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________________ यहां जैनियों के १७० कुटुम्ब हैं। शाह श्री कबदी रिखबचन्द्र जुहारमलजी की ओर से एक जिनालय का निर्माण कराया जा रहा है । सायला में परिषद शाखा सक्रिय रूप से कार्यरत है । आलोट प्रसिद्ध तीर्थ नागेश्वर पार्श्वनाथ उन्हेल के मार्ग पर आलोट में स्थित है। यहां पर पौषधशाला का बीस वर्ष पूर्व निर्माण हुआ । इस कार्य में श्री मोतीलालजी धाडीवाल, श्री सौभाग्यमलजी श्रीमाल का उल्लेखनीय सहयोग रहा। इसी पौषधशाला के ऊपर श्री वासु पूज्य स्वामी मूलनायक तथा श्री सुमतिनाथ, श्री कुंथुनाथजी भगवान जिनकी अंजनशलाका पूज्य यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज द्वारा जावरा में हुई थी की प्रतिष्ठा आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के करकमलों से ६ वर्ष पूर्व प्रतिष्ठा हुई। इस मंदिर में एक उल्लेखनीय कार्य यह हुआ कि भगवान महावीर का जीवनवृत्त संगमरमर के पाषाणों पर उत्कीर्ण है और विभिन्न दानदाताओं के नाम भी अंकित हैं । प्रतिमा प्राचीन है लेकिन मंदिर अभी अभी बनाया गया है । यह मंदिर अत्यन्त आकर्षक है । श्री भेरूलालजी भग्गाजी पारख ने अपनी संपूर्ण चल-अचल संपत्ति समाज को समर्पित की है। समाज द्वारा सिलाई केन्द्र, पाठशाला, सदावृत्त आदि कार्य चलाए जा रहे हैं । यह कार्य ट्रस्ट के अन्तर्गत है । रिंगनोब यह ग्राम धार कुक्षी रोड़ पर भूतपूर्व ग्वालियर राज्य के अधिकार क्षेत्र में था । वर्तमान में मध्यप्रदेश में धार जिला के अन्तर्गत तेहसील सरदारपुर में है । यह ग्राम बहुत प्राचीन होकर विक्रम संवत् १४००, १५०० के बीच में बसा है। इस ग्राम की बसावट के समय से ही जैन श्रेष्ठी वर्ग आकर बसे हैं जिनके वंशज आज भी इसी ग्राम में निवास करते हैं । तत्कालीन जैन समाज की ओर से एक भव्य जिन मन्दिर का निर्माण कराया गया था जिन मन्दिर सौधशिखरी होकर आज तक जैन श्री संघ सुचारु रूप से जिन मन्दिर की छबि को बनाए हुए है । इस मन्दिर में मूल नायक भगवान आठवें तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभुजी की सुरम्य एवं चमत्कारी प्रतिमा हैं। यहां के जैन श्रावक • अधिकांश त्रिस्तुतिक सम्प्रदाय के हैं एवं उन्हीं के हाथ में मन्दिर का संचालन एवं व्यवस्था कार्य है जो सुचारु रूप से चल रहा है । जैन मन्दिर के निर्माण की ठीक प्रकार से जानकारी नहीं है किन्तु मन्दिर में जो जिन बिम्ब विराजित हैं उनके लेख से ज्ञात होता है कि श्री जिन मन्दिर बहुत प्राचीन है। मूल नायकजी श्री चन्दाप्रभुजी की प्रतिमा पर सम्वत् १५२६ वि. अंकित है जो प्राचीनता का परिचायक है। सौधशिखरी मन्दिर के मूल नायक की पुनः प्रतिष्ठा सम्वत् १९५१ वि. में परम पूज्य आचार्य श्री राजेन्द्र सूरिजी के सान्निध्य में तत्कालीन गणिवर्य व्याख्यान वाचस्पति श्री यतीन्द्र विजयजी के द्वारा की गई। उस प्रतिष्ठा के साथ भगवान आदिनाथजी, बी. नि. सं. २५०३ Jain Education International पतिनाथजी पार्श्वनाथजी आदि तीर्थकरों