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________________ परिषद् की चौखट से सुरेन्द्र लोढ़ा अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद के रूप में सामाजिक क्षेत्र को एक सकार कदम प्राप्त हुआ है। परिषद ने युवकों की ऊर्जा को निर्माण की दिशा में केन्द्रित किया है। इसके माध्यम से समाज की तस्वीर नये रंगों से रंजित हो रही है। समाज के कायाकल्प का स्वप्न साकार बनता जा रहा है। यह तस्वीर तरक्की और एकता की है एवं स्वप्न आदर्श समाज की रचना का है। ऐसा समाज जो भगवान महावीर के अमर मार्गदर्शन की ज्योति हस्तगत कर उसके आलोक से अशिक्षा, अन्धविश्वास एवं अभावग्रस्तता के अंधेरे को मिटाने हेतु प्रयत्नशील हो। ऐसी तस्वीर जिसमें समाज की आशाओं तथा आकांक्षाओं की सही छाया झांकती हुई दिखाई दे। समाज के बहुमुखी विकास का दौर परिषद के माध्यम से उठाव ग्रहण कर रहा है, अन्ततः हमें तय करना है कि हमारी समाज का भविष्य किन रेखाओं से मण्डित होगा। ये रेखाएं परिषद को अपने परिश्रम, प्रवास तथा पुरुषार्थ से स्वयं निर्मित करना है। इन्हें आयाम देने का कार्य भी उसे ही करना है। इन्हीं रेखाओं के आधार पर समाज के शुभ तथा कल्याण की रचना होगी। अभी इन रेखाओं का सामाजिक धरातल प्राप्त • किये जाने का प्रयत्न निरन्तर है। परमपूज्य गुरुदेव जैनाचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की वैचारिक शृंखलाओं ने इन्हीं रेखाओं को खिचाव किया था वे चाहते थे कि समाज की ऐसी अनुशासित संगठित तथा जीवनमानी प्रतिनिधि संस्था की स्थापना हो जो आगे बढ़कर समाजोत्थान की चुनौती को स्वीकार कर ले। अखिल भारतीय श्री यतीन्द्र जैन नवयुवक परिषद नाम में उन्हें वैसी विद्युत धारा प्रवाहित होती हुई अनुभूति हुई। उनने स्पष्ट शब्दों में उद्घोषित कर दिया कि “परिषद की प्रगति ही समाज की प्रगति है।" पूज्य गुरुदेव श्री ने परिषद स्थापना के साथ ही समाज में निर्देश स्थापित किया कि समाज व परिषद भिन्नभिन्न नहीं है। परिषद सामाजिक शक्तियों तथा साधनों का दोहन करेगी एवं समाज में उससे चेतना तथा समृद्धि का विस्तार होगा। पूज्य गुरुदेव श्री ने परिषद को किसी पृथक् संगठन की स्थिति से नकार दिया एवं अपने संदेश में फरमाया "परिषद समाज का अंग है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति की यह अपनी संस्था है।" पूज्य गुरुदेव श्री समाज के मंच में उभरने वाली युवाशक्ति के महत्व को उचित रूप से दर्शित कर चुके थे अतएव उनने समाजोन्नति के महामंत्र को सफल बनाने हेतु युवकों को आव्हान किया तथा अपने निर्देशन में ही युवकों का पहला सम्मेलन श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर आयोजित कर उन्हें उनकी चुनौती स्वीकार करने की प्रेरणा दी। पूज्य गुरुदेव श्री की दूरदृष्टि व संगठन क्षमता ने एक स्वप्न को कल्पना लोक से वास्तविक धरातल पर ला उतारा। हजारों युवक एक ही स्वर की प्रतिध्वनि से लहर की भांति उठ खड़े हो गये। युवाशक्ति समाज की रीढ़ है। युवाशक्ति के उदासीन होने पर कोई समाज अपने पतन को रोकने में समर्थ नहीं हो पाया । युवकों की सामाजिक कार्यों में भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है, उनने समाज की जन्म-कुण्डलियों का निर्माण किया है एवं उसके फलितार्थों पर अपना बलपूर्ण प्रभाव प्रभावित किया है। युवकों के इस महत्वपूर्ण स्थान को निरस्त करना ऐतिहासिक भूल है, समाज का अक्षम्य अपराध है। युवक, सामाजिक धमनियों को नवरक्त संचारित करने एवं नये जीवन की ललाई भरने पूरने वाली शक्ति है। वह न तो आयु मर्यादा से जुड़ी हुई है और न ही शारीरिक स्थितियों से संदर्भित है। अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद की अपने विधानानुसार यह मान्यता है कि जिसमें कार्य करने की इच्छा शक्ति हिल्लोर ले रही है, वह युवक है। युवा पीढ़ी से संबंधित वी.नि.सं.२५०३ Jain Education Intermational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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