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________________ भूरचंद जैन रेगिस्तान का प्राचीन तीर्थ श्री भांडवाजी राजस्थान प्रदेश के जालोर जिले का प्राचीन ऐतिहासिक गति विधियों के साथ साथ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान रहा है । जालोर का स्वर्णगिरि दुर्न धार्मिक सहिष्णुता का अनोखा स्थल बना हुआ है। जिसकी गोद में हिन्दुओं के पवित्र मंदिर, मुसलमानों की मस्जिदों एवं जैन धर्मावलंबियों के श्रद्धास्थल, जैन मंदिरों की भरमार है । इस जिले के अन्दर जैन धर्मावलम्बियों के अनेकों ख्यातिप्राप्त मंदिरों के ऊंचे-ऊंचे शिखर दृष्टिदोर होते हैं। इन मंदिरों के अतिरिक्त जिले के सांचोर भीनमाल जैसे स्थानों पर प्राचीन जैन मंदिर विद्यमान हैं जो तीर्थस्थानों के लिए लोकप्रिय बने हुए हैं। जिनकी शिल्पकला, वास्तुकला, प्राचीनता देखने योग्य है । इसी तरह जिले का चरली तीर्थ प्राचीनता के लिए इतना ही विख्यात है जितना आधुनिक शिल्पकला एवं बनावट के लिए मांडोली नगर में नवनिर्मित भी शांतिसूरीश्वरजी महाराज साहब का स्मृति गुरु मंदिर । इस जिले के तीर्थों की कड़ी को जोड़ने में भांडवा तीर्थं आज अधिकाधिक लोकप्रिय बनने के साथ साथ श्रद्धा एवं भक्ति का प्रमुख केन्द्र बना हुआ है जो जिले के रेगिस्तानी क्षेत्र में आया हुआ है। इसकी प्राचीनता, मूर्ति का चमत्कार, मंदिर की बनावट, मेले की व्यवस्था के कारण यहां यात्रियों का निरन्तर तांता लगा रहता है। भांडवा इस समय एक छोटा सा गांव है जो जालोर जिले के सायला पंचायत समिति का अंग है। यहां आने के लिए जोधपुर से रानीवाडा रेल्वे लाईन पर स्थित गोदरा स्टेशन पर उतरना पड़ता है यहां से यह स्थल २२ मील दूर उत्तर-पश्चिम में सड़क यातायात से जुड़ा हुआ है। जोधपुर-बाडमेर सड़क मार्ग पर स्थित आलोतरा से ३५ मील दूर पारलू बीवाणा होते हुए भांवडा कच्चा सड़क मार्ग बना हुआ है। इसी प्रकार जोधपुर वाडमेर सड़क मार्ग पर सिणधरी से २६ मील दूर भांडवा जाने के लिए कच्चा सड़क मार्ग बना हुआ है । जालोर से यह स्थल पक्के सड़क मार्ग से ३६ मील दूर है । वी. नि. सं. २५०३ Jain Education International इन सभी स्थलों से नियमित बसों का आवागमन होता है। मेले के दिनों में जालोर - सायला आदि स्थलों से भांडवा पहुंचने हेतु विशेष बसों की समुचित व्यवस्था की जाती है। रेगिस्तानी क्षेत्र होने के कारण यहां के आसपास के दियापटी के लोग ऊंटों, बैलगाड़ियों आदि पर चढ़कर इस भारत विख्यात जैन तीर्थ की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं । 1 भांडवा गांव के एक किनारे पर विशाल पक्की चार दीवारी के अन्दर १० वीं शताब्दी में निर्मित श्री महावीर स्वामी का भव्य मंदिर, अनेकों धर्मशालाओं सहित विद्यमान है। इस मंदिर के एक स्तम्भ पर वि. सं. ८१३ श्री महावीर स्वामी लिखा हुआ विद्यमान है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान महावीर स्वामी के इस मंदिर में प्रतिष्ठित प्रतिमा का संबंध इस संयत से है क्योंकि यह प्रतिमा जालोर क्षेत्र में वेसाला गांव से यहां आई बताई जाती है । वेसाला पर मेमन धाड़ेतियों ने आक्रमण कर गांव को लूटा और वहां बने प्राचीन महावीर मंदिर को नष्ट किया। लेकिन संयोगवश मूल महावीर स्वामी की प्रतिमा खंडित होने से बच गई। जिसे कोमला गांव के जैन संघ मुखिया पालाजी संघवी लेकर यहां आए। इन्हें देवी चमत्कार से यहां मंदिर बनाने और महावीर स्वामी की प्रतिमा की मूल रूप से प्रतिष्ठित करने का संकेत मिला। संघवी पालवी ने समस्त जैन श्री संघ के सहयोग से यहाँ वि. सं. १०१५ में मंदिर का निर्माण करना आरंभ किया। जिसकी प्रतिष्ठा वि. सं. १२३३ माघ सुदी ५ को गुरुवार को भव्य समारोह के बीच संपन्न हुई । वर्तमान में यह मंदिर पूर्वाभिमुख है। जिसके प्रवेश द्वार पर विशाल हाथियों के अतिरिक्त दोनों ओर शेर की प्रतिमाएं विराजमान हैं । द्वार पर नगारे बजाने हेतु सुन्दर झरोखा बना हुआ है मंदिर के मूल गम्मारे में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी की मूल प्रतिमा विराजमान है। जिसके आज For Private & Personal Use Only ३ www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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