की आठ प्रतिमा भी प्रतिष्ठित की जो गंभारे में स्थित हैं इसके अतिरिक्त गंभारे के बाहर श्री चन्द्रप्रभुजी की प्रतिमा एवं श्री मणिभद्रजी की भी प्रतिमा है। धातु की प्रतिमाएं भी है। सम्वत् १९८१ वि. मिती ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वितीया बुधवार के शुभ दिन को प्रातः स्मरणीय परम योगीराज प्रभु राजेन्द्र सूरीश्वर की चरणपादुका की प्रतिष्ठा परम पूज्य आचार्य श्री भूपेन्द्र सुरीश्वर जी के सान्निध्य में हुई होकर वर्तमान में मन्दिर में है । उस वक्त परम गुरु भक्त श्री सेठ लूनकरणजी, कोदाजी, नालचन्दजी, गट्टूजी, हीराचन्दजी, जोराजी, नन्दाजी, सेराजी दूंगाजी, अमरजी, धूलजी, चेनाजी, केरामजी, ऊंकारजी, गन्दाजी, हीराचन्दजी चुनीलालजी, बागजी धोकलजी, गवाजी, परथी, जड़ावचन्दजी, हरकचन्दजी आदि जिनके वंशज अभी भी मौजूद होकर जिन मन्दिर की जाहो जलाली में दिन प्रति दिन उन्नति कर रहे हैं। 1 इस मन्दिर के शिखर पर ध्वजादंड जीर्ण होने से मिती फागुन शुक्ला ५ सम्वत् २०२३ दिनांक १-३-६७ को शुभ वेला में वर्तमान 'आचार्य श्री विद्याचन्द सूरीश्वरजी की निवा में पुनः ध्वजारोहण हुआ। जिसका विधि विधान सुश्रावक शिक्षा शास्त्री श्री राजमलजी लोढ़ा मन्दसौर द्वारा किया गया । इस ग्राम में तत्कालीन आचार्य श्री जी की आज्ञा से निम्नानुसार मुनिराज एवं साध्वीजी के चतुर्मास हुए थे। मुनिराज श्री अमृत विजयजी मुनि चतुरविजयजी सम्वत् १९८०, मुनि श्री न्याय विजयजी सम्वत् १९९५ में केवल आठ रोज, सम्वत् २००१ में साध्वीजी श्री नथी श्रीचतुरभीजी, श्री भक्तिची जी सम्बत् २००४, साध्वीजी श्रीकंचनश्री, जिनश्रीजी, अशोकप्रभा श्री जी इनकी प्रेरणा एवं उपदेशानुसार मन्दिर में पालिश की फर्शीयां लगाई गईं । 2 सम्वत् २०१२ में साध्वीजी श्री चैतनीजी भक्तिश्री महेन्द्र श्री जी का । सम्वत् २०१३ में साध्वजी श्री मुक्तिश्री जी साध्वी मण्डल सहित । सम्वत् २०१७ में साध्वीजी श्री चेतन्यश्री, भक्तिश्री जी, वयोवृद्ध होने से वहीं गुरु आज्ञा से विराजित हुए एवं इसी ग्राम में सम्वत् २०२८ की महा सुदी ५ के दिन साध्वीजी श्री चैतन्यश्री जी का स्वर्गवास हो गया जिनका अग्नि संस्कार पन्नालालजी गेंदालालजी पंवार की कृषि भूमि पर हुआ। जहां पर श्री संघ की ओर से चबूतरा ( ओटला ) निर्माण की योजना है। यह बड़े सौभाग्य की बात है कि पूज्य साध्वीजी इसी ग्राम के सुश्रावक श्री जड़ावचन्दजी की धर्म पत्नी थी। जिनके पिता टान्डा निवासी श्री धन्नालालजी चंडालिया थे। वर्तमान में साध्वीजी श्री भक्तिश्री जी इसी ग्राम में स्थविर है । मुनिराज के चातुर्मास का इस ग्राम को ५० वर्ष तक कोई सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। पश्चात् श्री संघ के प्रबल पुण्योदय से सम्वत् २०३२ के वर्ष में श्री संघ की विनती को स्वीकार करके आचार्य श्री जी ने For Private & Personal Use Only ७ www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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