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________________ भारतीय कला में पुराण-कथाएं प्रो. कृष्णवत्त वाजपेयी पुराण कथाओं (मिथको) की परंपरा बहुत पुरानी है। भारत तथा अन्य प्राचीन देशों के साहित्य तथा पुरातत्वीय अबशेषों में इस परंपरा को देखा जा सकता है। सभ्यता की आदिम अवस्था में भौगोलिक स्थिति तथा रहन-सहन की प्रणाली ने अनेक भावनाओं का सृजन किया । ये भावनाएं धीरे-धीरे मान्यताओं या आस्थाओं के रूप में परिणित हई और वे लोगों के जीवन को प्रभावित करने लगीं । कतिपय धार्मिक विश्वासों ने कालांतर में दृढ़ता प्राप्त की और उनके आधार पर देव या पुराण कथाओं का सृजन हुआ। इन मिथकों में प्रत्यक्ष से कहीं अधिक कल्पना मुखरित हुई उसमें ऐहिक तथा पारलौकिक जीवन के प्रति लोगों की विचारधारा को प्रभावित किया । भारतीय वैदिक एवं अवैदिक साहित्य में अनेक मिथकों की चर्चा मिलती है। उन्हें पुराणों में अधिक व्यापकता दी गई और अनेक रूपों में उनकी व्याख्या की गयी। पौराणिक साहित्य को पढ़ने से पता चलता है कि लोगों की दैनिक चर्या और विचारधारा में पुराण कथाओं ने प्रभावशाली स्थान बना लिया। भारतीय समाज के विकास के साथ ये मिथक भी पृष्ट होते गए । वैदिक, पौराणिक, जैन, बौद्ध आदि विचारधाराओं में अनेक मिथकों को केवल स्वीकारा ही नहीं गया अपितु उनके आधार पर अपने धर्मो को प्रचारित-प्रसारित करने की विधियां ढूंढ ली गयी। साहित्य के अतिरिक्त लोक कला की अनेक विधाओं--यथा मूर्तियों, चित्रों, गीतों और नाटकों में भी इन मिथकों को रूपांकित किया गया। भारतीय कला में देवी-देवताओं तथा उनसे संबंधित कथाओं को हम प्रचुर रूप में अंकित पाते हैं । कला को लोकरंजनी बनाने के लिए यह बहुत आवश्यक था । पूज्य देवों के अतिरिक्त यक्ष, किन्नर, गंधर्व, सुपर्ण, अप्सराओं आदि का चित्रण लोक कला में बहुत मिलता है। भारत की अनेक प्राचीन कलाकृतियों में विविध धार्मिक क्रियाओं एवं त्यौहारों में उत्साह के साथ भाग लेते हुए स्त्री-पुरुष दिखाए गए हैं। अनेक लोकप्रिय पौराणिक कथाओं को मतियों तथा चित्रों के माध्यम से उरेहने की परंपरा आज तक इस देश में जीवित है । लोक कला का सर्व सुलभ माध्यम मिट्टी की मूर्तियां एवं खिलौने थे । भारत में सबसे पुरानी मूर्तियां हाथ से गढ़ी हुई मिली हैं । सांचे का प्रयोग उनमें नहीं हुआ । हाथ से गढ़कर बनायी गयी मूर्तियों में मातृदेवी की प्रतिमायें बड़े महत्व की हैं । भूमि को माता के रूप में मानने की भावना वेदों तथा इतर साहित्य में मिलती है। मातृदेवी या महीमाता की ये मूर्तियां उसी भावना को अभिव्यक्त करती है । इन प्रतिमाओं के गले, कमर और कान में भारी आभूषण चिपकाये हुए मिलते हैं। कभीकभी चेहरे का आकार चिड़ियों जैसा होता है । कई खिलौने ऐसे भी मिले हैं जिनमें पेड़ की डाल पकड़े हुए शाल-भंजिका स्त्रियों को आकर्षक मद्रा में दिखाया गया है। कामदेव की एक उल्लेखनीय मूर्ति मिली है, जिस पर उन्हें शूर्पक नाम के मछुवे को पददलित करते हुए दिखाया गया है । एक लोक कथा के अनुसार कुमदवती नाम एक राजकुमारी शूर्पक नाम मछुवे पर आसक्त हो गई । शूर्पक ने उसके प्रेम को ठुकरा दिया । अन्त में राजकन्या ने कामदेव की सहायता से उस पर विजय प्राप्त की। इसी कथा का आलेखन उक्त खिलौने में है। मिट्टी की बनी हुई गुप्तकालीन अनेक मूतियां मिली हैं । इनका पिछला भाग बिलकुल सादा होता था, पर सामने देवी, देवताओं, यक्ष-गंधर्वो, पशु-पक्षियों आदि की मूर्तियां रहती थीं। मथुरा से प्राप्त कार्तिकेय की एक बड़ी मिट्टी की मूर्ति गुप्तकाल वी. नि.सं. २५०३ १२३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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