SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सका। देवगिरी के किले में अनाज के बदले नमक के बोरे रखे गये, जिससे अल्लाउद्दीन से लड़ते समय उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ा। रामदेव का पुत्र शंकरदेव होयसलों के साथ युद्ध पूरा कर वापस लौटा तो उसने अल्लाउद्दीन की सेना पर आक्रमण किया, पर उसमें उसकी हार हो गई। अन्त में रामदेव को अल्लाउद्दीन के साथ सुलह करनी पड़ी। अल्लाउद्दीन बहुत बड़ी संपत्ति लेकर लौटा । रामदेवराव को अल्लाउद्दीन ने १३०७ में मलिक काफूर को भेजकर कैद करवाकर लाया और छह महीने बाद उसे मुक्त किया। मलिक काफूर ने वरंगल पर आक्रमण किया तब होयसाल की राजधानी का रास्ता बताने में रामदेवराव ने सहायता की थी। रामदेवराव के बाद उसका पुत्र शंकरराव राज्य गद्दी पर १३०९ में बैठा। उसने दिल्ली दरबार को निश्चित कर न भेजने से वसूली के लिए मलिकवर को भेजा। उसने १३१२ में शंकरदेव को मार डाला। शंकर के पश्चात् १३१२ में हरपालदेव देवगिरी का राजा हुआ। उसने मुस्लिमों को अपने राज्य से निकाल कर बाहर किया। इस पर मुबारक शाह खिलजी ने देवगिरी पर भयानक आक्रमण कर हरपाल देव को कैद कर उसकी खाल खिचवा ली। इस प्रकार देवगिरी के यादवों के राज्य का अंत हुआ। यादव हिन्दू धर्म के अनुयायी थे किन्तु जैन धर्म के प्रति भी सहिष्णु थे। सासित्य और कला के भी रसिक थे। मराठी भाषा और साहित्य पर जैनियों का प्रभाव महाराष्ट्र के संतों एवं उनके कार्यों के विषय में जानने के पूर्व ऐतिहासिक काल की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति जानने की तरह यह देखना भी उपयुक्त होगा कि महाराष्ट्री, प्राकृत, महाराष्ट्री अपभ्रंश भाषा के साहित्य का जो सर्जन हआ उसे प्रथम समझने का प्रयत्न करें क्योंकि इसके बिना महाराष्ट्र के संतों के कार्य और विचारों की पार्श्वभूमि का ज्ञान नहीं हो सकता। ___भाषा और साहित्य के मूल प्रवाह के आधार पर ही विभिन्न क्षेत्रीय अथवा वैचारिक संस्कृतियों की धारा प्रवाहमान होती है। प्रायः सभी संस्कृतियों के मूल बीज, प्राचीन जनपद बोलियों तथा संतों की वाणी में सुरक्षित रहता है। महाराष्ट्र में जैन धर्म तथा संस्कृति का विपुल योगदान रहा है। जैनागम की प्राकृत भाषा की महाराष्ट्री प्राकृत कहलाती है। और आज भी मराठी भाषा के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों में सहस्राब्दियों से पूर्व के शब्द तत्सम एवं तद्भव रूप में उपलब्ध होते हैं। जैन धर्म एवं संस्कृति के योगदान का सही आकलन तभी संभव है, जब हम जैन आगमों में प्रयुक्त प्राकृत अपभ्रंश आदि भाषा एवं उसके प्रवाह के उद्गम की गवेषणा कर लें। इस दृष्टि से मराठी भाषा के उद्गम और विकास के लेखक कृष्णाजी पांडुरंग कुलकर्णी ने भाषायी विकास का जो बंश वृक्ष दिया है, वह मराठी भाषा के उद्गम समझने में बड़ा उपयोगी है। आर्य भाषा ईसा पूर्व ५००० वर्ष प्राकृत बोली वैदिक ईसा पूर्व ६००० से ३० वैदिक ईसा पूर्व ५००० से ३००० वर्ष पूर्व उदीच्य प्रतीच्या मध्यदेशीय प्राच्य खेतान पैशाची अपभ्रंश | ਐ ਕਰਿ ਨ ਆਇਲੀ ਆਵਾਸ ਚ दक्षिणात्य ग्रांथिक ब्राह्मण, सौत्र ईसा पूर्व ३००० वर्ष महाराष्ट्री अपभ्रंश पाणिनीय संस्कृत अपभ्रंश अशोक शिलालेखी सौरसेनी अर्धमागधी मागधी कैकय टक्क नागर अवहट्ट प्राचड उपनागर लाटी, सौराष्ट्री ल्हाडी सिंधी नागर अपभ्रंश पश्चिम हिंदी जैन अर्धमा. बंगाली, बिहारी मिश्र प्राकृत राजस्थानी गुजराती पूर्व आसामी पूर्व आसामी मराठी मराठी महाराष्ट्र की भूमि को अनेक जैनाचार्यों ने अपने बिहार से लाभान्वित किया है। प्रात के प्रसिद्ध कथाकार पादलिप्तसूरि महाराष्ट्र में ही राजा सातवाहन के दरबार में थे। पाललिप्त । ने तरंगवती नामक कथा महाराष्ट्रीय प्रा 'त-महाराष्ट्र की जनभाषा में लिखी है। यह ग्रंथ लोक जीवन के वर्णनों से ओतप्रोत है। महाराष्ट्री प्राकृत का दूसरा महत्वपूर्ण ग्रंथ सेतुबंध है। इसके रचयिता प्रवरसेन महाराष्ट्र के राजा और कवि थे। उन्होंने सेतुबंध में राम कथा के प्रसंग को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है। इसी तरह आगे चलकर गड्डवहो, लीलावओकहा आदि अनेक ग्रंथ. भी महाराष्ट्री प्रात में लिखे गये हैं। इस प्राकृत साहित्य ने महाराष्ट्र के लोक साहित्य को बहुत प्रभावित किया है। महाराष्ट्र की भूमि को पवित्र करने वाले वी. नि. सं. २५०३ ..१७१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy