किन्तु कहीं कोई विघ्न उपस्थित नहीं हुआ। वे 'ठीक समय पर ठीक काम करना पसन्द करते थे और इस दृष्टि से उन सारे भारतीय विज्ञानों का उपयोग करना चाहते थे जो अन्धविश्वास नहीं तर्क और गणित की धरती पर विकसित हुए थे। उनका स्पष्ट लक्ष्य था कि ज्ञान को जनता-जनार्दन तक उसी की भाषा और उसी के सहज माध्यमों द्वारा पहुँचाया जाए। इस दृष्टि से उन्होंने कई स्तोत्र, कई वन्दनाएँ और कई ज्योतिष संबंधी दोहे लिखे हैं । मुहुर्त-प्रकरण से संबंधित कुछ दोहे इस प्रकार पुनर्वसु मघा तथा, हस्तविशाखा सार। मूल श्रवण पू.-भाद्र में, कुमार योग विचार ॥ दूज तीज सप्तमी तथा, द्वादशी पूर्णिम जान । रवि मंगल बुध शुक्र में, भरणी मृगशिर मान ॥ पुष्य पु. फा. चित्रा उ.षा. ङ भा. अनुराधा देख । धनिष्ठादि नक्षत्र में, राजयोग का लेख ॥ चौथ आठम चतुर्दशी, नौमि तेरस शनिवार । गुरु कृतिका आर्द्रा उ. फा. अश्लेषा सुविचार ॥ स्वाति उ.षा. ज्येष्ठा तथा शतभिषा संयोग । रेवती नक्षत्रादि में, कहते हैं स्थिर योग ॥" योग की स्थिति को मात्र सात दोहों में वर्णित करना एक कठिन काम है, किन्तु ज्ञानवर्द्धन की दृष्टि से इसे आम आदमी के लिए सुलभ किया है। जन्म-पत्रिका में जो कुण्डली बनायी जाती है, उसमें १२ स्थानों पर नियमानुसार राशि-अंकों को स्थापित किया जाता है, ताकि तत्कालीन प्रवर्तमान ग्रहों को बिठाकर उनके फलादेश जाने जा सके । व्यक्ति के जीवन में ये फलादेश मार्गदर्शक सिद्ध हो सकते हैं । श्रीमद् ने इस सन्दर्भ में कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं, जो इस प्रकार हैं-- "सातमा भवन तणो धणी, धन भवने पड्यो होय । परण्या पूंठे धन मिले, इम कहे पण्डित लोय ॥ पंचमेश धन भवन में, सुत पूंठे धनवन्त । धन तन स्वामी एक हो, तो स्वधन भोगन्त ॥ लग्न धनेश चौथे पड्या, कहे मातानी लच्छ । क्रूर ग्रह लग्ने पड्यो, प्रथम कन्या दो बच्छ । भोम त्रिकोणे जो हए, तो लहे पुत्रज एक । मंगल पूजा दृष्टि सुं, होवे पुत्र अनेक ॥ भोम फर्क क्रूर सातमे, पड़े मँडी स्त्री हाथ । भोम अग्यारमे जो पड़े, परणे नहीं धन नाथ ॥ शनि चन्द्र अग्यारमे, पडे स्त्री परणे दोय । चन्द्र भोम छठे पडे, षट् कन्या तस जोय ॥ अग्यारमे क्रूर ग्रह तथा, पंचम शुक्र जो थाय। पेली पुत्री सुत पछे, माता कष्ट सुणाय ।। क्रूर ग्रह हुए सातमे, कर्कसा पाये नार । बुध एकलो पाँचमें, तो जोगी सिरदार ।। शनिसर दशमे पडे, वाघ चित्ताथी तेह । मरे दशमे वली शुक्र जो, अहि डसवा थी तेह ॥ राहु दसमे जो हुए, मरे अग्नि में जाण । राजेन्द्र सूरि इम भणे, जोतक ने अहिनाण ॥" "सूर्य नक्षत्र से गिनो, चउ छ नव दस आय । तेरा बीस नक्षत्र में, रवियोग समझाय ॥ प्रतिपद छठ पंचमी दसम, एकादसी तिथि होय । बुध मंगल शशि शुक्र दिन, अश्विनी रोहिणी जोय ॥ १४ राजेन्द्र-ज्योति Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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