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________________ विकास के चौखटे में परिषद् की तस्वीर केन्द्रीय कार्यालय द्वारा "समाज का विकास समाज के प्रत्येक अंग की समुन्नति पर निर्भर है और उसके अभ्युदय का आधार प्रत्येक व्यक्ति की सक्रियता है।" इसी उक्ति की पृष्ठभूमि से समाज की प्रगति तथा विकास की योजना का आविर्भाव हुआ । अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद के रूप में उस योजना ने आकार गृहण कर किया । ___ संवत् २०१६ का चतुर्मास, परमपूज्य स्व. गुरुदेव श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की जावरा में स्थिरता हुई। पूज्य गुरुदेव को समाज की चारों दिशाओं में तिमिर की परतें दिखाई दे रहीं थीं। उनने पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर' को निर्देश दिया कि समाज को संगठन के आलोक से भरने के लिये वे परिषद का ज्योति पुँज अपने हाथों में थामें । पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी ने गुरु की भावना को तत्काल शिरोधार्य किया और युवकों में शक्ति तराशना प्रारम्भ की। पूज्य गुरुदेवश्री ने पूज्य मुनिराजश्री में न केवल ज्ञान व आचार के अपितु समाज संगठन के शिल्पीकार की उठाव खाती योग्यता का आभास भी कर लिया, पूज्य गुरुदेवश्री का आगमन रतलाम हुआ। वे वहाँ से जावरा पधारे । पुनः रतलाम आने के उपरांत पूज्य गुरुदेवश्री ने राजगढ़ विहार किया । पूज्य मुनिराज श्री रतलाम ही रहे । पूज्य मुनिराजश्री में ज्योतिपुंज को प्रज्ज्वलित करने की इच्छाशक्ति गतिशील होने लगी। रतलाम के युवकों के सम्मुख उनने भावना प्रकट की और ज्योतिपुंज को समाज-शिखर तक आरोहित करने की चुनौती दी । रतलाम में कर्मठ युवक अगली पंक्ति पर आये । एक संकल्प का उद्घोष करने के लिये वे 'करमदी, की ओर बढ़ गये। रात्रि का नीरव शान्त वातावरण । चारों ओर कालिमा का विस्तार । दिखावे व प्रदर्शन से कोसों दूर शान्त-गंभीर वातावरण । मन्द-मन्द बयार बहने लगी । युवक अपने उद्देश्यों के निर्णायक बिन्दु पर पहुँचे । घनघोर अन्धेरे को चीर कर ज्योतिपुञ्ज सार्थक संगठन के रूप में स्थापित हो गया । युवकों ने प्रतीज्ञा कर ली कि इस समाज चेतना की मशाल का उद्योत वे समाज के घर-घर तक पहुँचावेंगे। पूज्य गुरुदेवश्री के साथ पूज्य मुनिराज श्री मधुकरजी का पदसंचलन राजगढ़ की ओर हुआ। संवत् २०१७ की कार्तिकपूर्णिमा को श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद का प्रथम अधिवेशन श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में आमंत्रित कर लिया गया। युवकों में जागृति की लहर बल खाने लगी । मालव, निमाड़ के कोने-कोने से प्रतिनिधियों में भाग लेने की होड़ लगी। पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के सान्निध्य में परिषद् ने विधिवत् स्वरूप प्राप्त कर लिया । अधिवेशन की अध्यक्षता श्री सौभाग्यमलजी सेठिया (निम्बाहेड़ा) ने की। प्रथम कदम के रूप में परिषद का कार्यक्षेत्र मालव-मेवाड़ प्रान्तीय निर्धारित किया गया। लक्ष्य यह निश्चय हुआ कि कदम बढ़ते रहेंगे। और विकास का विस्तार अखिल भारतीय स्तर तक हो जावेगा। परिषद् ने अपनी स्थापना के साथ ही चार उद्देश्यों-समाज संगठन, धार्मिक शिक्षा, प्रसार, समाज सुधार तथा आर्थिक विकास का घोष किया। साथ ही मार्गदर्शिकाएँ भी निश्चित की, जिसके अनुसार सामाजिक क्रान्ति को जन्म, समानता व सद्भाव का विकास, संगठन की वाणी का अनुनाद, प्राचीन साहित्य का प्रकाशन, जैन संस्कृति की अद्वितीय विधाओं का अनुसन्धान, धार्मिक शिक्षा के साधनों का योग, समाज संहारी कुरीतियों का विसर्जन, स्वस्थ व सुदृढ़ समाज की संरचना, आर्थिक योजना का क्रियान्वयन, एक आदर्श समाज के संजीवन की स्वीकारोक्ति की गई। युवा शक्ति से समाज आन्दोलन की तरंगें टकराने लगीं। स्वयंयुवक जुड़ने लगे, अपनी समाज से, अपनी संस्था से । जिन वी.नि.सं. २५०३ २१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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